Monday 21 March 2022

पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन की आहट भारत के लिए खतरे का संकेत



यूक्रेन पर रूसी हमले का समर्थन करने मास्को पहुंचकर खुद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने का प्रयास करने वाले पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान अपने ही देश में चौतरफा घिर गये हैं | विपक्ष द्वारा पेश किये जा रहे अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने में उनके हाथ - पाँव बुरी तरह फूल रहे हैं | उन्होंने अपने समर्थकों की भीड़ एकत्र कर विपक्ष को धमकाना चाहा  तो जवाब में भी जनसैलाब सड़कों पर उतर आया | उसके अलावा देश के अनेक हिस्सों में जिस तरह से आतंकवादी धमाके हो रहे हैं उसके कारण भी  अस्थिरता का माहौल बन गया है | जिस तालिबान की जीत पर इमरान खुशी  से फूले नहीं समा रहे थे वही अब उनके गले में सांप की तरह लिपट गया है और उसके इलाकों को कब्जाने  पर आमादा है | पश्चिमी सीमान्त पर जिन आतंकवादी गुटों को अमेरिका के विरुद्ध लड़ने के लिए पाकिस्तान ने पनाह दे रखी थी वे  उन इलाकों को अपना बताकर मरने – मारने पर उतारू हो चले हैं | अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की विदाई के बाद वहां भारत द्वारा संचालित प्रकल्पों के खतरे में पड़  जाने से पाकिस्तान बहुत खुश था | उसे लगने लगा था कि तालिबानी हुकूमत भारत से अपने रिश्ते पूरी तरह खत्म कर लेगी जिससे पाकिस्तान पर उसकी निर्भरता बढ़ेगी किन्तु भारत से वहां गेंहू की खेफ पहुँचने के लिए पाकिस्तान को अपना रास्ता जिस तरह से उपलब्ध करवाना पड़ा उससे उसकी उम्मीदों को ठेस पहुँची |  यूक्रेन संकट के बहाने रूस की सहानुभूति और समर्थन हासिल करने का इमरान का मंसूबा भी कामयाब होता नहीं दिखा क्योंकि  राष्ट्रपति पुतिन ने तो बीते कुछ दिनों में ही भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से  फोन पर अनेक बार लम्बी बातचीत की ही, चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ भी श्री मोदी की बातचीत हुई | अमेरिका ने पाकिस्तान को तो रूस के समर्थन में खड़े होने पर   लताड़ा किन्तु भारत के तटस्थ रहने से नाराजगी के बावजूद भी किसी तरह की धमकी या प्रतिबन्ध की उसकी हिम्मत नहीं हुई | जबकि जिनपिंग को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन रूस की सहायता करने के विरुद्ध चेतावनी दे चुके हैं | इस वजह से चीन भी खुलकर इमरान सरकार को टेका लगाने से बचता लग रहा है | आखिरी दांव के  तौर पर इमरान ने भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के साथ ही कूटनीतिक रिश्तों में मधुरता लाने की पेशकश भी की किन्तु भारत ने आतंकवाद को रोकने की  शर्त के साथ उसे ठुकरा दिया | आर्थिक दृष्टि से खोखले हो चुके पाकिस्तान को कर्ज देने के लिए न कोई देश तैयार है और न ही अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान | इन सबके कारण इमरान तेजी से अपना प्रभाव खोते जा रहे थे जिसका लाभ लेने के लिए विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव के जरिये उनको हटाने का पैंतरा चल दिया | इस पर इमरान ने जनता के समर्थन से विपक्ष को दबाने का जो प्रयास किया वह भी औंधे मुंह गिरा और विपक्ष ने उससे बड़ा शक्ति  प्रदर्शन कर डाला | और तब उन्होंने सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा की शरण ली  जिनकी  कृपा से अल्पमत में होने के बाद भी वे सत्ता पर