Tuesday 22 March 2022

राज्यसभा को सौदेबाजी और नेताओं के पुनर्वास का जरिया बनने से रोकना जरूरी



 
राज्यसभा संसद का उच्च सदन कहलाती है | अंग्रेजी में इसे हाउस ऑफ एल्डर्स कहते हैं | जहाँ – जहाँ संसदीय लोकतंत्र है उन देशों में इस तरह के उच्च सदन का अस्तित्व है | हालाँकि अमेरिका में राष्ट्रपति प्रणाली वाला लोकतंत्र है किन्त्तु वहां की संसद (कांग्रेस) में भी सीनेट नामक उच्च सदन है | हमारे देश में चूंकि ब्रिटिश संसदीय प्रणाली अपनाई गई , लिहाजा हाउस ऑफ लॉर्ड्स की तरह से राज्यसभा नामक सदन का प्रावधान किया गया | उच्च सदन की विशेषता ये  है कि ये कभी  भंग नहीं होता | इसके सदस्यों का कार्यकाल लोकसभा के पांच की बजाय छह वर्षों का होता है | दो वर्षों के अंतराल में एक तिहाई सदस्य निवृत्त होते हैं जिनका चुनाव राज्यों की विधानसभा से किया जाता है | विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाली हस्तियों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाने की भी व्यवस्था है | लोकसभा के भंग रहने की दशा में काम चलाऊ सरकार उच्च सदन के माध्यम से महत्वपूर्ण फैसले कर सकती है | इस सदन को गठित करने का असली उद्देश्य समाज के उन प्रतिभाशाली और उज्जवल छवि के लोगों को संसदीय प्रक्रिया में शामिल करना है जो चुनाव लड़ने से बचते या यूँ कहें कि राजनीति से अमूमन दूर रहते हैं | इसके अलावा राजनीतिक दलों में भी अनेक ऐसे नेता होते हैं जो चुनाव चक्कर  से दूर रहने के बावजूद देश के लिए बेहद उपयोगी समझे जाते हैं | इसलिए अपेक्षा ये  रहती है कि राजनीतिक दल उच्च सदन की गरिमा के मद्देनजर ऐसे व्यक्तियों का चयन  करें जिनकी सेवाएं और सुझाव राष्ट्रहित में हों | अनेक ऐसे बड़े नेता जिनके लोकसभा चुनाव हार जाने  के बावजूद संसद में उनकी उपस्थिति  आवश्यक प्रतीत होती है , तब उन्हें भी उच्च सदन के रास्ते सांसद बनाया जाता है | उल्लेखनीय है कि 10 वर्ष तक प्रधानमंत्री रहे डा. मनमोहन सिंह राज्यसभा के माध्यम से ही सांसद बनते आये हैं | अपने जीवन में उन्होंने केवल एक मर्तबा लोकसभा चुनाव दिल्ली से लड़ा जिसमें वे पराजित हो गये | और भी अनेक ऐसे दिग्गज हैं जिनका संसदीय जीवन राज्यसभा में ही व्यतीत हुआ | तमाम ऐसे नेता हैं जो राज्यसभा में रहकर लोकप्रिय हुए और तब उनकी पार्टी ने उनको लोकसभा चुनाव लड़वाया | कहने का आशय ये है कि राज्यसभा महज संसद का सदन मात्र न होकर एक ऐसा मंच है जहां विभिन्न क्षेत्रों  के श्रेष्ठ  और योग्य व्यक्तित्वों की प्रतिभा का राष्ट्र के विकास में उपयोग किया जाना  अपेक्षित है  |  भारत में   आजादी के कुछ समय बाद तक तो इस बात का ध्यान रखा गया कि इसकी गरिमा बनी रहे लेकिन कालान्तर में उसे अनदेखा किये  जाने का दुष्परिणाम ये हुआ कि वह पिछले दरवाजे से संसद में घुसने का जरिया बन गया | चुनावों में हारे नेताओं के अलावा उद्योगपतियों को इसकी सदस्यता अघोषित तौर पर बेची जाने लगी | अनेक बड़े अधिवक्ताओं ने राजनेताओं के मुकदमे लड़ने के उपकारस्वरूप उच्च सदन की सदस्यता हासिल की | झारखंड और कर्नाटक में निर्दलियों के साथ ही राजनीतिक दलों के विधायकों तक ने धनकुबेरों को अपना मत बेचा | अन्यथा कोई कारण नहीं था कि बिना किसी राजनीतिक आधार के विजय माल्या जैसा व्यक्ति राज्यसभा में आता और अनिल अम्बानी समाजवादी पार्टी द्वारा उच्च सदन के सदस्य बनाये जाते |  यदि राज्यसभा का इतिहास खंगाला जावे तो अनेक ऐसे नाम मिलेंगे जिनका इस सदन में आना संसदीय गरिमा के सर्वथा विरुद्ध था |  सवाल ये है कि इसके लिए दोषी कौन है और उत्तर है हमारे