Saturday 30 April 2022

खालिस्तानी आतंक के बीजों का अंकुरित होना शुभ संकेत नहीं



 वैसे तो हमारे देश में इस तरह की घटनाएँ आम हैं | लेकिन पंजाब के पटियाला नगर में गत दिवस शिवसेना द्वारा निकाले खालिस्तान विरोधी जुलूस पर खालिस्तान समर्थक सिखों के गुट द्वारा किये गये हमले के कारण उत्पन्न तनाव खतरनाक संकेत है | किसान आन्दोलन में भी खालिस्तानी समर्थकों  की मौजूदगी का मुद्दा उठा था  | गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले पर हुए उत्पात में भी खालिस्तानी तत्वों को खुला हाथ था  | उसके बाद  आन्दोलन खत्म होते – होते तक दिल्ली और पंजाब में अनेक घटनाएँ ऐसी हुईं जिनसे खालिस्तान आन्दोलन के पुनर्जीवित होने की पुष्टि हो गई | उस आन्दोलन के समर्थन में कैनेडा और ब्रिटेन में कार्यरत  खालिस्तान समर्थक संगठनों  ने जिस तरह से धरना – प्रदर्शन करने के साथ ही आर्थिक सहायता भेजी उसे लेकर भी काफी टीका – टिप्पणी हुई | पंजाब में भी निहंगों ने अनेक हिंसक वारदातों को अंजाम देकर आतंक फ़ैलाने का कार्य किया | चूंकि राज्य विधानसभा का चुनाव नजदीक था इसलिए ये माना जाता रहा कि वह सब  चुनावी राजनीति का हिस्सा था | चुनाव के दौरान भी ये बात सामने आई कि खालिस्तान समर्थक तत्व भले ही खुलकर सामने न आ रहे हों लेकिन वे  अपने लिए उपयुक्त राजनीतिक दल और उम्मीदवार को समर्थन दे रहे थे | आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल पर तो उन्हीं के पूर्व साथी  डा . कुमार विश्वास ने गंभीर आरोप लगाये | चुनाव में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला और भगवंत सिंह मान मुख्यमंत्री बनाये गए | पंजाब जबसे नया राज्य बना तबसे वहां या तो कांग्रेस सत्ता में रही या अकाली दल और भाजपा की मिली जुली सरकार बनी | इस प्रकार कभी पूरी तरह तो कभी  आंशिक तौर पर राष्ट्रीय पार्टी सत्ता  में रही | लेकिन हालिया सत्ता परिवर्तन में एक ऐसी पार्टी के हाथ सत्ता चली गयी है जिसकी राजनीतिक विचारधारा बहुत स्पष्ट नहीं है और जिसका उदय जनांदोलन के परिणामस्वरूप होने से उसके जनाधार में क्षणिक लाभ की आकांक्षा रखने वाले ही ज्यादा हैं | दिल्ली में मुफ्त बिजली और पानी के नाम पर चुनाव जीतने वाले फॉर्मूले को ही पार्टी ने पंजाब में अपनाया और मतदाताओं ने उसी आधार पर उसे सत्ता सौंप दी | लेकिन इस सीमावर्ती राज्य की सरकार को केवल बिजली , पानी  और सड़क का ही नहीं अपितु सीमा पार से आने वाले खतरों का भी ध्यान रखना पड़ता है | और उस लिहाज से  आम आदमी पार्टी की क्षमता और योग्यता का परीक्षण अभी बाकी है |  इसीलिये  गत दिवस पटियाला में शिवसेना द्वारा खालिस्तान विरोधी जो जुलूस निकाला गया उस पर सिखों के एक संगठन द्वारा किया गया हमला राज्य सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है | खबर है शिवसेना के स्थानीय नेता हरीश सिंगला को पार्टी ने निकाल बाहर किया जो उस जुलूस का आयोजक था | उनको  गिरफ्तार भी कर लिया गया | देखते – देखते बात हिन्दू – सिख विवाद का रूप ले बैठी | हिन्दू संगठनों द्वारा पंजाब बंद का आह्वान किये जाने की जानकारी भी आई है |  यदि उक्त जुलूस निकालने के लिए प्रशासन से अनुमति ली गई तब आयोजक की गिरफ्तारी का कोई औचित्य नहीं था और अनुमति नहीं थी तब जुलूस को निकलने से पहले ही रोकना प्रशासन और पुलिस का दायित्व था | लेकिन खालिस्तान समर्थक जुलूस तो देश विरोधी कृत्य कहलायेगा और इसलिए उसके आयोजकों  के विरुद्ध तो कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए | रही बात शिवसेना नेता को पार्टी से निकाले जाने की तो