Saturday 21 October 2023

सपा और कांग्रेस के बीच कलह से विपक्षी एकता का भविष्य खतरे में




हालांकि चुनाव के मौसम में ऐसी  बातें बेहद आम हैं किंतु बीते दो दिनों में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस नेताओं के बीच जिस तरह की बयानबाजी हुई उसका बुरा असर  इंडिया नामक  नवजात विपक्षी गठबंधन पर पड़े बिना नहीं रहेगा।  श्री यादव के अनुसार  सपा नेताओं की  म.प्र के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के साथ जो चर्चा हुई उसमें पिछले आंकड़ों के आधार पर उसके लिए छह विधानसभा सीटें छोड़ने पर सहमति बनी थी। लेकिन कांग्रेस द्वारा उन सीटों पर भी उम्मीदवार घोषित करने से नाराज सपा अध्यक्ष ने  उसको धोखेबाज कहकर चेतावनी दे डाली कि भविष्य में  वे उसके साथ गठबंधन पर अपने ढंग से विचार करेंगे। इसी के साथ उन्होंने उ.प्र कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय द्वारा सपा के बारे में दिए बयान पर नाराजगी जताते हुए उनके बारे में चिरकुट जैसे शब्द का प्रयोग तक कर डाला । कांग्रेस इस बयान से हतप्रभ रह गई । श्री राय ने पहले तो संयम दिखाया किंतु बाद में अखिलेश पर ये कहते हुए हमला किया कि जो अपने पिता का सम्मान न कर सका उससे और क्या अपेक्षा की जा सकती है। बात यहीं नहीं रुकी और म.प्र कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने पत्रकारों द्वारा अखिलेश के बयान पर सवाल पूछे जाने पर कह दिया छोड़ो अखिलेश - वखलेश। इस सबके बीच सपा ने प्रदेश में अनेक  सीटों पर प्रत्याशी उतारकर समझौते की गुंजाइश ही समाप्त कर दी। दोनों पार्टियों के बीच गरमागरम बयानबाजी उप्र में पहले भी हुई है। हालांकि वहां  2017 का  विधानसभा चुनाव राहुल गांधी और अखिलेश यादव  मिलकर लड़े थे किंतु बाद में वह गठबंधन टूट गया। हालांकि हाल ही में हुए घोसी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने सपा को समर्थन दिया और वह जीती किंतु पड़ोसी राज्य  उत्तराखंड के बागेश्वर उपचुनाव में सपा का उम्मीदवार खड़ा होने से कांग्रेस को मात खानी पड़ी। उसके बाद से ही दोनों के मन में खटास बढ़ गई।  म.प्र की राजनीति वैसे भी दो ध्रुवीय होने से कांग्रेस को लगा कि  अन्य दलों से तालमेल बिठाने पर सपा से  ज्यादा आम आदमी पार्टी को सीटें देनी होंगी। इसीलिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने किसी अन्य विपक्षी दल को भाव नहीं दिया । जबकि भाजपा से आए तमाम नेताओं को  टिकिट दे दी। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और भगवंत सिंह मान ने प्रदेश में की गई रैलियों में जिस तरह कांग्रेस को आड़े हाथ लिया उससे श्री नाथ खुश नहीं थे। विपक्षी एकता के नाम पर सीटें न छोड़ना पड़ें इसलिए उन्होंने 5 अक्टूबर को भोपाल में होने वाली इंडिया की पहली बड़ी रैली भी रद्द करवा दी। इस घटनाक्रम से ये स्पष्ट हो गया कि 2024 में भाजपा को हराने की मंशा से एकजुट होने का दिखावा कर रहे विपक्षी दलों के बीच आपसी विश्वास का नितांत अभाव है । और वे अपने प्रभावक्षेत्र में दूसरे किसी को बर्दाश्त करने राजी नहीं हैं । म. प्र के अलावा  राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस ने अन्य किसी विपक्षी दल से गठजोड़ नहीं किया। तेलंगाना में वह के.सी राव की क्षेत्रीय पार्टी के विरुद्ध मैदान में है । म.प्र में बसपा भी अलग लड़ रही है। इस घटनाक्रम से एक बार फिर ये साफ हो गया कि विपक्षी एकता पर नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं भारी पड़ रही हैं। श्री नाथ को अपने वर्चस्व की ज्यादा फिक्र है , बजाय विपक्षी एकता के। इसी तरह  श्री केजरीवाल  और अखिलेश जैसे नेताओं में भी विपक्षी गठबंधन की आड़ में अपनी पार्टी का विस्तार कर लेने की भावना है। इसीलिए इंडिया गठबंधन  राष्ट्रीय विकल्प बनने का स्वरूप नहीं ले पा रहा। उदाहरण के लिए  म.प्र  , राजस्थान और छत्तीसगढ़ में  कांग्रेस यदि विपक्षी गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ती तो भाजपा की मुश्किलें बढ़ जातीं । लेकिन उसके भीतर ही एक वर्ग ऐसा है जो आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ने का घोर विरोधी है। विशेष रूप से पंजाब और दिल्ली के कांग्रेस जन इस बारे में ज्यादा ही मुखर हैं । इसी तरह उ. प्र में सपा नेतृत्व कांग्रेस की दयनीय स्थिति देखते हुए उसके साथ जुड़ने के प्रति उदासीन है। अन्य राज्यों में भी कमोबेश ऐसी स्थितियां नजर आ रही हैं। भले ही ये कहा जाए कि इंडिया का गठन 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए किया गया है किंतु उसके पहले हो रहे राज्यों के विधानसभा चुनाव में विपक्षी एकता का पूर्वाभ्यास किया जाता तो आगे का रास्ता आसान हो जाता। बीते दो दिनों में सपा और कांग्रेस के बीच हुई  तीखी बयानबाजी के बाद विपक्षी एकता को लेकर व्यक्त की जा रही शंकाएं और गहराती जाएंगी। ऐसे में संभावना यही है कि म.प्र , राजस्थान , छत्तीसगढ़ और तेलंगाना  के चुनाव परिणामों के बाद राष्ट्रीय राजनीति के समीकरण नया रूप ले सकते हैं।


- रवीन्द्र वाजपेयी 

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