Wednesday 30 March 2022

गड़करी द्वारा कांग्रेस को शुभकामना देना सोची – समझी रणनीति का हिस्सा



 केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गड़करी अपनी कार्यकुशलता के साथ ही स्पष्टवादिता के लिए भी जाने जाते हैं | उनकी सोच बहुत ही व्यवहारिक और समयानुकूल होती है | सार्वजनिक मंचों पर अनेक बार वे ऐसी बातें कह जाते हैं जो सतही तौर पर उनकी पार्टी से मेल नहीं खाती किन्तु उनकी  छवि  आम राजनेताओं से अलग हटकर है | हाल ही में उन्होंने कांग्रेस को लेकर जो कहा उसकी राजनीतिक जगत में  काफी चर्चा हो रही है | पुणे में बोलते हुए उन्होंने कांग्रेसजनों को सलाह दी कि वे पार्टी न छोड़ें क्योंकि हर पार्टी के साथ इस तरह के उतार - चढ़ाव आते रहते हैं | भाजपा का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि 1984 में उसे लोकसभा में मात्र 2 सीटें मिलीं थीं | यहाँ तक की अटल जी तक चुनाव हार गये | उस समय अनेक  लोगों ने उन्हें भाजपा छोड़ने की सलाह दी किन्तु वे उसी में बने रहे | कालान्तर में मेहनत करते – करते पार्टी ने देश की सत्ता हासिल कर ली | उन्होंने कांग्रेस के कमजोर होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उसकी कीमत पर  क्षेत्रीय दलों का उभार  लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है | कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है और लोकतंत्र के  दूसरे पहिये के रूप में उसका होना जरूरी है | इसके साथ ही श्री गड़करी ने ये भी कहा कि कांग्रेस के प्रति उनकी शुभकामनाएं हैं और वे उसे मजबूत होते देखना चाहेंगे | उनके इस बयान पर समाचार माध्यमों में बहस छिड़ गई क्योंकि ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के विपरीत सोच का परिचायक है | कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसमें श्री मोदी का विरोध भी देखने लग गए | दूसरी तरफ कांग्रेस के भीतर इस बयान के बाद परिवहन मंत्री के प्रति प्रशंसा का भाव जागा है | वैसे भी बतौर मंत्री उन्होंने राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर अपना समर्थक वर्ग तैयार कर लिया है |  लेकिन कांग्रेस को मजबूत होने की मंगलकामना देना और पार्टी छोड़ने की सोचने वाले नेताओं में  अच्छे दिन आने का आशावाद जगाने का उनका प्रयास राजनीतिक जगत में किसी आश्चर्य से कम नहीं लगता | ये बयान ऐसे समय आया है जब कांग्रेस के भीतर जी - 23 नामक नेताओं का गुट गांधी परिवार के एकाधिकार को चुनौती दे रहा है | पंजाब में सत्ता गंवाने और उ.प्र में पूरी तरह धराशायी हो जाने के बाद कांग्रेस का मजाक उड़ने लगा | प. बंगाल में उसे जब एक भी सीट नहीं मिली तो ममता बैनर्जी ने तंज कसा कि विपक्ष को अब उनके नेतृत्व में एकजुट हो जाना चाहिए क्योंकि कांग्रेस में श्री मोदी का सामना करने का दम नहीं बचा | हाल में उनका एक बयान और आया जिसमें उन्होंने कांग्रेस को तृणमूल में विलीन होने की सलाह तक दे डाली | इसी तरह पंजाब में धमाकेदार जीत के बाद आम आदमी पार्टी ने भी ये कहना शुरू कर दिया कि वह कांग्रेस का विकल्प बनने की राह पर बढ़ रही है क्योंकि उसमें भाजपा को हराने की क्षमता नहीं है | राजनीतिक समीक्षक भी ये मान बैठे हैं कि 2014 के बाद से कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह से कमजोर होती जा रही है उसकी वजह से वह भाजपा का विकल्प बनने की स्थिति में नहीं रह गई | उ.प्र , बिहार , प.