काबिज हो सके थे | लेकिन जैसी कि खबर आई है जनरल ने उनको सलाह  दी है कि इस सप्ताह  इस्लामाबाद में होने जा रहे वैश्विक इस्लामिक सम्मेलन के बाद अविश्वास प्रस्ताव के पूर्व ही इस्तीफ़ा देकर किसी और को प्रधानमंत्री बनाकर राजनीतिक अनिश्चितता समाप्त करें ताकि समय पूर्व चुनाव टाला जा सके | इसके अलावा सेनाध्यक्ष ने उनको ये चेतावनी भी दी कि वे भीड़ का इस्तेमाल कर विपक्ष को दबाने जैसी हरकत से बाज आयें अन्यथा सेना को मजबूर होकर कदम उठाने पड़ेंगे | पाकिस्तान में इस्लामिक सम्मेलन का आयोजन कर इमरान इस्लामिक जगत के नेता बनने का ख़्वाब देखने के साथ ही देश की जनता को भी अपने अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव का एहसास करवाना चाह रहे थे , लेकिन जनरल बाजवा की खरी – खरी सुनने के बाद उनके लिए सभी  रास्ते बंद नजर आ रहे हैं | इमरान खान किसी और को सत्ता सौंपकर हट जायेंगे या फिर हेकड़ी  दिखाकर संघर्ष के हालात पैदा कर देंगे,  ये देखने वाली बात होगी क्योंकि उस स्थिति में जैसा जनरल बाजवा ने कहा , फौज हस्तक्षेप करने से नहीं चूकेगी और ऐसा होने  पर भारत के लिए खतरा बढ़ जाएगा  क्योंकि जनरल बाजवा भारत के विरुद्ध सदैव आक्रामक रवैया अपनाने पर आमादा रहते हैं | कश्मीर में उपद्रव करवाने के लिए आतंवादियों के प्रशिक्षण का जो काम  वहां की सेना करती है उसके पीछे जनरल की भूमिका किसी से छिपी हुई नहीं है | वैसे भी पाकिस्तान में जब – जब भी फौजी शासन आया तब - तब भारत के साथ सीधे युद्ध हुआ | यदि  सीधा युद्ध न हुआ तो भी आतंकवाद की शक्ल में छद्म युद्ध तो हम पर लादा ही जाता रहा | ये देखते हुए पाकिस्तान के मौजूदा हालात भारत की चिंता बढाने वाले हैं | चुनी हुई सरकार के कमजोर होने के बाद वहां सेना का सत्ता प्रतिष्ठान पर पूरी तरह काबिज होना तय है | वैसे भी इमरान सरकार को जनरल बाजवा ही इतने समय तक टिकाये रहे और जब उन्हें लगने लगा कि वे उन पर बोझ बनते जा रहे हैं तो उन्होंने भी अपना हाथ खींच लिया | एक चुनी हुई सरकार के प्रधानमन्त्री द्वारा अपने विरूद्ध विपक्ष के अविश्वास का सामना करने के लिए सेनाध्यक्ष से परामर्श करने मात्र से ये स्पष्ट हो जाता है कि इस पड़ोसी देश का प्रजातंत्र किस हद तक फौज का बंधुआ है | इमरान सरकार बचेगी या जायेगी , उनकी जगह दूसरा कोई प्रधानमंत्री बनेगा या जनरल बाजवा खुद सत्ता पर काबिज हो जायेंगे , इन सब सवालों का जवाब जल्द  सामने आ जाएगा | लेकिन भारत को पाकिस्तान के भीतर होने वाली हर उठापटक पर पैनी नजर रखनी होगी क्योंकि उसका सीधा असर हम पर पड़ता है | जम्मू – कश्मीर में विधानसभा चुनाव करवाने की तैयारियां केंद्र सरकार की तरफ से की जाने लगी हैं | इसलिए वहां राजनीतिक गतिविधियों के साथ ही  आतंकवादी वारदातों में भी तेजी आ सकती है | बीते कुछ दिनों में अनेक पंचों – सरपंचों की हत्या इसका संकेत है | हालाँकि आतंकवाद विरोधी मुहिम भी बिना रुके जारी है लेकिन पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आने वाला | इस्लामिक सम्मलेन में हुर्रियत कांफ्रेंस को न्यौता भेजा जाना इसका प्रमाण है | उस दृष्टि से ये सप्ताह बेहद संवेदनशील होगा | यूक्रेन संकट में बेहद सूझबूझ के साथ कूटनीतिक कदम उठाने के बाद भारत सरकार के लिए पाकिस्तान का मौजूदा राजनीतिक घटनाचक्र किसी चुनौती से कम न होगा |  

-रवीन्द्र वाजपेयी


                             

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