Tuesday 23 January 2024

राम मंदिर : सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रूप में जन जाग्रति का प्रतीक


अयोध्या स्थित राम मंदिर में  प्राण - प्रतिष्ठा का महोत्सव न सिर्फ भारत अपितु समूचे विश्व में जिस उत्साह से मनाया गया वह निश्चित रूप से ऐतिहासिक कहा जाएगा । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  उक्त अवसर पर अपने उद्बोधन में सही कहा कि आने वाले एक हजार सालों बाद भी 22 जनवरी 2024 की तिथि लोगों को इस महान दिवस की याद  दिलाती रहेगी। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि प्राण - प्रतिष्ठा का आयोजन अपनी भव्यता के लिए तो विश्व भर में चर्चा का विषय बना ही लेकिन उसके साथ अरबों सनातन धर्मियों को उसने भावनात्मक तौर पर भी जोड़ दिया। आयोजन के पहले देश के ज्यादातर विपक्षी दलों ने तरह - तरह के बहाने बनाकर उसका बहिष्कार किया। वामपंथी मानसिकता के बुद्धिजीवियों और पत्रकारों ने भी राम मंदिर के शुभारंभ को लेकर अनर्गल बातें कीं। यहां तक कि सनातन परंपरा के सबसे बड़े धर्माचार्य शंकराचार्यों द्वारा भी इस आयोजन में रीति - रिवाजों का पालन न किए जाने के आधार पर उससे दूरी बनाए रखने की घोषणा करने के साथ ही जिस तरह की बयानबाजी की उसके कारण अप्रिय स्थिति बन गई। इस विवाद का सबसे दुखद पहलू ये रहा कि पहली बार आम जनता द्वारा शंकराचार्यों के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणियां की गईं। यद्यपि उनके एतराज के बाद भी राम जन्मभूमि न्यास के आमंत्रण पर सनातन धर्म से जुड़े तमाम प्रमुख संत,महात्मा तो प्राण - प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुए ही लेकिन उनके अलावा जैन , सिख और बौद्ध धर्मगुरु भी कल अयोध्या में इस ऐतिहासिक पल के साक्षी रहे। एक - दो मुस्लिम धार्मिक हस्तियां भी नजर आईं। उद्योग, मनोरंजन , क्रीड़ा , साहित्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों के नामचीन चेहरे जिस उत्साह के साथ  प्राण - प्रतिष्ठा समारोह में नजर आए वह अपने आप में बहुत कुछ कह गया।  सुरक्षा प्रबंधों को दुरस्त रखने के अलावा अव्यवस्था को रोकने के लिए आयोजन स्थल पर केवल 8 हजार आमंत्रित जनों की ही उपस्थिति रखी गई । लेकिन न सिर्फ भारत अपितु दुनिया भर में जिस तरह से उक्त आयोजन का सीधा प्रसारण टेलीविजन के साथ ही इंटरनेट के जरिए विभिन्न संचार माध्यमों पर देखा गया , वह अपने आप में एक कीर्तिमान तो है ही किंतु वह इस बात का प्रमाण भी है कि इस मंदिर के निर्माण से सनातन और हिंदुत्व के प्रति दुनिया भर में नए सिरे से रुचि पैदा हुई है । वरना दुबई के बुर्ज खलीफा , पेरिस की ईफिल टॉवर  और न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर जैसे विश्व प्रसिद्ध स्थानों पर अयोध्या के पूरे समारोह का सीधा प्रसारण न दिखाया जाता। अनेक देशों के राजनेताओं ने अपने यहां स्थित हिन्दू मंदिरों में जाकर भारत के प्रति अपना लगाव प्रदर्शित किया। इस आयोजन का विराट स्वरूप और सफलता मंदिर की व्यवस्था देख रहे न्यास के अलावा प्रधानमंत्री श्री मोदी और उ.प्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उस समन्वित सोच का परिणाम है जिसने अयोध्या को देखते - देखते देश के सबसे सुंदर और सुविधा संपन्न नगरों की सूची में स्थान दिलवा दिया। इसी तरह सनातन संस्कृति के अभूतपूर्व पुनर्जागरण के तौर पर समाज के प्रत्येक वर्ग ने बीते दो दिनों में जिस उमंग और उत्साह से राम मंदिर में प्राण - प्रतिष्ठा को राष्ट्रीय  पर्व का स्वरूप प्रदान किया वह सामाजिक समरसता का संदेश वाहक बन गया। देश के प्रत्येक हिस्से में जिस प्रकार का हर्षोल्लास देखा गया उसने पूरी दुनिया को यह एहसास करवा दिया कि भारत में  सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रूप में जो जन जाग्रति आई है वह वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव छोड़े बिना नहीं  रहेगी। रास्वसंघ के सरसंघचालक डा.मोहन भागवत ने उक्त आयोजन में सही कहा कि राम मंदिर , राष्ट्र मंदिर है। प्रधान मंत्री श्री मोदी ने यही समय है , सही समय है जैसी बात कहकर भारत के आत्मविश्वास का प्रकटीकरण तो किया ही लेकिन उन्होंने देव से देश और राम से राष्ट्र तक का जो संदेश दिया वह सही मायनों में  इस भव्य आयोजन की परिणिति है। कोरोना नामक महामारी से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री ने जब एक दिन के जनता कर्फ्यू का आह्वान किया तब लोगों को उसका उद्देश्य समझ नहीं आया था। उसके बाद उन्होंने देशवासियों से शंख और घंटे बजाने के साथ ही घरों पर दीपमालिका का आग्रह किया । उस समय भी उसका मजाक उड़ाने वाले कम नहीं थे किंतु उक्त दोनों प्रयोग सफल रहे । उसके जरिए प्रधानमंत्री ने लोगों में एकजुटता और विश्वास का जो संचार किया उसी के कारण लॉक डाउन जैसी असुविधाजनक स्थिति में भी अनुशासन और व्यवस्था बनी रही। राम मंदिर में प्राण - प्रतिष्ठा के जरिए भी उसी तरह का सामंजस्य और एकजुटता का संचार हुआ है। जिसका लाभ देश को एकजुट रखने में मिलेगा ये विश्वास किया जा सकता है।


-रवीन्द्र वाजपेयी

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