Tuesday 19 December 2023

हंगामा : इसीलिए अब संसद न प्रेरित करती है और न प्रभावित



लोकसभा और राज्यसभा के दर्जनों विपक्षी सांसदों को मौजूदा सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया। आज की मिलाकर ये संख्या 141 हो चुकी है। लोकसभा में दो युवकों की घुसपैठ के बाद से विपक्ष सरकार पर आक्रामक है। गृहमंत्री से बयान की मांग  अनसुनी किए जाने से नाराज विपक्षी सांसद गर्भगृह में आकर सदन की कार्यवाही बाधित कर रहे थे। सरकार का कहना है कि लोकसभा सचिवालय पूरी घटना की जांच कर रहा है जिसके पूरा होते ही गृहमंत्री सदन को  जानकारी देंगे। वैसे इतने अधिक सदस्यों का एक साथ निलंबन अभूतपूर्व है। इसके औचित्य को लेकर सवाल उठना भी स्वाभाविक है। ऐसा लगता है कि सरकार शीतकालीन सत्र के बचे हुए दिनों में  लंबित विधायी कार्य पूरे करा लेना चाहती है। चूंकि इसके बाद लोकसभा का  सत्र फरवरी में होगा जिसमें नई सरकार के बनने तक खर्च चलाने के लिए कामचलाऊ बजट स्वीकृत करवाने के अलावा विदाई का माहौल रहेगा । इसलिए सही मायनों में इस लोकसभा का ये अंतिम कामकाजी सत्र ही है। ये देखते हुए इसका सुचारू रूप से चलना बेहद जरूरी है किंतु हमेशा की तरह गतिरोध जारी है। संसद में विपक्ष का हमलावर होना अनपेक्षित नहीं है। जनहित के मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा करना उसका दायित्व है। लेकिन इसके लिए संसदीय प्रणाली में जो अपेक्षित तौर - तरीके हैं उन्हीं का उपयोग किया जाना चाहिए । हालांकि इस स्थिति के लिए केवल विपक्ष को कसूरवार ठहराना सही नहीं होगा क्योंकि अनेक मामलों में सत्ता पक्ष की हठधर्मिता भी उसे आंदोलित होने बाध्य कर देती है। बीते कुछ वर्षों में ये देखने मिला है कि सदन के निर्बाध संचालन में सत्ता और विपक्ष दोनों की रुचि नहीं है। सरकार चाहती है कि उसके द्वारा प्रस्तुत विधेयक और प्रस्ताव बिना बहस के पारित हो जाएं। दूसरी तरफ विपक्ष भी हंगामे में उलझकर बहस का अवसर गंवा देता है। ये स्थिति संसदीय प्रणाली के लिए बेहद नुकसानदेह है। एक समय ऐसा था जब संसद में महत्वपूर्ण विषयों पर होने वाली बहस सुनने के लिए दर्शक दीर्घाएं भरी होती थीं। लेकिन अब तो ये आलम है कि टेलीविजन पर सदन की कार्यवाही का सीधा प्रसारण होने पर भी लोग उसे देखने में रुचि नहीं रखते। दूसरी बात ये भी है कि अब दोनों पक्षों के पास अच्छे वक्ताओं का अभाव हो गया है। दोनों ओर से तीखे - तीखे शब्दबाण तो खूब चलते हैं लेकिन भाषा की गरिमा का ध्यान नहीं रखा जाता। कभी - कभी लगता है कि राजनीतिक दल ही अपने सांसदों को मर्यादाहीन व्यवहार की छूट देते हैं । इस मामले में दोनों पक्ष बराबर के दोषी कहे जा सकते हैं। विपक्ष ये आरोप लगाता है कि सदन से निलंबन और ऐसे ही अन्य कड़े कदम आसंदी द्वारा उसी के सांसदों के विरुद्ध उठाए जाते हैं जबकि सत्ता पक्ष के  आपत्तिजनक व्यवहार को नजरंदाज किया जाता है।   इस बारे में रोचक बात ये है कि प्रत्येक सत्र के पहले अध्यक्ष सभी दलों की बैठक बुलाकर सदन को ठीक से चलाने हेतु सहयोग मांगते हैं किंतु अपवादस्वरूप कुछ अवसरों को छोड़कर एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब शोर - शराबा न होता हो। इससे ज्यादा विडंबना क्या होगी कि राष्ट्रपति के अभिभाषण तक पर विपक्ष सदन में अनुपस्थित हो जाए। सांसदों के इसी गैर जिम्मेदाराना आचरण के कारण आम जनता के मन में संसद के प्रति सम्मान लगातार घटता जा रहा है। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि बीते अनेक वर्षों से संसद के दोनों सदनों में सिवाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भी लंबा भाषण सुनने नहीं मिला। विपक्ष में सबसे ज्यादा प्रतीक्षा राहुल गांधी के भाषण की रहती थी जो बोलते तो तैश में हैं किंतु विषयवस्तु से भटककर हर बात को अडानी पर ले जाने की गलती कर बैठते हैं । वैसे कांग्रेस के पास लोकसभा में शशि थरूर जैसे अनुभवी सदस्य हैं किंतु उनको समुचित अवसर नहीं मिलता। राज्यसभा में तो विपक्ष के एक से एक कद्दावर सदस्य हैं किंतु उनकी प्रतिभा हंगामे में दबकर रह जाती है। जनता के मन में इस बात को लेकर काफी गुस्सा है कि जिस संसद के संचालन पर प्रतिदिन करोड़ों रुपए खर्च होते हैं उसका ज्यादातर समय हंगामे में नष्ट हो जाता है। गर्भगृह में जाकर होहल्ला न करने के बारे में अनेक बार आम सहमति बनाई जा चुकी है किंतु उसका उल्लंघन करना सांसद अपना अधिकार समझते हैं। यही कारण है कि संसद अब न प्रेरित करती है और न ही प्रभावित। ऐसे में जब किसी को सर्वश्रेष्ठ सांसद घोषित किया जाता है तब आश्चर्य के साथ ही हंसी भी आती है। दरअसल  राजनीतिक दल उम्मीदवार तय करते समय  जीतने की क्षमता का आकलन तो करते हैं किंतु ये नहीं देखा जाता कि वह संसद में बैठने लायक है भी या नहीं । मौजूदा विवाद के लिए सत्ता और प्रतिपक्ष एक - दूसरे पर दोषारोपण करते हुए खुद को दूध का धुला साबित करने का प्रयास कर रहे हैं किंतु यथार्थ ये है कि इस दुरावस्था के लिए सभी बराबर के जिम्मेदार हैं । आज जो सत्ता में हैं वे भी विपक्ष में रहते हुए यही करते थे और जो विपक्ष में हैं उनका इतिहास भी इसी तरह का है।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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