Tuesday 10 October 2023

मुस्लिमों के डर से हमास का विरोध करने से बच रही कांग्रेस




इजरायल और फिलिस्तीनियों का झगड़ा पुराना है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब इजरायल अस्तित्व में आया तभी से इस बात का विवाद चला आ रहा है कि यहूदियों ने सैकड़ों साल बाद लौटकर अपना मुल्क आबाद करते हुए वहां रह रहे मुस्लिमों को उनकी जमीन से खदेड़ दिया। लेकिन यहां ये प्रश्न भी तो उठता है कि आखिर यहूदियों का भी तो उस भूभाग पर अधिकार था। जिस येरुशलम  से मुस्लिम और ईसाई समुदाय के लोगों की भावना जुड़ी हुई है वह यहूदियों का भी  पवित्र स्थल है। ऐसे में उससे उनको दूर कैसे रखा जा सकता है ? रही बात फिलिस्तीनियों की तो उनके लिए जो स्थान दोनों पक्षों में हुए समझौते के अंर्तगत आवंटित  किया गया वे उस पर शांति के साथ रहें इसमें किसी को परेशानी नहीं होना चाहिए । लेकिन  इजरायल के अस्तित्व को खत्म करने का जो पागलपन उनके दिमाग में है वह उनके लिए समस्या बना हुआ है। बीते शनिवार गाजा पट्टी पर काबिज हमास नामक इस्लामी उग्रवादी संगठन द्वारा इजरायल पर किए हमले के बाद उत्पन्न हालातों में एक बार फिर ये समस्या चर्चित हो चली है। हमास ने जो किया वह निश्चित रूप से बर्बरता थी और अब इजरायल जो जवाबी कार्रवाई कर रहा है उसमें भी निरपराध लोग जान गंवा रहे हैं।  लेकिन चूंकि हमास ने इस युद्ध को भड़काया इसलिए इजरायल को भी पलटवार करने का अवसर प्राप्त हो गया। जहां तक बात भारत की है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना संकोच किए इजरायल का समर्थन कर दिया। लेकिन देश की दूसरी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस इस मामले में एक बार फिर बड़ी गलती कर बैठी । पार्टी की राष्ट्रीय समिति ने प्रस्ताव पारित कर फिलीस्तीनियों के भूस्वामित्व और स्व - शासन के अधिकार का समर्थन करते हुए मौजूदा संकट के हल हेतु बातचीत का रास्ता तो सुझाया किंतु हमास के हमले की निंदा करने का साहस पार्टी नहीं जुटा सकी ।  इसे लेकर   कार्यसमिति के भीतर भी  मतभेद उभरकर सामने आए। वरिष्ट सदस्य रमेश चेन्निथला ने फिलीस्तीन का समर्थन करने के साथ ही हमास के हमले की निंदा का सुझाव दिया जिसे नजरंदाज कर दिया गया। पार्टी प्रवक्ता जयराम रमेश ने भी अपनी प्रतिक्रिया में हमास या आतंकवाद का जिक्र करने से परहेज किया । फिर भी कार्यसमिति के कुछ सदस्य ये कहने से नहीं चूके कि पार्टी आतंकवाद का विरोध करने से बच रही है। निश्चित रूप से कांग्रेस का ये रवैया मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए ही अपनाया जा रहा है। भारत की घोषित नीति सदा से फिलीस्तीन समर्थक रही है। उसके सर्वोच्च नेता  यासर अराफात को इंदिरा गांधी ने नेहरू शांति पुरस्कार और राजीव गांधी ने इंदिरा शांति पुरस्कार देकर करोड़ों रुपए भी दिए। लेकिन इसका विरोधाभासी पहलू ये रहा कि अराफात ने कभी भी कश्मीर मामले में भारत का समर्थन नहीं किया जबकि उनके संघर्ष को भारत सदैव सहयोग देता रहा। अराफात ही नहीं शायद ही किसी मुस्लिम राष्ट्र ने कश्मीर को भारत का हिस्सा मानने की तरफदारी की हो। ऐसे में फिलीस्तीनियों के न्यायोचित अधिकार के प्रति समर्थन तो मानवीयता की दृष्टि से जरूरी है । ठीक उसी तरह इजरायल भी अब एक ऐसी वास्तविकता है जिसे नकारना असंभव है। ऐसे में कांग्रेस द्वारा हमास की निंदा करने से कन्नी काट जाना ये दर्शाता है कि पार्टी बदलते वैश्विक परिदृश्य के साथ सामंजय नहीं बैठा पा रही। उसे ये भय सता रहा है कि हमास की निंदा से देश के मुसलमान उससे नाराज हो जायेंगे । लेकिन पार्टी  को अपने राजनीतिक फायदे से ऊपर उठकर देश के दूरगामी हितों के बारे में भी सोचना चाहिए। फिलिस्तीनियों के प्रति सहानुभूति वाजिब  है। यासर अराफात ने उनके लिए जो संघर्ष किया उसके लिए उनकी प्रशंसा करना भी गलत नहीं है किंतु  कूटनीति में आपसी संबंध एक पक्षीय नहीं होते। मसलन यदि भारत ने यासर अराफात के संघर्ष को समर्थन दिया तब उन पर भी कश्मीर पर भारत के रुख का समर्थन करने का दबाव बनाना था । यही चूक तिब्बत पर चीन द्वारा कब्जा किए जाने का समर्थन करते समय हुई जब हिंदी - चीनी , भाई - भाई की खुश फहमी में डूबकर हमने चीन के विस्तारवाद को मान्यता दी । लेकिन वही चीन कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का सबसे बड़ा समर्थक बना हुआ है । समय आ गया है जब कांग्रेस को ढर्रे से निकलना चाहिए। फिलिस्तीन का समर्थन  बुरा नहीं किंतु हमास जैसे आतंकवादी संगठन द्वारा की जा रही बर्बरता की भी खुले शब्दों में निंदा जरूरी है क्योंकि दुनिया में जितने भी इस्लामिक आतंकवादी संगठन हैं उनके  बीच प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से निकटता है । और  वे सभी भारत विरोधी हैं । वैसे ये अच्छा संकेत है कि कांग्रेस पार्टी में थोड़े ही सही किंतु कुछ नेता तो हैं जो ऐसे मामलों में खुलकर राय व्यक्त करने  का साहस दिखाते हैं।

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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