राजनीतिक दल जिन्होंने उच्च सदन की उच्चता का मजाक बनाकर रख दिया | गत दिवस आम आदमी पार्टी ने पंजाब से जिन लोगों को राज्यसभा के लिए उम्मीदवार बनाया उनमें राघव चड्डा भी हैं जो वर्तमान में दिल्ली से विधायक हैं | 33 वर्षीय राघव उच्च सदन में सबसे कम उम्र के सदस्य होंगे | पेशे से वे चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं | उनके साथ ही दिल्ली आईईटी के प्रोफ़ेसर संदीप पाठक भी प्रत्याशी हैं | जिनकी पेशेवर योग्यता और अनुभव प्रभावित करता है | क्रिकेटर हरभजन सिंह को भी पार्टी ने राज्यसभा की उम्मीदवारी दी है | यद्यपि दो अन्य  नामों की योग्यता उनकी आर्थिक सम्पन्नता ही है | इसी तरह दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी ने कुछ पूंजीपतियों को राज्यसभा में भेजा था जिसके बाद  नई राजनीति का दावा ठोकने वाले अरविन्द केजरीवाल की नीयत पर उनकी अपनी ही पार्टी के भीतर सवाल उठे और पार्टी की स्थापना करने वाले अनेक नेता उससे किनारा कर गये | ऐसा लगता है श्री केजरीवाल ने उससे सबक लिया जिसकी झलक पंजाब में बनाये गये  राज्यसभा उम्मीदवारों से मिलती है | हालंकि इस बारे में एक बात और भी देखी जाती है कि राजनीतिक दल अपने वर्चस्व वाले राज्यों में दूसरे राज्यों के अपने नेताओं या धन्ना सेठों को राज्यसभा में भेजते हैं | राघव चड्डा इसका ताजा उदाहरण हैं |  केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और तमिलनाडु के एल.मुरुगन म.प्र से राज्यसभा सदस्य हैं | डा.मनमोहन सिंह को कांग्रेस  असम से लगातार  राज्यसभा में लाती जा रही है | लेकिन उच्च सदन का जायजा लेने पर ये साफ़ हो जाता है कि इसमें अनेक ऐसे चेहरे हैं जो उनकी  पार्टी के लिए भले ही उपयोगी हों लेकिन उच्च सदन के मापदंडों के लिहाज से वे कमतर प्रतीत होते हैं | इनमें से कुछ सदस्य तो ऐसे हैं जो शायद ही सदन में बोलते देखे जाते हों |  गुटीय और  जातिगत संतुलन बनाये रखने के लिए भी अनेक लोगों को राजनीतिक दलों द्वारा राज्यसभा में बिठा दिया जाता है | इनमें से कुछ बेशक अपने चयन को सार्थक साबित करते हैं जबकि अधिकतर मिट्टी की माधो साबित होते रहे हैं | राजनीतिक दलों के लिए राज्यसभा की सीट चुनावी चंदे का स्रोत भी मानी जाती है | इसका संकेत  आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्यों में से भी कुछ को देखकर मिल जाता है | हालाँकि केन्द्रीय मंत्रीमंडल में शामिल किये गये एस. जयशंकर , हरदीप पुरी और अश्विन वैष्णव जैसे लोग अपने चयन को सही साबित करते हैं वहीं  कुछ  ऐसे वरिष्ठ राजनेता हैं जो चुनाव हार जाने के  बाद दबाव बनाकर उच्च सदन में आ जाते हैं | म.प्र में दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच हुई राज्यसभा सीट की  खींचतान के कारण ही कमलनाथ सरकार का पतन हो गया | इस प्रकार उच्च सदन के गठन के पीछे जो मूल भावना थी वह समय के साथ लुप्त होती चली गयी जिससे वह राजनीतिक पुनर्वास   , सौदेबाजी और एहसानों का बदला चुकाने का केंद्र बन गया | आश्चर्य की बात है कि संसदीय प्रणाली में सुधार हेतु तो बहुत बातें होती हैं लेकिन राज्यसभा को उसका सही  स्वरूप प्रदान करने के बारे में कोंई चिंता नहीं  करता | इसका एक कारण शायद ये भी है कि जिन्हें ये करना चाहिए उनमें से भी अधिकतर इस सदन के माध्यम से सांसद बनने की हसरत पाले बैठे हुए हैं | देश के प्रधान  न्यायाधीश और मुख्य चुनाव आयुक्त रहे महानुभावों का उच्च सदन में आना बिना कहे ही बहुत कुछ कह जाता है |  

-रवीन्द्र वाजपेयी

 

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