Friday 25 March 2022

मुफ्त उपहारों की सौगात और खाली होते सरकारी खजाने



भारत एक लोकतान्त्रिक संघीय गणराज्य है | वैचारिक मतभिन्नता के बावजूद केंद्र और राज्य एक दूसरे के साथ समन्वय बनाकर काम करते हैं | हालाँकि राजनीतिक स्वार्थों के कारण दोनों  के बीच टकराव भी बढ़ता जा रहा है जिसका ताजा प्रमाण प. बंगाल है | बावजूद इसके संघीय ढांचे का अस्तित्व कायम है जिसके अंतर्गत दोनों ही  संविधान के दायरे में रहकर अपनी – अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं | यही वजह है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसके संयोजक अरविन्द केजरीवाल को बधाई देते हुए पंजाब के विकास में केंद्र द्वारा भरपूर सहयोग देने का आश्वासन दिया जो कि औपचारिकता भी थी  और परम्परा भी | इसी तरह राज्य का नव निर्वाचित मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री  के अलावा केन्द्रीय मंत्रियों से सौजान्य  भेंट कर पारस्परिक सम्बन्ध मजबूत करते हुए अपने राज्य के विकास हेतु केंद्र के सहयोग की उम्मीद व्यक्त करता है | गत दिवस पंजाब के नये  मुख्यमंत्री भगवंत मान इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री श्री मोदी से मिले और  राज्य की खस्ता वित्तीय स्थिति को देखते हुए आगामी दो साल तक प्रति वर्ष 50 हजार करोड़ रु. देने के मांग की | इस प्रकार 1 लाख करोड़ की राशि की मांग श्री मान द्वारा प्रधानमंत्री के समक्ष रख दी गई | सोशल मीडिया के दौर में इस तरह की मेल – मुलाकात भी बिना देर लगाये चर्चा में आ जाती है | मुख्यमंत्री द्वारा प्रधानमंत्री से राज्य की दयनीय आर्थिक को देखते हुए 1 लाख करोड़ के पैकेज की मांग पर फौरन  उनका मजाक उड़ाया  जाने लगा कि मुफ्त बिजली और ऐसी ही सौगातें बांटकर वाहवाही आप लूटें और उसके लिए पैसा केंद्र सरकार दे | हालाँकि श्री मान पहले मुख्यमंत्री नहीं हैं जो अपने राज्य के खाली खजाने का रोना रोते हुए केंद्र सरकार के पास मदद हेतु गए हों | प्राकृतिक आपदा के समय भी ऐसा देखने में आता है |  विकास की दौड़ में पीछे रह  गये राज्यों के मुख्यमंत्री अक्सर विशेष पेकेज की मांग किया करते हैं | लेकिन श्री मान के आग्रह पर जिस तरह की टिप्पणियाँ आईं उनमें से अधिकांश का अभिप्राय ये है कि चुनाव लड़ने वाले दलों को ये पता  कर लेना चाहिये कि वे मुफ्त उपहारों के जो वायदे कर रहे हैं ,  उनको पूरा करने के लिए सरकारी खजाने में धन है या नहीं और वे उनसे पड़ने वाले बोझ की व्यवस्था किस प्रकार करेंगे ? आम आदमी पार्टी में एक से बढकर एक पेशेवर हैं | पंजाब के प्रभारी बनाये गये राघव चड्डा तो खुद ही चार्टर्ड अकाऊंटेंट हैं | इसलिए ये अपेक्षा करना गलत नहीं है कि उन्होंने पंजाब की वित्तीय स्थिति का सही – सही आकलन किया होगा | ऐसे में मुफ्त बिजली , पानी और पेंशन आदि के लिए धन की व्यवस्था कैसे होगी इस बात का ब्यौरा भी वायदे के साथ किया जाता तब वह उस किस्म की नई राजनीति कही जाती जिसका दावा श्री केजरीवाल किया करते हैं | हालांकि किसी राज्य द्वारा केंद्र से पैकेज मांगना अति स्वाभाविक है | लेकिन उसके साथ उसके उद्देश्य को भी स्पष्ट किया जाना चाहिये | पंजाब देश के समृद्धतम राज्यों में अग्रणी था | हरित क्रांति के साथ ही औद्योगिक विकास से वहां खुशहाली आई थी | लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुफ्त बिजली किसानों को देकर मुफ्त उपहारों का जो सिलसिला शुरू किया उसके  कारण हालात बिगड़ना शुरू हुए और राज्य अरबों – खरबों के कर्ज में डूब गया | ये बात केवल पंजाब के बारे में नहीं है | देश  के सभी राज्य इसी हालात का शिकार हैं | उ.