Wednesday 6 December 2023

ईवीएम पर ठीकरा फोड़ने से दूर नहीं होगी कांग्रेस की दुर्दशा


तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की  पराजय का विश्लेषण सभी अपने - अपने तरीके से कर रहे हैं। म.प्र में तो शिवराज सरकार की लाड़ली बहना योजना को भाजपा की जीत का कारण बताया जा रहा है किंतु छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस वैसी ही योजनाएं लागू करने के बाद भी  हार गई । इन परिणामों ने ये साबित कर दिया कि उत्तर भारतीय राज्यों में कांग्रेस का जनाधार तेजी से सिमट रहा है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा भी म.प्र और राजस्थान के जिन अंचलों से गुजरी , उनमें कांग्रेस का  सफाया हो गया। इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य विपक्षी पार्टियां कांग्रेस के अहंकार को इस पराजय के लिए जिम्मेदार बता रही हैं। कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि मतदाताओं ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में  कांग्रेस की मुफ्त योजनाओं को ठुकराकर भी भाजपा को अपना समर्थन दिया। कर्मचारियों को  पुरानी पेंशन का लालच देना भी काम नहीं आया । सच ये है कि  कांग्रेस जनभावनाओं को समझ पाने में पूरी तरह असमर्थ है। कहने को तो भाजपा ने भी  प्रधानमंत्री के चेहरे को ही सामने रखा और मोदी की गारंटी के नाम पर मतदाताओं को इस बात के लिए आश्वस्त करने का प्रयास किया कि वह जो वायदे कर रही है वे पूरे होंगे। लेकिन  सबसे बड़ी बात है राष्ट्रवाद और हिंदुत्व ,  जिसका दिखावा तो कांग्रेस भी बहुत करने लगी है किंतु उसका मन साफ नहीं है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे द्वारा सनातन को खत्म करने वाली टिप्पणी  का समर्थन किए जाने वाले बयान पर उनसे सवाल किए जाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई । लेकिन कमलनाथ द्वारा ये कहे जाने पर कि देश की आबादी में 82 फीसदी हिन्दू हैं तो वह हिन्दू राष्ट्र कहलाएगा ही ,  तो पार्टी के तमाम नेता उनकी आलोचना पर उतर आए।  ऐसे में कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम की ये टिप्पणी सच्चाई के काफी करीब प्रतीत होती है कि सनातन का श्राप कांग्रेस की हार का कारण बना। इस बारे में ये बात भी ध्यान देने योग्य है कि राहुल गांधी द्वारा ओबीसी को लुभाने के लिए जातीय जनगणना का को लॉलीपॉप दिखाया गया उसे भी मतदाताओं ने भाव नहीं दिया। दरअसल कांग्रेस चूंकि सत्य को स्वीकार करने का नैतिक साहस खो चुकी है इसलिए  वह इस वास्तविकता से आंखें चुरा लेती है कि गांधी परिवार का आकर्षण ढलान पर है। और इसीलिए अब उसके नेता घिसे - पिटे बहाने के तौर पर ईवीएम ( इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन ) पर अपना गुस्सा उतारने लगे हैं। म.प्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का कहना है कि जिस उपकरण में भी चिप लगी हो उससे छेड़छाड़ मुमकिन है । इसी तरह प्रदेश में  कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कमलनाथ भी घुमा फिराकर यही कह रहे हैं। कांग्रेस के अनेक प्रवक्ता टीवी चैनलों पर पार्टी की हार के लिए वोटिंग मशीनों में हेराफेरी का मुद्दा उठाकर मतपत्रों से चुनाव करवाए जाने की मांग दोहरा रहे हैं। लेकिन ये प्रलाप केवल उन्हीं राज्यों में सुनाई दे रहा है जिनमें कांग्रेस को पराजय झेलनी पड़ी। हिमाचल , कर्नाटक और तेलंगाना में  मिली जीत के बाद किसी भी कांग्रेसी या अन्य नेता ने ईवीएम पर शंका व्यक्त की हो ऐसा देखने में नहीं आया। दिल्ली और  पंजाब में आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक विजय पर भी कांग्रेस ने वोटिंग मशीन पर शक नहीं जताया। प.बंगाल के विधानसभा चुनाव में तृणमूल की आंधी में कांग्रेस और वामपंथी एक भी सीट नहीं जीत सके थे । केरल में भी हर चुनाव में सत्ता बदलने के रिवाज को तोड़ते हुए वामपंथी सरकार की वापसी पर कांग्रेस ने चुनाव प्रक्रिया पर किसी भी तरह से  ऐतराज जताया हो ये किसी ने नहीं सुना। लेकिन जब किसी चुनाव में भाजपा को जीत हासिल होती है तो कांग्रेस बलि के बकरे के तौर पर ईवीएम मशीन पर ठीकरा फोड़ने लगती है। म.प्र , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में मतदाताओं द्वारा पूरी तरह नकारे जाने के बाद उसको चाहिए वह ईमानदारी से अपनी कमजोरियों का विश्लेषण कर उन्हें दूर करने का प्रयास करे। उसे इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दल कांग्रेस की हार के जो कारण बता रहे हैं उनमें  अहंकार और क्षेत्रीय दलों की उपेक्षा मुख्य हैं। ऐसे में  बेहतर यही होगा कि कांग्रेस तीनों राज्यों में अपनी पराजय के जमीनी कारणों का  ईमानदारी से विश्लेषण कर उनमें सुधार करने के लिए आवश्यक कदम उठाते हुए जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप आचरण करे। केवल भाजपा और मोदी को कोसने से उसके दुरावस्था दूर होने वाली नहीं है। उसे ये नहीं भूलना चाहिए कि 2004 और 2009 में उसके नेतृत्व में बनी यूपीए सरकार भी ईवीएम से निकले जनादेश का ही परिणाम थी ।


-रवीन्द्र वाजपेयी


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