Friday 5 January 2024

शरणार्थी समस्या : यूरोपीय देशों से सबक लेना समय की मांग



गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में प.बंगाल के अपने दौरे के दौरान ऐलान किया कि जल्द ही देश में सी.ए.ए (नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019)लागू कर दिया जावेगा। इसके अंतर्गत 31दिसंबर 2014 को या उसके पहले  अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई  प्रवासियों के लिए नागरिकता नियम आसान बनाए गए हैं। पहले भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इस  अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है। यानी इन तीनों देशों के ऊपर उल्लिखित छह धर्मों के बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी। इस कानून का जबरदस्त विरोध हुआ क्योंकि इसके लागू होने के बाद बांग्ला देश से अवैध रूप से आए घुसपैठियों को निकाल बाहर करने का रास्ता साफ हो जाएगा । गैर भाजपा पार्टियों द्वारा इस अधिनियम के विरोध में बड़े - छोटे तमाम आंदोलन हुए जिनमें दिल्ली का शाहीन बाग धरना काफी चर्चित रहा। कोरोना के बाद से उक्त मामला ठंडा पड़ा हुआ था किंतु गृहमंत्री के हालिया बयान के बाद एक बार फिर ये मुद्दा गरमाने जा रहा है। भाजपा लोकसभा चुनाव के पहले इस अधिनियम को अमली जामा पहनाकर अपना जनाधार और पुख्ता करना चाहती है । वहीं कांग्रेस , वामपंथी , तृणमूल कांग्रेस ,सपा , राजद , जद (यू) जैसी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियां इस अधिनियम के विरोध में खड़ी होंगी। राम मंदिर से उत्पन्न हिन्दू लहर को सी.ए.ए और शक्तिशाली बनाएगी ऐसा भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं। इस अधिनियम का विरोध करने वाली पार्टियों को इसके लागू होने पर अपने मुस्लिम समर्थकों के खिसकने का डर सता रहा है क्योंकि ऐसा होने पर बांग्ला देश से आकर बसे मुसलमानों की नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी। हालांकि ये मुद्दा नया नहीं है । असम में इसे लेकर लंबे समय तक जनांदोलन भी हुए। पहले ये समस्या केवल पूर्वोत्तर राज्यों तक ही सीमित रही किंतु धीरे - धीरे ये देशव्यापी हो गई। महानगरों में तो बांग्ला देशी  मुसलमानों की संख्या लाखों में हैं। सी.ए.ए. लागू होने पर इन बांग्ला देशी नागरिकों की नागरिकता खतरे में पड़ जावेगी। इस अधिनियम के विरोध का सबसे बड़ा कारण यही है कि इसके अंतर्गत  उक्त देशों से आए मुसलमानों को भारत की नागरिकता नहीं दी जावेगी। लेकिन इस मुद्दे का दूसरा पहलू  दरअसल भारत में शरणार्थियों का बढ़ता बोझ और उसके कारण उत्पन्न समस्याएं हैं । भारत में आतंकवाद के फलने - फूलने के लिए भी ये शरणार्थी काफी हद तक जिम्मेदार हैं। अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए राजनीतिक दलों ने इनके नागरिकता दस्तावेज बनवा दिए जिसके कारण ये न सिर्फ मतदाता बन गए अपितु सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ भी उठा रहे हैं। असम,त्रिपुरा और प.बंगाल में कांग्रेस , वामपंथी और तृणमूल कांग्रेस जैसे दलों ने इन घुसपैठियों को सत्ता प्राप्ति का जरिया बनाकर जो नासूर पैदा किया वह लाइलाज बनता गया। इसके साथ ही म्यांमार से रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी भी बड़ी संख्या में आकर देश के भीतरी हिस्सों में फैलने लगे। जब -  जब इनको बाहर निकालने की कोशिश हुई तब - तब धर्म निरपेक्षता का ढोल पीटने वाली पार्टियां उनके बचाव में आकर खड़ी होने लगीं। राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और सी.ए.ए इसी समस्या से लड़ने के लिए उठाते गए कदम हैं जिनका निहित राजनीतिक स्वार्थों के कारण विरोध किया और करवाया जाता रहा। लेकिन ऐसा करने वालों को उन यूरोपीय देशों के ताजा हालातों से सबक लेना चाहिए जिन्होंने मानवीयता के आधार पर अरब देशों से आए शरणार्थियों के अपने यहां पनाह देकर मुसीबत मोल ले ली। बदहाली में आकर बसे ये शरणार्थी इन देशों के लिए स्थायी सिरदर्द बन गए हैं। कानून व्यवस्था को बिगाड़ने  के अलावा इस्लामिक आतंकवाद की जड़ें जमाने में भी इन शरणार्थियों की बड़ी भूमिका सामने आ रही है। इसके बाद अनेक यूरोपीय देशों ने शरणार्थियों को निकाल बाहर करने का अभियान शुरू कर दिया है। इस बारे में ताजा खबर इंडोनेशिया से आई जिसने हजारों रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को नावों में भरकर देश से बाहर जाने बाध्य कर दिया। हाल ही में पाकिस्तान ने भी अफगानिस्तान से आकर बसे हजारों मुसलमान शरणार्थियों को खदेड़ने का अभियान शुरू किया है। कहने का आशय ये कि शरणार्थियों को अपने यहां पनाह देना मानवता के आधार पर तो उचित प्रतीत होता है किंतु कालांतर में देश की सुरक्षा के लिए ये नुकसानदेह साबित होते हैं , ये बात इतिहास से लेकर आज तक प्रमाणित होती रही है। ऐसे में अब जबकि  गृहमंत्री ने इस दिशा में निर्णायक कदम उठाने की बात कही तो उसका देशहित में स्वागत होना चाहिए। रही बात इसके राजनीतिक नफे - नुकसान की तो इसका जितना विरोध होगा उतना ही यह मुद्दा  विवादग्रस्त होगा। बेहतर तो यही होगा सभी राजनीतिक दल राष्ट्रीय हित में इस अधिनियम को प्रभावशाली बनाने में एकजुट हों। यूरोपीय देशों  में शरणार्थी समस्या ने जो खतरनाक रूप ले लिया है उससे सबक न लिया गया तो भारत में भी आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन जायेगा ।


-रवीन्द्र वाजपेयी 

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