Monday 2 May 2022

जीएसटी से रिकॉर्ड कमाई का लाभ जनता को भी मिलना चाहिए



कोरोना के कहर से उबर रही अर्थव्यवस्था के लिए नए वित्तीय वर्ष का पहला महीना खुशनुमा हवा का झोका लेकर आया | गत दिवस अप्रैल महीने में हुए जीएसटी संग्रह के जो आंकड़े आये उनसे सरकार बेहद खुश होगी | 1.67 लाख करोड़ की मासिक जीएसटी आमदनी अब तक की सर्वोच्च है | जबसे ये कर प्रणाली लागू हुई है तबसे लेकर मार्च 2022 तक किसी भी महीने में जीएसटी की वसूली 1.5 लाख करोड़ से अधिक नहीं हुई | कोरोना के दो साल तो अर्थव्यवस्था के लिए किसी दु:स्वप्न से कम नहीं थे  | लेकिन उसके बाद आर्थिक जगत में हलचल बढ़ी और कुछ क्षेत्रों को छोड़कर बाकी पुरानी रंगत पर लौट आये | हमारे देश की अर्थव्यवस्था में खेती और शादियों का बड़ा ही अनूठा गठजोड़ है | कोरोना काल में लॉक डाउन तथा अतिथियों की संख्या सीमित किये जाने से शादियों में परम्परागत रौनक दिखाई नहीं दी जिसका सीधा असर खाने – पीने की चीजों के साथ ही आभूषण , कपड़ा और परिवहन व्यवसाय पर पड़ा | यद्यपि कृषि क्षेत्र ने उत्पादन के रिकॉर्ड तोड़ दिए लेकिन बाजार बंद रहने से कृषक  समुदाय जिस उत्साह के साथ खर्च करता है , उस पर भी रोक सी लग गयी | निजी क्षेत्रों में कार्यरत लाखों कर्मचारी बेरोजगार हो गए , मजदूर वर्ग के सामने तो पेट भरने तक का संकट आ खड़ा हुआ |  स्वरोजगार पर आधारित पेशेवर वर्ग भी उस दौरान तकलीफ  सहने बाध्य हुआ | व्यापारी और उद्योगपति को तो दोहरी मार पड़ी | रोज कमाने वाला उद्यमी  हाथ पर हाथ धरे बैठने मजबूर हो गया | ऐसे में जीएसटी के रूप में आने वाला कर घटता गया | लेकिन ज्योंही कोरोना का प्रकोप कम हुआ त्योंही भारतीय अर्थव्यवस्था जिस तेज गति से आगे बढ़ी वह वाकई उत्साहवर्धक है | बीते साल के उत्तरार्ध से हर महीने जीएसटी की आय में हुई उत्तरोत्तर वृद्धि से इस बात की पुष्टि होने लगी कि उद्योग , व्यापार और उपभोक्ता के बीच का आर्थिक व्यवहार अपने मूल स्वरूप में आ चुका है | कार और दोपहिया वाहनों की अचानक बढ़ी मांग का कारण भी यही समझ में आया कि महामारी के दौरान लंबित पड़ी मांग बाजार खुलते ही सामने आई | ऐसा ही कुछ पर्यटन के क्षेत्र में महसूस किया गया | कश्मीर घाटी में बीते कुछ महीनों में सैलानियों की संख्या ने घाटी की अर्थव्यवस्था को मानो प्राणवायु प्रदान कर दी | विवाह समारोह में अतिथियों की संख्या पर लगी पाबंदी हट  जाने से भी इस व्यवसाय से जुड़े कारोबारियों के चेहरे पर चमक लौटी | गत वर्ष दीपावली पर उपभोक्ताओं के उत्साह ने भी आर्थिक जगत की  खुशियां बढ़ाईं | लेकिन इस सबके साथ ही महंगाई भी जिस तेजी से बढ़ी वह ऐसा  नकारात्मक पक्ष है जो आम उपभोक्ता की खुशियों को कम करने का काम कर रहा है | ये अच्छी बात है कि जनता ने बीते दो वर्ष के दौरान आई असाधारण परिस्थितियों के दौरान पूरी तरह धैर्य और अनुशासन का परिचय दिया | इसके साथ ही ये भी कहना होगा कि सरकार ने भी उस अभूतपूर्व संकट के दौरान अपने कर्तव्य का पालन बखूबी करते हुए लोगों का मनोबल बनाये रखा , वरना अराजकता