बंगाल , तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में  दयनीय हालत देखते हुए उसका केन्द्रीय सत्ता में लौटना दिवास्वप्न ही लगता है | 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी गठबंधन की जो संभावनाएं टटोली जा रही हैं उनके केंद्र बिंदु के तौर पर ममता बैनर्जी , उद्धव ठकरे और केसी राव के नाम हैं | तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के अलावा सपा नेता अखिलेश यादव भी चर्चा में रहते हैं | वैसे इस समय भाजपा के विरोधी के तौर पर आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल का नाम भी काफी प्रमुखता से लिया जा रहा है लेकिन उसकी रीति – नीति में एकला चलो का भाव दिखाई देता है | इसलिए लौट – फिरकर बात फिर वहीं आ जाती है कि विपक्ष के गठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा ? अब तक कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी  इस बारे में पहल करती आईं थीं लेकिन दशा ये हो गयी है कि बाकी विपक्षी दल  कांग्रेस को डूबता जहाज मानकर उसके साथ बैठने से कतरा रहे हैं | इन हालातों में श्री गड़करी द्वारा उसके मजबूत होने की कामना करना  पर बेहद चौंकाने वाला है | प्रधानमंत्री के अलावा गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का एक भी दिन ऐसा नहीं जाता होगा जब वे कांग्रेस को न कोसते हों | निकट भविष्य में गुजरात , हिमाचल , म.प्र , राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होना हैं वहां कांग्रेस ही भाजपा की प्रमुख प्रतिद्वंदी है | ऐसे में श्री गड़करी द्वारा अपने सबसे प्रमुख राजनीतिक प्रतिस्पर्धी के मजबूत होने की कामना करते हुए उसके नेताओं को निराश न होने की जो सलाह दी गयी वह आज के दौर की राजनीति के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है | भाजपा में जबसे मोदी – शाह युग प्रारम्भ हुआ है तबसे कांग्रेस के प्रति किसी भी तरह की रियायत बरतने से परहेज किया जाने लगा है | अटल – आडवाणी के समय की भाजपा को आज की  तुलना में अधिक सहनशील माना जाता था | ऐसे में श्री गड़करी ने जो कुछ कहा वह आश्चर्य में डालने वाला है | लेकिन उनके संदर्भित बयान में राजनीतिक दूरदर्शिता भी नजर आती है | बीते कुछ समय से ये देखने में आ रहा है कि क्षेत्रीय पार्टियाँ कांग्रेस की तुलना में भाजपा का बेहतर तरीके से मुकाबला कर रही हैं | बिहार में भले ही राजद और उ.प्र में सपा हार गई किन्तु उनकी तरफ से भाजपा को कड़ी चुनौती पेश की गई | प. बंगाल में भी तृणमूल का वर्चस्व कायम रहा | ऐसे में श्री गड़करी का बयान कांग्रेस का मनोबल बढाकर क्षेत्रीयं दलों को आगे बढ़ने से रोकने की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है | उल्लेखनीय है वे पार्टी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और रास्वसंघ के भी काफी निकट हैं | आने वाले दिनों में राष्ट्रीय राजनीति में अनेक उतार – चढाव आने वाले हैं जिनमें कांग्रेस की भूमिका पर सबकी नजर रहेगी | ये बात सभी मानते हैं कि देश में एक सक्षम राष्ट्रीय विकल्प का होना लोकतंत्र की सेहत के लिए जरूरी है और आज की परिस्थिति में कांग्रेस ही उसके लिए सबसे सही चयन होगा | लेकिन उसे स्वयं को इसके लिए तैयार करना होगा | परिवहन मंत्री ने अपनी  पार्टी के बुरे दिनों की याद दिलाते हुए उसको जो सीख दी यदि  पार्टी की लगाम  थामे बैठे नेता वह समझ सकें तो वह मौजूदा दुरावस्था से निकल सकती है | वरना जैसा श्री गड़करी ने आशंका जताई क्षेत्रीय दल खाली स्थान भरने तैयार बैठे हैं , जो संसदीय लोकतंत्र के साथ ही संघीय ढांचे के लिए भी चिंताजनक होगा | श्री गड़करी के बयान का आशय ये भी लगाया जा सकता है कि भाजपा को भी बतौर प्रतिद्वंदी कांग्रेस ज्यादा सुविधाजनक लगती है , बजाय क्षेत्रीय दलों के |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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