Friday 1 April 2022

पाकिस्तान और नेपाल के बाद चीन ने श्रीलंका को भी कर्ज की आग में झोंका



भारत के दक्षिण में हिंद महासागर  स्थित टापूनुमा देश श्रीलंका इन दिनों आर्थिक बदहाली का शिकार है | विदेशी मुद्रा भण्डार तेजी से घटते जाने से जरूरी चीजें खरीदने के लिए उसके पास पैसा नहीं है | चाय 100 रु. प्रति कप और पेट्रोल 300  रु. लिटर पर बिक रहा है | कागज की कमी के चलते परीक्षाएं तक रद्द करनी पड़ी हैं | चाय और मसालों के निर्यात के अलावा ये देश जरूरत की अधिकतर चीजें आयात करता  है | बौद्ध बहुल होने से इसे जापान , दक्षिण कोरिया जैसे देश काफी मदद देते रहे | संरासंघ से जुड़े अनेक संगठनों से मिलने वाला अनुदान भी इसकी आय का स्रोत  है | लम्बे समय तक तमिल उग्रवादियों द्वारा उत्पन्न गृहयुद्ध की स्थिति से उबरने के बाद वहां पुनर्निर्माण की प्रक्रिया तेजी से शुरू हुई | प्राकृतिक सौंदर्य के आकर्षण में पर्यटन भी तेजी से बढ़ा जिसके कारण अर्थव्यवस्था में सुधार देखा जाने लगा | लेकिन भारत से ईर्ष्या के चलते उसके अधिकतर  शासक चाहे – अनचाहे चीन के शिकंजे में फंसते चले गए | जिसने उसे भारी – भरकम कर्ज देकर विकास कार्यों के ठेके भी ले लिए |  इसके पीछे उसकी रणनीति दरअसल भारत की समुद्री सीमा पर आकर बैठने की थी | हम्बनटोटा बन्दरगाह लम्बे समय के लिए लीज पर लेने के बाद राजधानी कोलम्बो में बन रही पोर्ट सिटी का ठेका भी उसने राजपक्षे सरकार से हासिल कर लिया | इन दोनों प्रकल्पों के लिए भारत ने भी अपने प्रयास किये थे लेकिन श्रीलंका सरकार ने चीन को प्राथमिकता दी | गाल से कोलम्बो तक का राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने के अलावा भी चीन ने  अधिकतर विकास कार्य कर्ज देकर किये | शुरुवात में तो श्रीलंका की सरकार और जनता दोनों इस सबसे बहुत खुश हुए लेकिन जल्द ही चीन पेशेवर साहूकार की तरह पेश आने लगा | आय से ज्यादा कर्ज लेने के कारण देश का आर्थिक संतुलन गड़बड़ा गया | वहीं  दूबरे में दो आसाढ़ वाली स्थिति लेकर आ गया कोरोना | इसके कारण श्रीलंका के पर्यटन उद्योग की कमर टूट गयी जो अर्थव्यवस्था में 10 फीसदी  योगदान के साथ  विदेशी मुद्रा का सबसे आसान और प्रमुख स्रोत था | विदेशी पर्यटकों की संख्या जिस तेजी से बढ़ रही थी उसे देखते हुए कहा जाने लगा था कि आने वाले एक  दशक में यह देश थाईलैंड , मलेशिया और कुछ हद तक सिंगापुर को टक्कर देने लगेगा | भारत से  ही बड़ी संख्या में सैलानी वहां जाने लगे थे क्योंकि श्रीलंका घूमने में आने वाला खर्च अंडमान निकोबार से ज्यादा नहीं था | दक्षिण भारत के लोगों के लिए तो वैसे भी वह उनके किसी राज्य जैसा ही है | लेकिन भारत की कूटनीतिक कमजोरी के कारण इस देश में हमारे प्रति शंका का भाव दूर नहीं किया जा सका | तमिल राष्ट्र की जो मांग उठी और लिट्टे जैसे संगठन को तमिलनाडु की द्रमुक जैसी पार्टी ने   अघोषित समर्थन दिया उससे सिंहली मूल के बहुसंख्यक राजनेताओं के मन में ये बात घर कर गई कि लिट्टे के तमिल इलम नामक सशस्त्र संघर्ष के पीछे भारत की वही रणनीति है जो उसने पाकिस्तान को तोड़कर बांग्ला देश बनवाने के लिए अपनाई थी | स्व. राजीव गांधी की सरकार ने उस दौर में जिस तरह की  कूटनीति का परिचय दिया उसका दुखद परिणाम उनकी निर्मम  हत्या  के तौर पर सामने आया | सही मायनों