Tuesday 6 February 2024

मोदी के आक्रामक अंदाज के मुकाबले विपक्ष के पास रणनीति का अभाव


राष्ट्रपति के अभिभाषण के प्रति धन्यवाद प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल लंबा भाषण देते हुए विपक्ष पर जोरदार हमले करते हैं। ऐसा ही उन्होंने गत दिवस भी किया जिसमें सरकार की उपलब्धियों के बखान को आगामी लोकसभा चुनाव के  प्रचार के तौर पर देखा जा सकता है । अपनी चिर - परिचित शैली में उन्होंने कांग्रेस पर प्रहार में कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी और विपक्ष पर यहां तक ताना मारा कि अगले चुनाव में वह दर्शक दीर्घा में नजर आएगा। पिछले स्वाधीनता दिवस पर भी उन्होंने कहा था कि आगामी वर्ष भी वे ही लाल किले की प्राचीर पर ध्वजारोहण करेंगे। गत दिवस लोकसभा में उन्होंने वही आत्म विश्वास दोहराते हुए दावा किया कि 2024  में  भाजपा 370 और एनडीए 400 से ज्यादा सीटें जीतेगा। उन्होंने विपक्षी गठबंधन पर भी निशाना साधा। परिवारवाद पर श्री मोदी हमेशा से ही मुखर रहे हैं। लाल किले से दिए भाषण में भी उन्होंने इस पर हमला बोला था। वैसे भी प्रधानमंत्री काफी हौसले वाले इंसान हैं जो जय - पराजय में अपना संतुलन बनाए रखने के साथ ही अवसर को भुनाने में कभी पीछे नहीं रहते। राहुल गांधी की न्याय यात्रा के कारण कांग्रेस उसमें उलझी हुई है। वहीं दूसरी और नीतीश कुमार के अलग होने के अलावा ममता बैनर्जी के तेवरों से विपक्षी गठबंधन में बिखराव के आसार बढ़ रहे हैं । अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस पर अपनी मर्जी थोपने पर अमादा हैं । इसका प्रभाव संसद में भी देखने मिल रहा है। उल्लेखनीय है 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले म.प्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भाजपा की पराजय ने मोदी सरकार की वापसी के प्रति आशंका उत्पन्न कर दी थी। लेकिन वह गलत साबित हो गई। उसके विपरीत इस बार उक्त तीनों राज्यों में भाजपा ने धमाकेदार अंदाज में वापसी करते हुए कांग्रेस का मनोबल तोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली है। इसके अलावा इस बार प्रधानमंत्री के पास  उपलब्धियों का लंबा ब्यौरा है। 2014 में सत्ता में आने के बाद उन्होंने जिन योजनाओं और कार्यक्रमों को प्रारंभ किया था उनके प्रति जनविश्वास बढ़ा है। मोदी की गारंटी नामक  नया नारा  उसी आत्मविश्वास का परिचायक है जिसके बल पर वे 370 और 400 सीटों का दावा कर पा रहे हैं।  22 जनवरी को अयोध्या में निर्मित भव्य राम मंदिर में प्राण - प्रतिष्ठा के अवसर पर पूरे देश में जिस तरह से  हर्षोल्लास नजर आया वह भाजपा के पक्ष में वैसी ही लहर का संकेत दे रहा है जैसी 1984 में कांग्रेस के पक्ष में नजर आई थी । विपक्ष के अधिकांश दल भी इस बात को समझ चुके हैं कि कांग्रेस ने प्राण - प्रतिष्ठा समारोह की उपेक्षा कर बहुत बड़ी गलती कर डाली । और इसीलिए वे उससे छिटकने के संकेत दे रहे हैं। आज खबर आई कि उद्धव ठाकरे भी प्रधानमंत्री के विरुद्ध तीखी बयानबाजी से बचते हुए उनके साथ पुराने संबंधों का हवाला देते हुए सौजन्यता का प्रदर्शन करने लगे हैं। इन सबके कारण प्रधानमंत्री का मनोबल ऊंचा होना स्वाभाविक है। कोरोना काल में अर्थव्यवस्था को जो ग्रहण लगा था वह हट चुका है और भारत की विकास दर पूरी दुनिया को आकर्षित कर रही है। विदेशी मोर्चे पर भी हमारी स्थिति बेहद मजबूत है तथा श्री मोदी विश्व के सबसे लोकप्रिय लोकतांत्रिक शासक के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। दुनिया के बड़े देश तक भारत के महत्व को स्वीकारने लगे हैं। सही बात तो ये है कि विपक्ष अपनी धार खोता चला जा रहा है। उसका गठबंधन कागज पर बने तो महीनों बीत गए किंतु न उसका कोई सर्वमान्य नेता है और न ही नीति। सीटों के बंटवारे को लेकर विभिन्न घटक दलों के बीच में जबरदस्त अविश्वास है । नीतीश कुमार के साथ छोड़ देने के बाद गठबंधन में कोई भी ऐसा नेता नहीं है जो सभी को एकजुट रख सके। मौजूदा  संसद का ये अंतिम सत्र है और इसमें भी विपक्ष सरकार को घेरने में सफल होता नहीं दिखता । ऐसा नहीं है कि उसके पास हमले करने लायक मुद्दे न हों किंतु आपसी समन्वय का अभाव और दिशाहीनता के कारण वह उसका लाभ नहीं  उठा पाता। होना तो ये चाहिए था कि श्री गांधी न्याय यात्रा को विराम देकर संसद में विपक्ष की तरफ से सरकार पर हमले की अगुआई करते। लेकिन उन्होंने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। बहरहाल विपक्ष में व्याप्त अव्यवस्था के बीच प्रधानमंत्री ने अपने चुनाव अभियान को पूरे जोर - शोर से शुरू कर दिया है। वे लगातार राज्यों का दौरा करते हुए विकास की नई योजनाओं की शुरुआत के जरिए मोदी की गारंटी के प्रति भरोसा बढ़ा रहे हैं। वहीं कांग्रेस सहित बाकी विपक्ष अभी तक अपनी रणनीति ही नहीं बना सका। 


- रवीन्द्र वाजपेयी

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