Friday 26 January 2024

भारतीयता के प्रति समर्पित नेतृत्व के हाथों में ही देश सुरक्षित रह सकता है




आजकल कुछ लोग यह दुष्प्रचार कर रहे हैं कि भारत में लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा। उनका मानना है कि आगामी चुनाव में  नरेंद्र मोदी सत्ता में लौटे तो  तानाशाही आ जाएगी और ये देश  हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया जावेगा। राम मंदिर में हुई प्राण - प्रतिष्ठा से भी समाज के उस वर्ग का रक्तचाप बढ़ा हुआ है जिसने कभी देश का हित नहीं चाहा।  नेताजी सुभाष चंद्र बोस को हिटलर का दलाल प्रचारित करने वाला यह वर्ग आयातित राजनीतिक विचार को भारत के जनमानस पर थोपने का प्रयास करता आ रहा है। जब उसे लगा इसे जनस्वीकृति नहीं मिल सकती तब मुख्य धारा की राजनीति से जुड़कर इसने अपनी कार्ययोजना को लागू करने की चाल चली। दुर्भाग्य से ज्यादातर राजनीतिक दल इनके जाल में फंसकर उन नीतियों को लागू करने लगे जिनसे इस देश का स्वभाव मेल नहीं खाता। भारत का अस्तित्व उसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत पर आधारित है। आजादी के बाद उसी आधार को कमजोर करने का सुनियोजित प्रयास होता रहा । विदेशी टुकड़ों पर पलने वाले कतिपय बुद्धिजीवी देश का मनोबल तोड़ते हुए  हीन भावना का संचार करने में जुट गए और वह भी सरकार के सहयोग और संरक्षण में। धर्म  , संस्कृति ,कला - साहित्य जैसे क्षेत्रों में भारतीयता के भाव को कमजोर करने का प्रयास पूरी ताकत से चलता रहा। लेकिन जिस तरह हर रात के बाद सुबह होती है , ठीक वैसे ही 10 वर्ष पूर्व जनता ने राष्ट्रवादी सोच पर आधारित नेतृत्व को  बागडोर सौंप दी। सुपरिणाम ये हुआ कि देश नए उत्साह के साथ आगे बढ़ने लगा।पश्चिमी देशों की चकाचौंध से प्रभावित होने के बजाय हमारे युवाओं ने भारत को  विकसित देशों के समकक्ष खड़ा करने का संकल्प लिया। राजनीतिक नेतृत्व से प्राप्त प्रोत्साहन ने भी इसमें अपना योगदान दिया। फलस्वरूप भारत एक शक्ति संपन्न और संभावनाओं भरे देश के तौर पर उभरा है। दुनिया की सबसे सक्षम युवा शक्ति नए भारत की उम्मीदों का स्रोत है। खास बात ये है कि भारत और भारतीयता के प्रति समाज के प्रत्येक वर्ग में आकर्षण बढ़ा है। वो जमाना चला गया जब हम विश्व शक्ति कहे जाने वाले देशों के पिछलग्गू हुआ करते थे। उसके उलट आज का भारत खुद एक विश्व शक्ति है। इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित नेतृत्व के हाथ में सत्ता आना रहा। और यही बात उन ताकतों को बर्दाश्त नहीं हो रही जिनका उद्देश्य भारतीयता की भावना को नष्ट करना था । बीते 10  सालों में केंद्रीय सत्ता ने  देश हित में जो साहसिक निर्णय लिए उनके कारण ये तबका पूरी तरह हाशिए पर चला गया। अपनी कुंठा व्यक्त करने के लिए ये  समय - समय पर जनता को भड़काने के प्रयास करता रहता है किंतु इनकी असलियत पूरी तरह उजागर होने से अब लोग इनके दुष्प्रचार में नहीं फंसते। 22 जनवरी को अयोध्या स्थित राम मंदिर में हुई प्राण - प्रतिष्ठा के विरोध में इसी वर्ग ने जनता को बरगलाने का भरपूर प्रयास किया किंतु पूरे देश में जो नजारा दिखाई दिया उससे भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रमाण पूरे विश्व को मिल गया। उस दृष्टि से देश का 75 वां गणतंत्र उम्मीदों भरी नई सुबह लेकर आया है। कुछ महीनों बाद देश आगामी पांच वर्षों के लिए अपनी सरकार चुनने जा रहा है। ऐसे में पूरी दुनिया की निगाहें हमारी ओर लगी हुई हैं। जो लोग लोकतंत्र और संविधान को खतरे में बताकर भय का वातावरण बनाने एकजुट हैं वे ही सही मायनों में लोकतंत्र का अपने निजी हितों के लिए उपयोग करने के दोषी हैं। उनके दोहरे चरित्र को जनता जान चुकी है । इसलिए उनका दुष्प्रचार बेअसर साबित हो रहा है। कुछ माह पूर्व हुए विधानसभा चुनावों में इसका संकेत मिल चुका है। ये विश्वास प्रबल होता जा रहा है कि देश और लोकतंत्र  भारतीयता के प्रति समर्पित नेतृत्व के हाथों में ही सुरक्षित रह सकता है। विगत दस वर्षों में भारत ने प्रत्येक क्षेत्र में ऊंची छलांगें लगाई हैं किंतु अभी बहुत कुछ करना बाकी है और उसके लिए सरकार के साथ ही जनता को भी जागरूक और जिम्मेदार रहना होगा क्योंकि गणतंत्र की सफलता इसी पर निर्भर होती है।

- रवीन्द्र वाजपेयी 

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