Friday 15 December 2023

संसद में घुसने वालों के पीछे छिपी ताकतों का पर्दाफाश भी जरूरी


लोकसभा में कुछ युवकों के दर्शक दीर्घा से कूदकर सदन में आ जाने और रंगीन धुआं छोड़ने वाली स्मोक गन का उपयोग करने के बाद पूरे देश में संसद की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इन युवकों के कुछ साथी सदन के बाहर प्रांगण में नारेबाजी के साथ रंगीन धुआं उड़ाते रहे। इस वारदात को अंजाम देने वाले सभी 6 आरोपी पुलिस की गिरफ्त में आ चुके हैं। जिन सुरक्षा कर्मियों की लापरवाही से दो युवक जूते में छिपाकर स्मोक गन दर्शक दीर्घा तक ले जा सके वे सभी निलंबित कर दिए गए।  गत दिवस संसद में इसे लेकर खूब हंगामा हुआ। विपक्ष ने गृहमंत्री अमित शाह से त्यागपत्र मांगा जो स्वाभाविक भी था।  सबसे ज्यादा उंगलियां मैसूर से  भाजपा के सांसद प्रताप सिम्हा पर उठ रही हैं जिनकी सिफारिश पर सदन में कूदे युवकों को प्रवेश पत्र जारी हुआ था। आम तौर पर सभी सांसद अपने क्षेत्र के लोगों के अलावा परिचितों को संसद की कार्रवाई देखने हेतु प्रवेश पत्र जारी करने की अनुशंसा करते हैं। लेकिन जूते के भीतर स्मोक गन छिपाकर ले जाने के लिए सुरक्षा जांच में लापरवाही ही  जिम्मेदार मानी जाएगी। बावजूद इसके श्री सिम्हा से पूछताछ होनी चाहिए और यदि ऐसा लगे कि उन्होंने प्रवेश पत्र जारी करवाने में किसी भी प्रकार की लापरवाही बरती तो उनकी सदस्यता समाप्त किए जाने के साथ ही जो भी उचित दंड हो दिया जावे  , ताकि बाकी सांसद  सतर्क हो जाएं। गृहमंत्री श्री शाह को भी घटना की विस्तृत जानकारी संसद के माध्यम से देश को देते हुए आश्वस्त करना चाहिए कि संसद की सुरक्षा में कोई कमी नहीं छोड़ी जावेगी। वारदात में शरीक सभी लोग तानाशाही नहीं चलेगी जैसे नारे लगाते हुए खुद को बेरोजगारी से त्रस्त बता रहे थे। शहीदे आजम भगतसिंह के नाम पर बने किसी संगठन से इनका जुड़ाव बताया जा रहा हैं। रोचक तथ्य ये है कि वे सभी अलग - अलग - अलग स्थानों के रहने वाले हैं और सोशल मीडिया के जरिए संपर्क में आए। लेकिन उन्होंने संसद में घुसकर हंगामा करने और स्मोक गन का उपयोग कर सनसनी फैलाने का फैसला क्यों किया ये गंभीर प्रश्न है। पकड़ी गई महिला की दिल्ली में हुए सरकार विरोधी आंदोलनों में उपस्थिति से ये संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि उसके विपक्ष , विशेष रूप से वामपंथी संगठनों से रिश्ते हैं। अनेक विपक्षी नेताओं ने पकड़े गए लोगों को भटका हुआ बताकर बचाव भी किया और ये प्रचारित करने की कोशिश की कि बेरोजगारी से बढ़ते तनाव के कारण वे ऐसा कदम उठाने मजबूर हुए। यद्यपि ये दलील किसी के गले नहीं उतर रही क्योंकि ये युवक संसद के बाहर अर्थात जंतर - मंतर पर भी धरना - प्रदर्शन कर सकते थे। यदि उनका उद्देश्य महज चर्चाओं में आने का था तो उसके लिए वे और भी कोई उपाय तलाश सकते थे। उन सभी पर यूएपीए जैसे सख्त कानून के अंतर्गत कार्रवाई की जा रही है। लेकिन विपक्ष के कुछ नेताओं सहित वामपंथी रुझान वाले यूट्यूब चैनल चलाने वाले पत्रकारों ने उनका बचाव करते हुए इस कृत्य को  युवाओं में बढ़ते असंतोष का प्रदर्शन बताया जिससे  लगने लगा है कि ये भी शाहीन बाग जैसे किसी प्रयोग की कोशिश है जिसे कांग्रेस , वामपंथी और मुस्लिम कट्टरपंथी ताकतों का मिला जुला समर्थन था। दिल्ली में साल भर चले किसान आंदोलन के बारे में  भी  जब ये कहा गया कि उसमें खालिस्तानी तत्व घुस आए हैं तो उसे किसानों को बदनाम करने का सरकारी षडयंत्र बताया गया किंतु गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले पर उत्पात होने और कुछ निहंगों द्वारा वहां तिरंगे वाली जगह धार्मिक ध्वज फहराए जाने के बाद  किसान नेताओं के सामने सिवाय माफी मांगने के और कोई चारा नहीं बचा। लेकिन महेंद्र सिंह टिकैत को उस घटना के पीछे भी रास्वसंघ का हाथ दिखाई दिया। जेएनयू, जामिया मिलिया , उस्मानिया , अलीगढ़ मुस्लिम और जादवपुर  विवि में भारत विरोधी नारे  , नागरिकता कानून और कृषि कानून जैसे अनेक मामलों में हुए आंदोलन को जिस योजनाबद्ध तरीके से प्रचार दिया गया उसके पीछे मोदी सरकार की छवि जनविरोधी बनाने की कार्ययोजना ही रही। हालिया विधानसभा चुनाव में भाजपा को तीन राज्यों में मिली सफलता ने कुंठित मानसिकता वाले पत्रकारों और उनके सरपरस्त विपक्षी राजनेताओं के पेट में जो मरोड़ पैदा किया उसकी प्रतिक्रिया इस तरह की वारदातों के रूप में  सामने आती रहेगी ।किसान आंदोलन के समर्थन में अमेरिका , कैनेडा और ब्रिटेन में हुए आंदोलन इसका प्रमाण थे। संसद में घुसे युवकों ने भले ही कोई हिंसा न की हो किंतु उनका अपराध राष्ट्रविरोधी कृत्य है जिसकी कड़ी सजा उनको तो मिलेगी ही किंतु इस प्रयास के पीछे जिन लोगों का दिमाग है उनकी गर्दन पर भी फंदा कसा जाना चाहिए। अफजल गुरु जैसे गद्दार से सहानुभूति रखने वाले नए - नए रूपों में  सामने आते हैं। 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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