Friday 1 December 2023

नींद तो एग्जिट पोल करने वालों को भी नहीं आएगी


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के जो एग्जिट पोल गत दिवस जारी हुए उनमें कुछ तो चुनाव पूर्व सर्वेक्षण से मेल खाते हैं वहीं कुछ में थोड़ा तो कुछ में काफी अंतर है। एग्जिट पोल करने वाली संस्थाएं भी 3 फीसदी  घट - बढ़ की संभावना व्यक्त करती हैं। ऐसे में जहां मुकाबला नजदीकी होता है वहां उलटफेर देखने मिलता है परंतु जीत हार के बीच लंबा अंतर वाले अनुमान काफी हद तक सही होते हैं।  हमारे देश में चुनाव पूर्व सर्वेक्षण सबसे पहले 1984 के लोकसभा चुनाव में प्रणय रॉय और विनोद दुआ द्वारा शुरू किया गया था। उसके बाद इसका चलन बढ़ा । बाजारवाद के आगमन के साथ ही अनेक सर्वेक्षण संस्थान   ग्राहकों की  पसंद - नापसंद  पता कर  उत्पादक को देने लगे जिससे वे अपनी विक्रय रणनीति तय करते हैं। गुणवत्ता में सुधार हेतु भी सर्वेक्षण का उपयोग किया जाने लगा है। धीरे - धीरे  राजनीतिक दल भी सर्वेक्षण के जरिए मतदाताओं के मन को पढ़ने का प्रयास करने लगे । आजकल प्रत्याशी चयन के अलावा चुनावी वायदे भी सर्वेक्षण के जरिए तय किए जाते हैं। अनेक पत्र - पत्रिकाएं और टीवी चैनल समय - समय पर देश का मूड जानने के लिए सर्वेक्षण करवाकर उसे प्रचारित करते हैं जिनमें सरकार के प्रति जनमानस की सोच उजागर होती है। ये सब देखते हुए सर्वेक्षण एक बड़े व्यवसाय के तौर पर स्थापित हुआ है। हालांकि चुनाव पूर्व सर्वेक्षण की उपयोगिता तो समझ में आती है किंतु  एग्जिट पोल के  औचित्य पर ये कहकर सवालिया निशान लगाए जाते हैं कि मतगणना के पहले अंदाजिया घोड़े दौड़ाने से हासिल क्या होता है? इसके जवाब में कहा जाता है कि जहां एक से अधिक चरणों में मतदान होता है वहां राजनीतिक दल हर चरण के बाद एग्जिट पोल से मिले संकेतों के मुताबिक अपनी रणनीति निर्धारित करते हैं। लेकिन कल जो एग्जिट पोल आए वे  केवल बुद्धिविलास का विषय हैं । दरअसल , उनके जरिए सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियां अपनी कार्यकुशलता प्रमाणित करती हैं। मसलन जिसका एग्जिट पोल  परिणाम के जितने नजदीक होगा उसका व्यवसाय और बढ़ेगा । उस दृष्टि से देखें तो जो निष्कर्ष कल  जारी हुए उनमें कुछ  अनुमान एक दूसरे का समर्थन करते हैं तो कुछ में काफी अंतर है। लेकिन जिन दो - तीन  एजेंसियों की साख अच्छी है उनके एग्जिट पोल पर भरोसा करें तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की बढ़त स्पष्ट है। उसी तरह तेलंगाना  केसीआर के हाथ से खिसकता दिख रहा है। राजस्थान पर जहां भारी अनिश्चितता है वहीं म.प्र में भाजपा आसानी से बहुमत हासिल कर लेगी । यद्यपि वह जितना बड़ा दर्शाया गया है उसे लेकर आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है। हालांकि म.प्र में  भाजपा को भारी सफलता मिलती है तो ये उन चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों को झुठलाने वाला होगा जिनमें  बेहद करीबी टक्कर के बावजूद कांग्रेस का पलड़ा भारी बताया गया था। इसी तरह राजस्थान में सभी सर्वेक्षण भाजपा की जीत को निश्चित बता रहे थे किंतु एग्जिट पोल के मुताबिक कांग्रेस  दौड़ से पूरी तरह बाहर नहीं हुई है। मिजोरम  चूंकि राष्ट्रीय राजनीति की मुख्य धारा से अलग है इसलिए लोगों की उसके बारे में ज्यादा रुचि नहीं है किंतु तेलंगाना के अनुमान जरूर चौंकाने वाले हैं  क्योंकि के .सी . रेड्डी की बीआरएस नामक क्षेत्रीय पार्टी को 2018 में भारी बहुमत हासिल हुआ था।  ऐसे में  कांग्रेस को बड़ी सफलता मिलने से श्री रेड्डी का भविष्य  खतरे में पड़ जाएगा जो कांग्रेस और भाजपा दोनों के निशाने पर हैं। छत्तीसगढ़ में  एकाध एग्जिट पोल ही  भाजपा को बहुमत दे रहा है जबकि ज्यादातर में  वह 2018 के प्रदर्शन से काफी बेहतर प्रदर्शन करने जा रही है और ऐसे में  बहुमत के जादुई आंकड़े को स्पर्श कर ले तो वह सबसे बड़ा उलटफेर होगा। ढेर सारे  एग्जिट पोल चूंकि अलग - अलग निष्कर्ष दे रहे हैं इसलिए असमंजस और बढ़ गया है। मसलन म.प्र में कांग्रेस जहां अपनी हार स्वीकार नहीं कर रही वहीं राजस्थान को लेकर भाजपा का भी कहना है कि चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में उसकी सरकार बनने का जो अनुमान था वही नतीजे में परिलक्षित होगा। दो दिन बाद दोपहर तक स्थिति पूरी तरह साफ हो जाएगी। तब तक एग्जिट पोल को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म रहेगा। वैसे जो संकेत मोटे तौर पर मिल रहे हैं उनके अनुसार तेलंगाना को छोड़कर तीनों मुख्य राज्यों में राजनीति भाजपा और कांग्रेस के बीच दो ध्रुवीय होती दिख रही है। लेकिन म.प्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस का प्रदर्शन उसकी उम्मीदों के अनुसार नहीं रहा तब सपा और आम आदमी पार्टी को उस पर हावी होने का मौका मिल जायेगा जिनके साथ गठबंधन करने से कांग्रेस ने साफ मना कर दिया था। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने  म.प्र बचा लिया और राजस्थान कांग्रेस से छीन लिया तो उसका उत्साह बढ़ जाएगा । वहीं तेलंगाना और छत्तीसगढ़ जीतकर भी कांग्रेस भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं हो सकेगी और इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल उस पर दबाव बनाने में जुट जाएंगे। के. सी.रेड्डी यदि अपनी गद्दी गंवा बैठे तो वे तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे बिना नहीं रहेंगे। 3 दिसंबर की शाम तक  पांचों राज्यों की स्थिति स्पष्ट होने तक अनुमानों के घोड़े दौड़ते रहेंगे। नींद तो एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियों को भी नहीं आएगी क्योंकि उनकी विश्वसनीयता भी तो कसौटी पर है।


- रवीन्द्र वाजपेयी


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