फैलते देर न लगती | बहरहाल अब जब सरकार के पास बीते वित्तीय वर्ष में करों से अनुमानित आय का आंकड़ा अपेक्षा से अधिक होने की वजह से सुविधाजनक स्थिति बन गई तब ये जनापेक्षा भी है और सरकार का नैतिक दायित्व भी कि  महंगाई से हलाकान हुई जा रही जनता की तकलीफों पर राहत की बरसात की जाए | प्रधानमंत्री ने बीते सप्ताह राज्यों से पेट्रोल – डीजल पर करों में कमी करने की गुजारिश की थी | उस पर महाराष्ट्र और प.बंगाल से तो काफी तीखी प्रतिक्रिया आई किन्तु अब तक भाजपा शासित किसी राज्य ने भी प्रधानमंत्री की बात का मान रखते हुए  करों में कटौती करने की सौजन्यता प्रदर्शित नहीं की | लेकिन मौजूदा सन्दर्भ में बात  केवल पेट्रोल – डीजल तक ही सीमित नहीं रही क्योंकि आम जनता के दैनिक उपयोग में आने वाली तकरीबन हर चीज के दाम बेतहाशा बढ़े हैं | ये देखते हुए ये आवश्यक प्रतीत होता है कि आसमान छू रही महंगाई से जन साधारण को राहत दिलवाने कुछ न कुछ किया जाना चाहिये | आर्थिक मामलों के जानकार इस तथ्य से भली- भाँति  परिचित होंगे कि जीएसटी की रिकॉर्ड तोड़ वसूली दरअसल महंगाई की वजह से संभव हो सकी क्योंकि यह कर प्रणाली  मूल्यों की घट -  बढ़ पर आधारित है | प्रधानमंत्री ने राज्यों से पेट्रोल  – डीजल पर कर घटाने  का जो आग्रह किया वह सर्वथा उचित है लेकिन दैनिक उपयोग की तमाम अन्य चीजें भी हैं जिन पर करों में  कटौती करते हुए केंद्र सरकार राज्यों पर नैतिक दबाव बना सकती है | इस बारे में एक बात समझ लेनी चाहिए कि किसी  भी अर्थव्यवस्था की मजबूती तभी तक कायम रहती है जब तक बाजार में मांग रहे | उस दृष्टि से यदि सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्य की , उसे ये देखना चाहिए कि बाजार में गतिशीलता बनाये रखने के लिए आम उपभोक्ता की ज़िन्दगी तनावरहित और सरल हो | वर्तमान स्थितियों में ये आवश्यक लगता है कि लोगों  की क्रय शक्ति किसी भी स्थिति में कम न होने दी जाये और उसके लिए सरकार को महंगाई से निजात दिलवाने के लिए जो कुछ भी जरूरी हो करना चाहिए | भले ही  ऐसा करने से जीएसटी की वसूली पर असर पड़े परन्तु उपभोक्ता की बचत अंततः घूम - फिरकर बाजार में ही आयेगी जिससे करों की आय में फर्क शायद ही पड़े | ये सही समय है जब सरकार जनता के मन में इस विश्वास को मजबूत  करे कि वह सबका साथ और सबका विकास के अपने वायदे को भूली नहीं है  | भले ही गरीब वर्ग को मुफ्त खाद्यान्न देकर वह अपने  कर्तव्य का निर्वहन कर रही है किन्तु समाज के दूसरे वर्गों की भी कुछ अपेक्षाएं हैं जिनके बारे में उसे संजीदगी के साथ विचार करना चाहिए | सर्वाधिक ध्यान देने योग्य बात ये है कि भारत का मध्यम वर्ग ही अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और जीएसटी की बढ़ती आय का बड़ा श्रेय उसी के खाते में जाता है | उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही सरकार की तरफ से ऐसा कुछ किया जावेगा जिससे आम जनता को भीषण गर्मी में भी ठंडक का एहसास हो सके |

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment