Thursday 12 October 2023

मंडल तो पूरी तरह लागू हुआ नहीं और ये नया बखेड़ा खड़ा हो गया


इन दिनों सोशल मीडिया पर दो वीडियो प्रसारित हो रहे हैं। एक में स्व. इंदिरा गांधी  को ये कहते  सुना जा सकता है कि जाति शब्द को ही देश से हटा देना चाहिए क्योंकि इसके नाम पर लोग समाज को तोड़ते हैं। दूसरे में उनके पोते राहुल गांधी जातिगत आधार पर हिस्सेदारी  की मांग कर रहे हैं। यद्यपि ये मुद्दा मंडल की राजनीति करने वालों ने गर्माया। खास तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो अपने राज्य में जातिगत जनगणना करवाकर उसके आंकड़े भी सार्वजनिक कर दिए। अब कांग्रेस कह रही है वह पूरे देश में जातिगत जनगणना करवाएगी। यद्यपि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपने  पिछले कार्यकाल में करवाई गई जातिगत जनगणना के आंकड़े दोबारा सत्ता में आने के बाद भी जारी करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे और न ही श्री गांधी ने अब तक उन पर ऐसा करने का दबाव ही बनाया। धीरे - धीरे ये बात भी सामने आ रही है कि नीतीश की पार्टी  के साथ ही कांग्रेस में भी जातिगत जनगणना को लेकर विरोध सामने आने लगा है। कुछ नेता खुलकर तो कुछ दबी जुबान बोल रहे हैं।  लेकिन पिछड़ी जातियों को एकजुट करने की रणनीति के अंतर्गत जातिगत जनगणना के जिस दांव को कुछ विपक्षी  दल और कांग्रेस चलना चाह रहे हैं , उसका दुष्प्रभाव भी सामने आने लगा है। मसलन बिहार में ऊंची जातियों का गुस्सा तो अपनी जगह है किंतु पिछड़े और अति पिछड़े जाति समूह जिस तरह जातिगत जनगणना के आंकड़ों को फर्जी बताते हुए दोबारा जनगणना की मांग कर रहे हैं उससे नीतीश के साथ ही लालू प्रसाद यादव और उनका परिवार  दबाव में आ गया है। प्रदेश कांग्रेस के नेता भी उसकी प्रामाणिकता पर  उंगली उठा रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी भले ही विपक्षी गठबंधन में ज्यादातर पार्टियां जातिगत जनगणना के पक्ष में हों किंतु ममता बैनर्जी जैसी प्रमुख नेता अपने राज्य में उसके लिए राजी नहीं हैं।  उ.प्र में भी कांग्रेस के साथ ही सपा के गैर यादव नेता ये कहते सुने जा सकते हैं कि इसका उद्देश्य पहले से ताकतवर बनी हुई ओबीसी जातियों के वर्चस्व पर सरकारी मोहर लगवाना है। बिहार में यादवों के सबसे बड़ी जाति बनकर सामने आने से  उ.प्र में भी हड़कंप है। उधर दलितों और आदिवासियों के बीच भी ये जनगणना असंतोष फैला रही है क्योंकि राहुल जनसंख्या के हिसाब से हिस्सेदारी की जो बात कर रहे हैं उससे उनको डर है कि कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां मिलकर आरक्षण का प्रतिशत इतना न बढ़ा दें जिससे उनके अधिकारों पर अतिक्रमण हो जाए। कुल मिलाकर इस जनगणना पर ओबीसी नेता भले ही खुशी जाहिर कर रहे हों लेकिन आम जनता को इसमें कोई फायदा नजर नहीं आ रहा। इसके साथ ही मुस्लिम समुदाय में भी इस बात  पर नाराजगी है कि उनको न तो पिछड़े वर्ग का लाभ मिलता है और न ही दलित समुदाय का । दूसरी तरफ यदि श्री गांधी के सुझाए अनुसार जनसंख्या के अनुसार आरक्षण और उस जैसे लाभों का बंटवारा किया जाए तब मुस्लिम भी उसके दायरे में आएंगे जो ओबीसी और दलितों को नागवार गुजरेगा।  ऐसे में जातिगत जनगणना भी महज राजनीतिक प्रपंच का शिकार होकर रह जाएगी। उल्लेखनीय है मंडल आयोग की सिफारिशें लागू हुए तीन दशक से ज्यादा बीतने के बाद भी ओबीसी आरक्षण की गुत्थी उलझी हुई है और अनेक राज्यों के मामले सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं। अब जातिगत जनगणना के आंकड़ों के आधार पर आरक्षण सहित उससे जुड़ी अन्य सुविधाओं का पुनर्निर्धारण किस तरह किया जाएगा ये यक्ष प्रश्न है। राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि ये सारी उठापटक भाजपा को मिल रहे जबरदस्त ओबीसी और दलित मतदाताओं के समर्थन को रोकने की जा रही है। लेकिन नीतीश और श्री गांधी भूल जाते हैं कि दलितों और आदिवासियों के बीच जातिगत भेदभाव उतने नहीं हैं जितने ओबीसी में शामिल दर्जनों जातियों और उनके भीतर से उत्पन्न हुई नई - नई उपजातियों में हैं । और इन छोटे - छोटे जाति समूहों में जो नए नेता  उभर आए हैं वे भी  सौदेबाजी  सीख चुके हैं। इसलिए जातिगत जनगणना की राजनीति भी शेर की सवारी जैसी है। नीतीश और लालू प्रसाद तो राजनीति के घाघ हैं किंतु राहुल अभी भी नौसिखिया जैसा व्यवहार कर रहे हैं । उनके भाषण सुनने के बाद ये कहा जा सकता है कि उनको जो रटा दिया जाता है वे उसे ही दोहराते रहते हैं। इसीलिए उनको गंभीरता से नहीं लिया जाता क्योंकि वे किसी मुद्दे की गहराई को जाने बिना ही उसमें कूद जाते हैं। गौरतलब है  हर राज्य में दलित , आदिवासी और ओबीसी का वर्गीकरण अलग - अलग है। ऐसे में किसी एक सर्वमान्य फार्मूले को लागू करना सामाजिक विद्वेष और विघटन का कारण बने नहीं रहेगा । याद रखने  वाली बात है कि अभी तक मंडल की सिफारिशों से तय हुआ आरक्षण ही पूरी तरह लागू नहीं किया जा सका तब इस नए बखेड़े को खड़ा करने का औचित्य समझ से परे है।


- रवीन्द्र वाजपेयी

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