Friday 19 January 2024

मोरबी के बाद गुजरात सरकार सतर्क होती तो वडोदरा में इतनी जानें न जातीं


वडोदरा में एक विद्यालय के बच्चे शिक्षकों के साथ स्थानीय हरणी झील में नौका विहार कर रहे थे। मोबाइल से सेल्फी लेते समय कुछ बच्चे  एक तरफ जमा हो गए जिससे संतुलन बिगड़ा और नाव पलट गई। एक दर्जन से ज्यादा बच्चे और 2 शिक्षक काल के गाल में समा गए। यद्यपि 10 बच्चों और 2 शिक्षकों को बचा लिया गया। नाव के असंतुलित होकर पलट जाने को  दुर्घटना का कारण बताया जाना तो समझ में आता है किंतु नौका में बैठे किसी भी बच्चे और शिक्षक का  लाइफ जैकेट नहीं पहने होना निश्चित रूप से दुखद है। विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के अनुभवहीन  होने की बात तो स्वाभाविक है किंतु उनके साथ गए शिक्षकों द्वारा लाइफ जैकेट पहनने का ध्यान न रखा जाना भी अव्वल दर्जे की लापरवाही है। उससे भी बड़ी गलती उक्त झील में नाव चलाने वाली एजेंसी या ठेकेदार की मानी जानी चाहिए। जो जानकारी आई उसके मुताबिक हरणी झील  वडोदरा नगर निगम के अधीन है। जाहिर है उसमें नौका विहार का ठेका होता होगा। लेकिन सुरक्षा प्रबंधों की जांच करना निगम अधिकारियों के साथ ही प्रशासन का भी दायित्व है। अक्सर देखने में आया है कि इस तरह के स्थानों पर नाव में बैठने वाला कोई व्यक्ति लाइफ जैकेट के लिए जिद करता है तो उसे दे दी जाती है किंतु वह भी उसकी हैसियत देखकर। जिस एजेंसी या व्यक्ति को उक्त झील में नाव चलाने का ठेका दिया गया होगा उसमें लाइफ जैकेट की शर्त जरूर जुड़ी होगी किंतु नगर निगम और स्थानीय प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों को इस तरफ देखने की फुरसत भी नहीं मिली ।  निश्चित तौर पर इस अनदेखी के लिए ठेकेदार से किसी न किसी रूप में उन्हें सौजन्य भेंट प्राप्त होती होगी। प्रारंभिक जांच के बाद बताया गया कि 15 सवारियों की क्षमता वाली नाव में दोगुने लोगों का बैठना भी दुर्घटना का कारण बना।  सरकारी  परंपरानुसार मृतकों के परिवारजनों को मुआवजा और घायलों को सहायता राशि की घोषणा कर दी गई।   उल्लेखनीय है अक्टूबर 2022 में गुजरात के ही मोरबी में एक पुल पर स्वीकृत संख्या से ज्यादा पर्यटकों के जमा होने से वह टूट गया था जिसमें 140 से ज्यादा लोग मारे गए। ब्रिटिशकाल के उस पुल को मरम्मत के बाद लोगों के लिए खोला गया था किंतु उसके लिए तकनीकी अनापत्ति नहीं ली गई और क्षमता से ज्यादा लोगों के आ जाने से वह टूटा । उक्त पुल पर लोग टिकिट खरीदकर नदी का मनोरम दृश्य देखने आते थे।  इसका भी बाकायदा ठेका होता है । सुधार कार्य के लिए कुछ समय के लिए बंद किए जाने के बाद जब पुल को जनता के लिए दोबारा शुरू किया गया तब ये देखने की जरूरत ही नहीं समझी गई कि काम ठीक तरीके से हुआ अथवा नहीं।    वडोदरा  की झील में  दर्दनाक हादसा भी ठेकेदार की लापरवाही के साथ ही प्रशासन की उदासीनता का दुष्परिणाम है।  क्षमता से दोगुनी  सवारियां बिठाने के बावजूद यदि उनको लाइफ जैकेट पहना दी जाती तब नाव पलटने के बाद भी ज्यादातर लोगों को बचाया जा सकता था। दुर्भाग्य ये है कि इस तरह की घटनाओं को रोकना जिनकी जिम्मेदारी है वे सभी अव्वल दर्जे के भ्रष्ट और निकम्मे हैं।    वडोदरा की ताजा घटना ने अनेक सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां - जहां नाव का उपयोग होता है वहां उसके डूबने या पलटने के खतरे को रोकने के इंतजाम  कानूनी  अनिवार्यता होना चाहिए । साथ ही जो भी लोग इन दुर्घटनाओं के लिए दोषी पाए जाएं उनको इतना कड़ा दंड दिया जाए जिससे कि इस तरह के कार्यों में लगे बाकी लोग सजा के नाम से डरने लगें। मौजूदा जो चलन है उसमें कसूरवारों को बचाने के लिए सत्ताधारी नेता और बड़े नौकरशाह सक्रिय भूमिका निभाते हैं परंतु अपने थोड़े से लाभ के लिए लोगों की जिंदगी  छीन लेने वाले को तो हत्यारा ही कहा जाएगा और उसे उसी के अनुरूप सजा भी मिलनी चाहिए। मरने वालों और घायलों को मुआवजा देना तो जायज भी है और जरूरी भी लेकिन ऐसा करने के साथ ये भी उतना ही जरूरी है कि इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने के प्रति पूरी तरह सावधानी रखी जाए और जिस तरह वी.आई.पी सुरक्षा के प्रति शासन और प्रशासन मुस्तैद रहते हैं वैसी ही सतर्कता आम जनता के बारे में भी रखी जाए । संदर्भित घटना में प्राथमिक गलती तो उस ठेकेदार की है जिसके पास नौका विहार का काम था । लेकिन   वडोदरा   नगर निगम के उन अधिकारियों को भी कठघरे में खड़ा किया जाना चाहिए जिनके पास  झील संबंधी व्यवस्थाओं का प्रभार था। ठेके पर दिए जाने वाले काम में नौकरशाही द्वारा जो अनुचित लाभ लिए जाते हैं उसके बदले ठेकेदार को नियम विरुद्ध काम करने की छूट दे दी जाती है। प्रत्येक घटना के बाद कुछ दिन तो सब चाक - चौबंद रहता है किंतु जल्द ही पुराना ढर्रा लौट आता है। मोरबी की घटना के बाद गुजरात सरकार ने अगर ऐसे स्थानों पर जहां लोग आमोद - प्रमोद हेतु एकत्र होते हों , सुरक्षा प्रबंधों को लागू करने के प्रति सावधानी बरती होती तब शायद वडोदरा में इतने लोगों की जान न जाती। 

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 रवीन्द्र वाजपेयी

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