Saturday 2 December 2023

मुसलमानों को अपने पाले में खींचने में कामयाब होती लग रही कांग्रेस


कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस की सफलता का सबसे बड़ा कारण मुस्लिम मतदाताओं का देवगौड़ा परिवार के जनता दल ( सेकुलर ) से छिटक कर उसकी तरफ घूम जाना रहा। परिणामस्वरूप भाजपा का मत प्रतिशत तो यथावत रहा किंतु जनता दल ( सेकुलर ) का 5 प्रतिशत कम होकर कांग्रेस के खाते में आ गया। दरअसल कांग्रेस मुस्लिमों में ये बात फैलाने में पूरी तरह से सफल रही कि  पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी.देवगौड़ा के पुत्र कुमार स्वामी भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बन सकते हैं। इसका कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काफी समय से देवगौड़ा जी की प्रशंसा किया जाना था। हालांकि 2018 में त्रिशंकु विधानसभा बनने के बाद कुमारस्वामी को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनवाया था । दलबदल के कारण वह सरकार के गिरने से भाजपा सत्ता में आ गई किंतु 2023 में कांग्रेस और जनता दल ( सेकुलर ) में गठजोड़ नहीं हो सका। बीते अनेक चुनावों से राज्य का मुस्लिम समुदाय जनता दल ( सेकुलर ) से जुड़ा हुआ था। लेकिन पिछले चुनाव में उसका ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में होने से देवगौड़ा परिवार मैसूर अंचल के अपने प्रभाव क्षेत्र तक में मात खा गया। ये भी देखने में आया कि दूसरे राज्यों से मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कर्नाटक आकर मुस्लिम मतदाताओं के मन में ये बात बिठा दी कि जनता दल ( सेकुलर ) का समर्थन करने से भाजपा मजबूत होगी। ये समझाइश काम कर गई और कांग्रेस को अच्छा खासा बहुमत मिल गया। उसी के बाद कुमारस्वामी ने भाजपा की ओर हाथ बढ़ाया  जिससे वे कम से कम लोकसभा चुनाव में तो  प्रासंगिक बने रहें। इस प्रकार कांग्रेस का ये कहना कि फलां पार्टी भाजपा की बी टीम है , उसकी रणनीति का हिस्सा बनने लगा। उल्लेखनीय है असदुद्दीन ओवैसी को लेकर उसका ये प्रचार काफी समय से चला आ रहा है और इसका प्रभाव भी कम से कम उत्तर भारत में तो देखने मिला ही । लेकिन कर्नाटक के बाद कांग्रेस ने जिस कुशलता से तेलंगाना में इस दांव को आजमाया उसके अनुकूल  परिणाम देखने मिल रहे हैं। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के बाद एग्जिट पोल के जो निष्कर्ष आए हैं वे सभी तेलंगाना में बीआरएस  सरकार की विदाई का संकेत देते हुए कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिलने का दावा कर रहे हैं। और इसका सबसे बड़ा जो कारण बताया जा रहा है कि हैदराबाद महानगर में ओवैसी के आभामंडल के अलावा अन्य शहरों , कस्बों और गांवों में फैले मुसलमानों के बीच कांग्रेस का ये नारा असर कर गया कि भाजपा के दो यार - ओवैसी और केसीआर । यद्यपि भाजपा गलत फैसले करने के कारण मुकाबले में पूरी तरह नजर नहीं आई किंतु प्रधानमंत्री के इस बयान से कि श्री राव उनके पास एनडीए में शामिल होने आए थे किंतु उन्होंने मना कर दिया , भाजपा को तो लाभ हुआ नहीं किंतु बीआरएस मुसलमानों की नजर में गिर गई जिसका  फायदा कांग्रेस को मिला । हालांकि ये मान लेना जल्दबाजी होगी कि एग्जिट पोल ही परिणाम है किंतु इतना तो तय है कि तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं के अलावा मुस्लिम तुष्टिकरण  के तमाम फैसलों के बावजूद श्री राव 2018 वाला जादू कायम रखने में विफल प्रतीत हो रहे हैं तो उसका कारण मुसलमानों का कांग्रेस पर मेहरबान होना है। यदि ऐसा वाकई होता है और तेलंगाना में तमाम अनुमानों के मुताबिक कांग्रेस सत्ता हथिया लेती है तब ये राष्ट्रीय राजनीति में बड़े बदलाव का कारण बने बिना नहीं रहेगा। विशेष रूप से उ.प्र, बिहार और प.बंगाल में क्रमशः अखिलेश यादव , लालू और नीतीश के अलावा ममता बैनर्जी के लिए चिंता के कारण उत्पन्न हो जाएंगे। सबसे बड़ी बात ये होगी कि इंडिया नामक गठबंधन में कांग्रेस हावी होने की स्थिति में आ जाएगी । महाराष्ट्र में शरद पवार की राजनीति भी काफी हद तक मुस्लिम मतों पर टिकी हुई है जो इस बदलाव से कमजोर हो सकती है। कुल मिलाकर ये मान लेना गलत न होगा कि यदि तेलंगाना कांग्रेस के कब्जे में आता है तो इसका साफ मतलब होगा कि बाबरी ढांचा  गिरने के बाद जो मुसलमान  उससे दूर चले गए थे वे भाजपा के बढ़ते प्रभुत्व से घबराकर वापस  लौट रहे हैं। और ऐसा होने से अल्पसंख्यकों के बल पर राजनीति करने वाली अनेक तीसरी ताकतें घुटनों के बल आने मजबूर हो जाएंगी। ये बदलाव कांग्रेस को कितना लाभ पहुंचा सकेगा वह तो बाद में ही पता चलेगा लेकिन इसका जवाबी असर हिंदुओं के ध्रुवीकरण के तौर पर किस मात्रा में होता है ये देखने वाली बात होगी क्योंकि हिंदुत्व का झंडा उठाकर घूमने के बाद भी भाजपा को सभी राज्यों में हिंदुओं का उतना  समर्थन प्राप्त नहीं हो पाता जितना मुस्लिम उसका विरोध करते हैं। ऐसा लगता है कांग्रेस  ने काफी सोच - समझकर मुसलमानों को बाकी गैर भाजपाई पार्टियों के शिकंजे से मुक्त करवाने की जो रणनीति कर्नाटक के बाद तेलंगाना में भी अपनाई वह फिलहाल तो काम करती दिख रही है।  लोकसभा चुनाव  के लिए जो इंडिया गठबंधन बना है उसके घटक दल कांग्रेस के इस पैंतरे पर क्या रुख अपनाते हैं ये उत्सुकता का विषय है।

- रवीन्द्र वाजपेयी



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