Thursday 31 March 2022

रूस - अमेरिका दोनों के गले की हड्डी बन गया यूक्रेन



यूक्रेन और रूस के बीच चल रही जंग को एक महीने से ज्यादा बीत चुका है | लेकिन पूरी ताकत लगाने के बावजूद रूस अब तक यूक्रेन को घुटनाटेक नहीं करवा सका | राजधानी कीव पर कब्जे की कोशिशें सफल नहीं होने के कारण उसने बौखलाहट में अन्य शहरों पर बारूदी बरसात करते हुए तबाही के मंजर पैदा कर दिए | असैन्य  ठिकानों सहित  नागरिकों पर हमले कर उसने सामान्य युद्ध नियमों की धज्जियां भी उड़ाईं | हालाँकि ये आश्चर्यजनक है कि पूरी तरह बेमेल मुकाबले के बाद भी यूक्रेन ने अब तक हार नहीं मानी | उसकी सेनाएं ही नहीं अपितु जनता भी जबरदस्त साहस का प्रदर्शन करते हुए रूस की अपार सैन्य शक्ति को चुनौती दे रही है | सबसे बड़ी बात ये है कि अभी तक यूक्रेन की रक्षा  हेतु सीधे तौर पर न अमेरिका आगे आया और न ही दूसरे  देश | हालाँकि सैन्य साजो – सामान के साथ ही आर्थिक सहायता काफी मात्रा में उसे मिल रही है | अन्य  जरूरी चीजें भी दुनिया के अनेक देश यूक्रेन को भेज रहे हैं | लेकिन जिस नाटो की सदस्यता हासिल करने के फेर में इस देश को रूसी राष्ट्रपति पुतिन की नाराजगी झेलना पड़ रही है उसने  अब तक यूक्रेन की धरती पर उतरकर रूसी हमले का जवाब देने की हिम्मत नहीं दिखाई जिससे अमेरिका की साख को जबरदस्त धक्का पहुंचा | लेकिन इन सबके बाद भी  रूस अब तक यूकेन पर न जीत हासिल कर सका और न ही  युद्धविराम हेतु अपनी शर्तें थोपने में  कामयाब हुआ | इससे एक बात तो साफ़ है कि बिना बाहरी मदद के यूक्रेन इतने दिनों तक रूस जैसी महाशक्ति से नहीं निपट सकता था परन्तु  ये भी स्पष्ट होता जा रहा है कि अमेरिका अफगानिस्तान से निकालने के बाद जल्द दूसरी वैसी किसी मुसीबत को गले नहीं लगाना चाहता | इसके साथ ही उसे ये भी लगता है कि यूक्रेन में घुसकर रूस से सैनिक टकराहट उसके दीर्घकालीन हितों के लिए नुकसानदेह होगी | लगभग ऐसा ही विचार पुतिन के मन में विचरण कर रहा है | वैसे अमेरिका चाहता है कि ये युद्ध लंबा चले | ऐसे में वह बाहर रहकर यूक्रेन को उसी तरह मदद करता रहेगा जिस तरह कभी वियतनाम में अमेरिकी फौजों से लड़ रहे साम्यवादी लड़ाकों को चीन और अफगानिस्तान में तालिबानों को रूस करता रहा | अमेरिका जानता है कि रूस भी एक सीमा के बाद ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे विश्व जनमत पूरी तरह से उसके विरूद्ध हो जाए | पुतिन को हिटलर का हश्र अच्छी तरह याद है | इसीलिये वे टर्की , इजरायल और भारत के जरिये युद्धविराम की कोशिशों पर सकारात्मक रवैया दिखा रहे हैं | उनको भी एक बात समझ में आ चुकी है कि अमेरिका के दोगलेपन को महसूस करने के बाद अब यूक्रेन नाटो में शामिल होने का जोखिम शायद ही उठाएगा और अमेरिका भी दूसरे देश की जमीन पर जाकर अपनी शक्ति का अपव्यय नहीं  करना चाहेगा | लेकिन  जंग जारी रही तब रूस के ऊपर आर्थिक प्रतिबंधों का शिकंजा कसता ही जायेगा जिससे उसकी अर्थव्यवस्था चौपट हो जायेगी | विश्व बाजार में रूस अनाज , प्राकृतिक गैस , कच्चा तेल और सैन्य सामग्री का बड़ा निर्यातक है किन्तु  यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोप सहित अमेरिका समर्थक अनेक देश उससे कन्नी काटने लगे | अमेरिका की असली चाल यही है कि रूस को यूक्रेन में लम्बे समय तक उलझाए रखकर उसे कूटनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर कम्जोर कर दिया जाए | सीरिया में पुतिन ने जिस तरह अमेरिका के दबाव को बेअसर किया उसके कारण वह भन्नाया हुआ था | यूक्रेन ने उसे  बदले का अवसर दे दिया | लेकिन दोनों महाशक्तियों के लिए ये युद्ध प्रतिष्ठा से बढकर गले की हड्डी बन गया है | प. एशिया में चले युद्ध में  दोनों परदे के पीछे थे लेकिन यूक्रेन ने इन दोनों को सामने लाकर खड़ा कर दिया है | यदि अमेरिका , उसको केवल आर्थिक और सैन्य सहायता देने तक ही सीमित बना रहता तब उसका रूस से सीधा टकराव न होता लेकिन पुतिन ने जैसे ही युद्ध शुरू किया त्योंही आर्थिक प्रतिबंधों के रूप  में अमेरिका ने उससे सीधा पंगा ले लिया जिसकी वजह से ये आशंका व्यक्त की जाने लगी कि ये लड़ाई विश्व युद्ध में तब्दील हो सकती है |  यूक्रेन भी आये दिन ये चेतावनी देता रहता है | ये देखते हुए कहना गलत न होगा कि दोनों महाशक्तियां इस संकट में बुरी तरह उलझकर रह गई हैं | अमेरिका को लगता है कि यदि रूस  विजेता बनकर उभरा तब उसका दबदबा बढ़ने के साथ ही चीन भी ताइवान में ऐसी ही सैन्य कार्रवाई करने की जुर्रत कर सकता है | वहीं रूस को लगने लगा है कि उसने कदम पीछे खींचे तो जो  देश उसके साथ व्यापारिक संबंध बनाए हुए हैं वे भी अमेरिका के दबाव के चलते उससे छिटकने न लगें | भारत के तटस्थ बने रहने और चीन द्वारा दूर से बैठकर नजारा देखने की वजह से भी पुतिन का उत्साह कुछ ठंडा पड़ा है | भले ही अमेरिका और रूस दोनों ऊपरी तौर पर आस्तीनें चढ़ाते दिखते हों लेकिन मन ही मन दोनों  समझ रहे हैं कि ये लड़ाई उन दोनों के लिए जी का जंजाल बनती जा रही है | इतना जरूर है कि दोनों महाशक्तियों के बीच वर्चस्व की खींचातानी में यूक्रेन पूरी तरह तबाही की स्थिति में आ गया | जैसी खबरें आ रही हैं उनके मुताबिक रूसी सेना आगे बढ़ने के बजाय पीछे हट रही है जिसे कुछ लोग उसकी हताशा बता रहे हैं तो कुछ का मानना है कि ये किसी रणनीति का हिस्सा है | परमाणु युद्ध की जो धमकी पुतिन शुरुवात में दे रहे थे उनमें भी कमी आई है | युद्ध के मैदान से दूर युद्धविराम की कोशिशें भी जारी हैं लेकिन इस बारे में अब तक किसी प्रकार की पुख्ता जानकारी नहीं मिल सकी | आश्चर्य की बात ये है कि सुलह करवाने के लिए बजाय किसी महाशक्ति के टर्की , इजरायल और भारत जैसे  देशों का नाम सामने आ रहा है | ये विवाद कहाँ जाकर थमेगा ये फिलहाल कहना कठिन है लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि दुनिया को दो खेमों में बांटने वाली महाशक्तियां यूक्रेन में बुरी तरह फंस गयी हैं और उनके लिए इधर कुआ उधर खाई वाली स्थिति बन गई है | 


-रवीन्द्र वाजपेयी

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