Saturday 7 May 2022

कान फोडू शोर पर रोक लगाना हर दृष्टि से सही निर्णय



उ.प्र के बदायूं जिले की एक मस्जिद पर ध्वनि विस्तारक लगाकर अजान की अनुमति न देने के विरुद्ध प्रस्तुत याचिका को रद्द करते हुए राज्य के उच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ध्वनि  विस्तारक के जरिए अजान देना मौलिक अधिकार नहीं है | उल्लेखनीय है उ.प्र सरकार ने मंदिरों और मस्जिदों में लगे हजारों लाउड स्पीकर हटवा दिए हैं | मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस गोरखनाथ पीठ के प्रमुख हैं उसके परिसर में लगे ध्वनि विस्तारकों की आवाज परिसर के बाहर न आने पाए इसकी पुख्ता व्यवस्था भी कर दी गयी है | काफी समय से ये मसला अदालतों के सामने विचाराधीन रहा है | महाराष्ट्र में तो इसे लेकर राजनीतिक विवाद भी छिड़ गया है | विभिन्न अदालतों ने ध्वनि प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए समय – समय पर आदेश पारित किये लेकिन कहीं धार्मिक भावनाएं हावी हो गईं तो कहीं प्रशासनिक उदासीनता उन आदेशों को लागू करने में बाधक बन गई | लेकिन बीते कुछ समय से ये मसला काफी चर्चा में है | महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री के चचेरे भाई राज ठाकरे ने ध्वनि विस्तारक न हटाये जाने पर अजान के समय ही मस्जिद के सामने हनुमान चालीसा का पाठ करने की जिद ठान ली है | देश के दूसरे हिस्सों में भी ध्वनि विस्तारकों से होने वाले शोर के विरुद्ध जनभावनाएं मुखरित हो रही हैं | दुर्भाग्य से ये मुद्दा धार्मिक बना दिया गया है जबकि  इसका सीधा सम्बन्ध जनता को  होने वाली परेशानी से है | केवल मस्जिदों में लगे ध्वनि विस्तारक ही शोर मचाते हों ऐसा नहीं है | अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर भी ये शिकायत है  | यही नहीं तो सड़कों पर निकलने वाले राजनीतिक और धार्मिक जुलूस भी लोगों के कान फोड़ने में सहायक बनते हैं | बारातों में बजाये जाने वाले डीजे तो कर्कशता के प्रतीक बन गये हैं | इसके अलावा किसी महापुरुष की जयन्ती पर भी ध्वनि विस्तारकों के जरिये शोर होने की शिकायतें आम हैं | घरों में होने वाले धार्मिक आयोजनों में भी ध्वनि  विस्तारक लगाकर अगल - बगल के घरों में रहने वालों के लिए परेशानी पैदा की जाती है | अखंड रामायण का आयोजन तो पूरे 24 घंटे मोहल्ले भर को सोने नहीं देता | कहने का आशय ये है कि ध्वनि विस्तारक एक संस्कृति के तौर पर हमारे सामाजिक जीवन का हिस्सा बन गया है | कुछ विशिष्ट अवसरों या आयोजनों में तो इसका उपयोग उचित  कहा जा सकता है परन्तु बिना वजह महज शोर मचाने के लिए ऐसा करना बेहूदगी होती है , जिसका प्रदर्शन हमारे देश में निर्लज्जता के साथ किया जाता है | उच्च न्यायालय का संदर्भित फैसला न सिर्फ मस्जिदों अपितु अन्य धार्मिक स्थलों पर भी लागू होगा | इसलिए इसमें किसी भेदभाव की बात भी नहीं है | ध्वनि प्रदूषण को लेकर पूरी दुनिया में नियम हैं | सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी सार्वजनिक उपयोग के दौरान ध्वनि विस्तारक की आवाज अधिकतम कितनी होगी इसकी सीमा तय की जा चुकी  है | लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि उसके फैसले का खुले आम उल्लंघन होता रहा है | धार्मिक और राजनीतिक आयोजनों में तो ध्वनि विस्तारक  प्रतिष्ठा का विषय बन गया है | वो तो भला हो टी.एन.शेषन का जिन्होंने चुनावों के दौरान ध्वनि विस्तारकों के उपयोग पर नियन्त्रण लगा दिया वरना लोगों का रहना - सोना मुश्किल होता था | नेताओं की सभाएं देर  रात तक चलने से भी शोर – शराबा जारी रहता था | ताजा फैसले में अजान हेतु ध्वनि विस्तारक के उपयोग को मौलिक अधिकार नहीं मानने की जो बात कही गयी है उसे धार्मिक नजरिये से न देखते हुए सामाजिक जिम्मेदारी के तौर पर लेना चाहिए क्योंकि धार्मिक स्वतंत्रता का पालन करने का ये अर्थ कदापि नहीं हो सकता कि उससे बाकी लोगों को तकलीफ पहुंचे | न सिर्फ मुस्लिम समाज वरन देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक के लिए जरूरी है कि वह धर्म की आड़ में मनमानी करने की जिद छोड़कर समय के साथ सुधार करने की मानसिकता  पैदा करे | चूंकि उक्त फैसला  सभी धार्मिक स्थलों पर समान रूप से लागू होगा इसलिए मुस्लिम मौलवियों सहित समाज के जिम्मेदार लोगों को संकीर्ण दृष्टिकोण त्यागकर स्वेच्छा से मुख्यधारा में शमिल होने की बुद्धिमत्ता दिखानी चाहिए | उनको ये बात भी समझनी होगी कि अपनी विशिष्ट स्थिति को बनाये रखने की उनकी जिद ही उनके लिए नुकसानदेह साबित हो रही है | आजादी के 75 साल बाद देश जिस दिशा में बढ़ रहा  है उसमें धार्मिक स्वतंत्रता के लिए तो स्थान है लेकिन स्वछंदता के लिये नहीं | मुस्लिम समाज को यह वास्तविकता भी समझ लेना चाहिए कि  तुष्टीकरण कर चुनाव जीतने वाला फार्मूला अब कारगर नहीं रहा और इसलिए अब किसी के लिए भी सौदेबाजी की स्थिति नहीं रह गई है  | लिहाजा सभी को  देश के कानून के मुताबिक चलने की आदत डाल लेनी चाहिए | तीन तलाक पर रोक के बाद  समान नागरिक संहिता  आने की चर्चा तुष्टीकरण की अंतिम यात्रा की शुरुवात का संकेत हैं | ऐसे में उ.प्र के उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया उक्त निर्णय पूरी तरह निष्पक्ष है और उसे उसके सही परिप्रेक्ष्य में स्वीकार किया जाना चाहिए |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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