Friday 13 October 2023

चुनाव बना डिस्काउंट सेल और मतदाता ग्राहक


कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने गत दिवस म.प्र के आदिवासी जिले मंडला में पार्टी द्वारा आयोजित  जनाक्रोश रैली में प्रदेश की भाजपा सरकार पर ताबड़तोड़ आरोपों की झड़ी लगाने के साथ कुछ चुनावी वायदे भी कर डाले। जिनमें पहली से 12 वीं तक की मुफ्त शिक्षा के अलावा कक्षा आठवीं तक के छात्रों को  500 रु. , नौवीं और दसवीं में 1000 रु. और 11 वीं तथा 12 वीं के छात्रों को 1500 रु. हर महीने देने का वायदा कर दिया। अपने भाषण में श्रीमती वाड्रा ने अनेक वही बातें दोहराईं जो उनके भ्राता राहुल गांधी हाल ही में पड़ोसी जिले शहडोल में बोलकर गए थे। स्कूली छात्रों को निशुल्क शिक्षा  सरकारी शालाओं में तो अभी भी दी जाती है। कापी, किताबें , सायकिल , स्कूटी , लैपटॉप जैसी चीजों का वितरण भी पात्रतानुसार किया जाता है।  मध्यान्ह भोजन की भी व्यवस्था है। बावजूद इसके आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति दयनीय है। शाला के भवन खस्ता हालत में हैं। शिक्षकों की पर्याप्त संख्या नहीं है । जो हैं वे भी  नियमित नहीं आते। लड़कियों के बारे में तो स्थिति और भी खराब है। आदिवासी  वर्ग को  सरकार से अनेक प्रकार की और भी  सुविधाएं मुफ्त में दी जाती हैं किंतु अपेक्षित परिणाम नहीं निकल रहे। ऐसे में प्रियंका द्वारा नगद रुपए देने का वायदा चुनावी पैंतरा  हो सकता है किंतु इससे आदिवासी बच्चों की शिक्षा का स्तर सुधारने में कोई मदद मिलेगी , यह सोचना गलत है। ऐसा लगता है शिवराज सरकार द्वारा लाड़ली बहना योजना लागू किए जाने के जवाब में  कांग्रेस अब शालेय छात्रों को नगद राशि देने का प्रलोभन देकर उनके माता - पिता को अपनी ओर खींचना चाह रही है। अभी ये स्पष्ट नहीं है कि उक्त योजना केवल गरीब परिवारों के बच्चों के लिए रहेगी अथवा सभी आय वर्गों को इसका लाभ मिलेगा । बहरहाल , चुनावी वायदों से हटकर विचारणीय मुद्दा ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित सरकारी विद्यालयों की दशा जब तक नहीं सुधारी जाती तब तक जो हश्र मध्यान्ह भोजन का हुआ वही छात्रों को दी जाने वाली नगद राशि का होगा। गरीब परिवार के  बच्चों को मिली राशि को उनकी शिक्षा पर खर्च करने के बजाय अभिभावक उससे अपने घर का खर्च चलाएंगे । बेहतर होता श्रीमती वाड्रा ये वायदा करतीं कि आदिवासी क्षेत्रों में संचालित सरकारी विद्यालयों को उच्चस्तरीय एवं सर्वसुविधा संपन्न  बनाया जावेगा। उनमें शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित की जाएगी और वे निजी विद्यालयों की तुलना में कुछ कम भले हों लेकिन दोनों में जमीन - आसमान का अंतर न रहेगा। वास्तविकता ये है कि  शालेय छात्रों को सरकार की तरफ से दी जाने वाली मुफ्त सुविधाएं भी यदि सरकारी विद्यालयों को प्रतिस्पर्धा में खड़ा नहीं कर पा रहीं तो उसका कारण  गुणवत्ता का अभाव है। यहां तक कि दोपहर में दिए जाने वाले मुफ्त आहार तक के सकारात्मक परिणाम नहीं आए , उल्टे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला । ये देखते हुए प्रियंका ने छात्रों को नगद रुपए दिए जाने का जो वायदा किया वह सुनने में तो आकर्षक है। और हो सकता है उसके लालच में कांग्रेस को चुनावी लाभ भी हो जाए किंतु जब तक सरकारी विद्यालयों का स्तर नहीं सुधरेगा तब तक छात्रों को दी जानी मुफ्त सुविधाएं पैसे की बरबादी ही कहलाएगी। यदि राजनीतिक दल केवल चुनावी वायदे उछालकर शिक्षा को बढ़ावा देना चाहते हैं तो फिर ये कहने में कुछ भी गलत नहीं है कि न तो उन्हें विद्यालयों में रुचि है और न ही विद्यार्थियों में । केवल श्रीमती वाड्रा ही नहीं अपितु अन्य राजनीतिक दल भी इसी ढर्रे पर चलकर चुनाव रूपी वैतरणी पार करना चाहते हैं। शिक्षा ही क्यों जनकल्याण की ज्यादातर योजनाएं इसी प्रवृत्ति का शिकार होकर अपने लक्ष्य से भटक जाती हैं। इस बारे में  दिल्ली की केजरीवाल सरकार की तारीफ करनी होगी जिसने सरकारी शालाओं को निजी क्षेत्र की शिक्षण संस्थाओं के मुकाबले ला खड़ा किया। जिन राज्यों में भी आगामी माह विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उनमें सत्तारूढ़ पार्टी के अलावा विपक्ष नगद राशि बांटने पर जोर दे रहा है । मुफ्त शिक्षा और चिकित्सा  की बात भी जोर शोर से की जा रही है किंतु इसके लिए ढांचागत सुधार किए जाने की जो जरूरत है उसके बारे में कोई योजना नजर नहीं आती। राजनीतिक दलों का समूचा चिंतन येन -  केन - प्रकारेण चुनाव जीतने पर केंद्रित हो गया है। मुफ्त की योजनाओं से व्यवस्था में सुधार का असली काम उपेक्षित हो जाता है । निष्पक्ष आकलन करें तो ये लगेगा कि जितना धन मुफ्त उपहारों में खर्च होता है उतने में  शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारा जाए तो जनकल्याण का उद्देश्य कहीं बेहतर तरीके से पूरा हो सकेगा । दुर्भाग्य से भारतीय राजनीति भी पूरी तरह बाजारवाद के शिकंजे में फंसकर रह गई है और चुनाव डिस्काउंट सेल बन गए हैं। मतदाता को ग्राहक समझकर लुभाने की प्रतिस्पर्धा जिस तरह से बढ़ती जा रही है उसके कारण लोकतंत्र मजाक बनकर रह गया है। जिस आदिवासी क्षेत्र में श्रीमती वाड्रा ने गत दिवस रैली की वहां आदिवासियों के विकास के नाम पर बीते 75 साल में अरबों - खरबों रुपए खर्च होने के बाद भी गरीबी , अशिक्षा और पिछड़ापन क्यों है इस सवाल का उत्तर भी दिया जाना चाहिए। 


- रवीन्द्र वाजपेयी


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