में उनकी सरकार लिट्टे को लेकर बहुत ही भ्रमित रही | चीन ने उस स्थिति का लाभ लेकर लिट्टे को गोद में लेते हुए उसे धन और हथियार दोनों उपलब्ध कराए | हालांकि इसमें दो राय नहीं है कि राजपक्षे सरकार ने लिट्टे के खात्मे के लिए अभूतपूर्व दृढ़ता दिखाई | उन पर नरसंहार के आरोप भी लगे लेकिन विश्व जनमत की उपेक्षा करते हुए उन्होंने  राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दी | लेकिन श्रीलंका के मन में भारत को लेकर असुरक्षा का भाव यथावत रहा जिसके चलते वह चीन के मोहपाश में फंसता गया | चीन द्वारा उसकी मदद करने का उद्देश्य  हिन्द महासागर में अपनी उपस्थिति को प्रभावशाली बनाये रखने के अलावा भारत की दक्षिणी सीमा के करीब आकर बैठना था जिसमें वह सफल हो गया | उसने श्रीलंका को भारत के विरुद्ध भरने में इस हद तक कामयाबी हासिल कर ली कि वह छोटी – छोटी बातों के लिए चीन की तरफ ताकने लगा | बीते कुछ समय से वहां राजपक्षे बंधुओं का एकछत्र राज है | उनके पहले की सरकार से भारत के सम्बन्ध सुधर रहे थे किन्तु चीन ने राजनीतिक अस्थिरता फैलाकर राजपक्षे की वापिसी करवा दी | ऐसा ही खेल वह नेपाल में सफलतापूर्वक रच चुका था | उस पहाड़ी देश के साथ भी भारत के संबंध शुरुवात से ही खराब रहे | वहां के हिन्दू राजवंश के विरुद्ध लड़ने वाले माओवादियों को भारत में शरण दी जाती थी | लेकिन  सत्ता में आने के बाद वे भी  भारत के साथ ऐलानिया दुश्मनी पर उतर आये | दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र होने के बाद भी नेपाल भारत के विरुद्ध क्यों गया ये यक्ष प्रश्न है जबकि आज भी लाखों नेपाली भारत में रोजी – रोटी कमा रहे हैं और फौज में भी उनकी भर्ती की जाती है | नेपाल की आर्थिक स्थिति भी बहुत ही डांवाडोल है | वहीं  देखते - देखते पाकिस्तान भी चीन के प्रभाव में रहते  – रहते दिवालिया होने के कगार पर आ गया | इस तरह गौर करने वाली बात ये है कि भारतीय उपमहाद्वीप के जो तीन देश चीन के हाथ में खेलने लगे वे सब आर्थिक तौर पर कंगाली की स्थिति में आ गये | बांग्ला देश उसके चंगुल में फंसने से बचे रहने के कारण  आर्थिक विकास के मार्ग पर तेजी से बढ़ रहा है | भारत के लिए श्रीलंका के मौजूदा हालात चिंता बढ़ाने वाले हैं क्योंकि पाकिस्तान और नेपाल को तो चीन ने हमारे विरुद्ध खड़ा कर ही दिया है और अब श्रीलंका भी  एक तरह से उसका कूटनीतिक  उपनिवेश बनने जा रहा है |    हालाँकि भारत पूरी तरह से इस कोशिश में है कि उसे आर्थिक संकट से उबार लिया  जाए | लेकिन जिस देश के पास ब्याज चुकाने तक के पैसे न हों उसका दोबारा खड़ा हो पाना आसान नहीं  है | देखने वाली बात ये होगी  कि भारत द्वारा दी जा रही मदद के बावजूद राजपक्षे सरकार चीन के चक्रव्यूह से निकल पाती है या नहीं ? अन्यथा हवन करते में हाथ जलने वाली कहावत चरितार्थ साबित होने का खतरा वैसा ही है जैसा राजीव सरकार के समय अनुभव हुआ | श्रीलंका में हालात जल्द न सुधरे तब भारत को शरणार्थी समस्या का सामना भी करना पड़ सकता है | कुल मिलाकर इस समुद्री पड़ोसी का आर्थिक संकट हमारे लिए भी नई मुसीबतें लेकर आ सकता है | चूंकि चीन वहां  कुंडली मारकर बैठा हुआ है इसलिए खतरा और भी अधिक है  | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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