प्र में भी समाजवादी पार्टी ने मुफ्त बिजली का कार्ड खेला था लेकिन मतदाताओं ने उस पर ध्यान नहीं दिया | केंद्र सरकार के साथ ही राज्य भी गरीबों को सस्ता और मुफ्त अनाज आदि दे रहे हैं | लोक कल्याणकारी शासन में जनता के लिए ऐसा किया जाना अपेक्षित ही है किन्तु जिस तरह रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग कर ज्यादा से ज्यादा  फ़सल लेने के फेर में खेती  की जमीन खराब हो गई उसी तरह वोटों की अधिकतम फसल के फेर में जिस मुफ्त रूपी खाद और दवाइयों का उपयोग धड़ल्ले से किया जाने लगा उसने सरकारों  की आर्थिक उर्वरता को जबर्दस्त नुकसान पहुंचाया है | मुफ्त बिजली की बजाय यदि उसके दाम कम किये जाएँ तो समाज के प्रत्येक वर्ग को लाभ मिल सकेगा | मुफ्त शिक्षा और चिकित्सा जैसे कदम निश्चित रूप से दूरगामी लाभ देने वाले होते हैं | आम आदमी पार्टी को दिल्ली में मुफ्त  बिजली और पानी जैसे  वायदों पर मिली चुनावी सफलता हर जगह कारगर हो जायेगी , ये जरूरी नहीं है क्योंकि हर राज्य की परिस्थितियाँ अलग  होती हैं | श्री मान ने प्रधानमंत्री से मिलने के बाद ये भी कहा कि दो वर्ष के भीतर वे राज्य की माली हालत सुधार लेंगे | यद्यपि  इसका कोई ठोस उपाय वे नहीं बता सकते क्योंकि पंजाब की सत्ता संभालने के बाद अब आम आदमी पार्टी स्वाभाविक रूप से वहां  लोकसभा चुनाव में ज्यादा से सीटें जीतने के लिए जनता पर नये कर लगाने से बचना  चाहेगी | देश की हर राजनीतिक पार्टी सत्ता पाने और उसमें बने रहने के लिए इसी तरह के उपाय करने लगी है | यही वजह है कि एक तरफ तो मुफ्त में उपकृत होने वाला बड़ा वोट बैंक है वहीं  दूसरी तरफ महंगाई की मार से हलाकान करदाता | उ.प्र के चुनाव में मुफ्त अनाज वितरण भाजपा की जीत में काफी निर्णायक रहा | वैसे भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत 2 रु. और 1 रु. प्रति किलो में क्रमशः चावल और गेंहू दिया ही जा रहा था | लेकिन ये सच है कि सरकारें चाहे किसी भी पार्टी की हों , वे  येन केन प्रकारेण वोटों की  फसल काटने में लगी रहती हैं | सस्ता और मुफ्त बांटकर महंगा पेट्रोल , डीजल और रसोई गैस के अलावा गैर लाभार्थी तबके को महंगी बिजली देकर इसको दे , उससे ले वाली स्थिति बनाई जा रही है | जिन लोगों ने श्री मान का मजाक उड़ाया वे निश्चित रूप से उनके राजनीतिक विरोधी होने के साथ ही उस वर्ग के होंगे जिन्हें सरकारी खैरात नहीं मिलती | लेकिन ये बात पूरी तरह सही है कि बिना ठोस  आर्थिक प्रबंध के इस तरह के वायदों पर कानूनी रोक लगनी चाहिए | सर्वोच्च न्यायालय हालाँकि इस बारे में अनेक बार पूछताछ कर चुका है  | लेकिन सभी राजनीतिक दल ऐसे मामलों में एक ही थैली के चट्टे – बट्टे हैं इसलिए कोई उसका संज्ञान नहीं लेता | उ.प्र में भाजपा द्वारा मुफ्त अनाज बांटने को मुद्दा बनाये जाने पर विरोधी ये कहकर आलोचना करते रहे कि ये मतदाताओं को लालच देकर खरीदने जैसा है | ये भी कहा गया कि क्या केवल पांच किलो अन्न से ज़िन्दगी चल सकती है ? ऑटो वालों को माह में एक बार मुफ्त ईंधन के अलावा होली – दीपावली पर मुफ्त गैस सिलेंडर जैसी सौगातों के ऐलान भी हुए | ऐसे में भविष्य में जो पार्टी जितना ज्यादा मुफ्त बांटेंगी वह सत्ता हासिल करती जायेगी | यदि यही नई राजनीति है तब सरकारी खजाना खाली का खाली ही रहेगा और करदाताओं पर बोझ बढ़ाने का सिलसिला भी |  

- रवीन्द्र वाजपेयी

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