इससे सभी  को आश्चर्य हुआ | अपेक्षित तो यही था कि सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे खालिस्तान विरोधी जुलूस के आयोजक अपने नेता को बधाई देकर  पंजाब में भारत विरोधी ताकतों का हौसला कमजोर करते | लेकिन उन्होंने जो फैसला लिया वह उनके समर्थकों को ही रास नहीं आ रहा  | शायद महाराष्ट्र की सत्ता में कांग्रेस और रांकापा की संगत ने श्री ठाकरे के हाथ -पैर बाँध दिए हैं  | बहरहाल आम आदमी पार्टी की राज्य सरकार के लिए भी ये कठिन परीक्षा की घड़ी है | खालिस्तान मुर्दाबाद का नारा लगाने वालों का विरोध करने निकले लोग भारत की एकता और अखंडता के लिए कितने खतरनाक होंगे ये बताने की जरूरत नहीं है | स्मरणीय है  पंजाब में खालिस्तान के नाम पर नब्बे के दशक में उपजा आतंकवाद कालान्तर में बेअसर हो गया था | उसके बाद वहां बारी – बारी से  कांग्रेस और  अकाली – भाजपा गठबंधन की सरकार बनती रही | उस दौरान कुछ अपवाद छोड़कर खालिस्तान के पक्ष में खुलकर बोलने की हिम्मत किसी की नहीं हुई | प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व  वाला अकाली दल आनन्दपुर साहेब प्रस्ताव के पक्ष में रहने के बाद भी खालिस्तान की मांग  के समर्थन से बचता रहा | लेकिन किसान आन्दोलन के दौरान खालिस्तान समर्थक जिस तरह से सामने आये और किसान नेताओं ने तात्कालिक लाभ हेतु उनकी अनदेखी की उसी का दुष्परिणाम पंजाब में अब देखने मिल रहा है | हालाँकि विधानसभा चुनाव में खालिस्तान मुद्दा नहीं था किन्तु उसके समर्थक एक संगठन द्वारा आम आदमी पार्टी को समर्थन दिए जाने की खबरें जरूर आईं | हालाँकि  पार्टी ने  तत्काल उससे दूरी बना ली किन्त्तु ये कहना गलत नहीं होगा कि मान सरकार बनने के बाद से खालिस्तान समर्थकों का हौसला बुलंद हुआ है | अन्यथा देश के टुकड़े करने वाली मांग के विरोध में निकाले गए जुलूस पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती थी ? इस घटना के बाद मुख्यमंत्री ने दोनों पक्षों से शांति अपील की किन्तु उक्त विवाद को हिन्दू विरुद्ध सिख की बजाय खालिस्तान विरोधी और समर्थकों के बीच का विवाद कहना ज्यादा उचित रहेगा | पंजाब के आम सिख को खालिस्तान से कुछ लेना देना नहीं है | देश की एकता और अखंडता की रक्षा  के लिए इस समुदाय ने जो योगदान दिया उसी का नतीजा रहा कि लम्बे समय तक आतंक के साये में रहने के बाद भी पंजाब को भारत से अलग करने का खालिस्तानी षडयंत्र विफल साबित हुआ | ऐसा लगता है किसान आन्दोलन की आड़ लेकर देश विरोधी ताकतें एक बार फिर सिर उठाने  पर आमादा हैं | पंजाब सरकार को उनकी जड़ों को उखाड फेंकने का साहस दिखाना होगा | सिख धर्म और देशभक्ति एक दूसरे के पर्याय रहे हैं और हिन्दू – सिख एकता पंजाब की मिट्टी की पैदायश है | ऐसे में देश के किसी हिस्से में पनपने वाली अलगाववादी भावना को पूरी तरह कुचला जाना जरूरी है | कश्मीर घाटी में पाँव उखड़ने के बाद पाकिस्तान प्रवर्तित आतंकवाद अब पंजाब में अपने लिए गुंजाईश तलाश रहा है | खालिस्तानी  उग्रवादी भी सीमा पार से प्रशिक्षित होकर आते रहे हैं | गत दिवस पटियाला में जो कुछ हुआ उसे बानगी मानकर खालिस्तान समर्थकों की कमर तोड़ना बहुत जरूरी है | शिवसेना ने जो किया उसके पीछे उसके स्थानीय नेता की राजनीतिक सोच हो सकती है लेकिन खालिस्तान मुर्दाबाद कहने वालों का विरोध करने वाले तो देश विरोधी ही कहे जा सकते हैं | इसलिए उनके विरुद्ध वही कार्रवाई होनी चाहिए जो देश के दुश्मनों पर की जाती है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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