Wednesday 18 May 2022

दुनिया के खाद्यान्न संकट में भारत के लिए निर्यात के अच्छे अवसर



 हर संकट कुछ न कुछ सबक दे जाता है | इसका ताजा उदाहरण है यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध से उत्पन्न वैश्विक परिस्थितियां | युद्ध में उलझे ये देश दुनिया को बड़ी मात्रा में गेंहू की आपूर्ति करते रहे हैं जिसके  अचानक ठप्प हो जाने से पूरी दुनिया में खाद्यान्न   संकट पैदा हो गया | इसका लाभ भारत जैसे देश को मिला जो अपनी जरूरत से ज्यादा गेंहू पैदा करने लगा है | बीते दो सालों से 80 करोड़ जनता को मुफ्त अनाज देने वाली खाद्यान्न सुरक्षा और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत मुफ्त अनाज देने की व्यवस्था इसी आधार पर की जा सकी | किसी भी संकट का सामना करने के लिए सरकार के पास खाद्यान्न का भरपूर स्टॉक गोदामों में होने से निश्चिंतता बनी रहती है | लेकिन इस वर्ष मार्च में ही तापमान बढ़ जाने से गेंहू का उत्पादन कम हुआ जिससे सरकारी खरीद पर असर पड़ा | दरअसल यूक्रेन संकट के कारण भारतीय गेंहू की मांग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अचानक बढ़ जाने से ज्यादातर किसानों को सरकारी मंडी जाने की जरूरत नहीं पड़ी | इसका कारण निजी क्षेत्र के व्यापारी उसके खेत में ही आकर खरीदी कर ले गये और वह भी सरकारी मूल्य से ज्यादा पर  | ज़ाहिर है वे भी निर्यात के जरिये कमाई करना चाहते थे | परिणामस्वरूप  सरकारी खरीद लक्ष्य से काफी कम हुई वहीं खुले बाजार में गेंहू और उससे बने आटे के दाम भी ऊपर जाने लगे | हालाँकि निर्यात में वृद्धि  से व्यापार  घाटा कम होने के आसार बढ़े वहीं  भारत के अनाज को नए खरीददार मिलने से किसान और निर्यातक  दोनों को लाभ हुआ | लेकिन इसका विपरीत असर घरेलू मोर्चे पर होता देख केंद्र सरकार ने 13 मई तक हुए सौदों के बाद गेंहू का निर्यात रोक दिया जिसका असर भी तत्काल नजर आने लगा | बाजार में गेंहू के दाम घटने से उपलब्धता बढ़ गयी जिससे खाद्यान्न की मंहगाई  भी कुछ कम हुई | यह फैसला किसानों और निर्यातकों को जरूर खला होगा लेकिन अर्थशास्त्रियों ने इसका स्वागत किया | लेकिन जो ताजा समाचार मिल रहे हैं उनके अनुसार अमेरिका ये कहते हुए भारत पर गेंहू के निर्यात से प्रतिबंध हटाने का दबाव डाल रहा है कि अन्यथा दुनिया में खाद्यान्न संकट पैदा हो जाएगा | जी – 7 देशों की बैठक में भी ये मुद्दा उठने की उम्मीद है |  दरअसल रूस और यूक्रेन से पूरी तरह गेंहू का निर्यात रुकने से भारत उसके बड़े आपूर्तिकर्ता के तौर पर सामने आया | हालाँकि प्रतिबन्ध के बावजूद अभी भी पुराने सौदों को पूरा किया जा रहा है | लेकिन इस संकट  में भी एक नई सम्भावना निकलकर आ रही है | रूस और यूक्रेन का युद्ध जिस स्थिति में आ गया है उसमें उसके लम्बा खिंचने के आसार हैं |  देर – सवेर उसके समाप्त होने के बाद भी इन दोनों देशों से खाद्यान्न विशेष रूप से गेंहूं का निर्यात या फिर उसकी मात्रा  पूर्ववत नहीं रह सकेगी | उस स्थिति में भारत विश्व की खाद्य जरूरत पूरी  करने के साथ ही गेंहू को उसी तरह अपनी अर्थव्यवस्था के लिए रणनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है जैसे कि कच्चा तेल के उत्पादक देश करते आ रहे हैं | इस बारे  में  उल्लेखनीय है कि तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक की तर्ज पर कुछ साल पहले  दक्षिण पूर्व एशिया के देशों इंडोनेशिया , फिलिपीन्स , थाईलैंड आदि ने चावल का पूल बनाकर वैश्विक बाजारों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई | तेल उत्पादक देश भी अपने नफे - नुकसान के हिसाब से कच्चे तेल के उत्पादन का फैसला करते हैं ताकि दाम उनके अनुकूल रहें | इस बारे में अमेरिका का उल्लेख करना भी प्रासंगिक है जो तेल के खेल को नियंत्रित करने के लिए प. एशिया में युद्ध के हालात बनाये रखता है किन्तु अपने तेल भंडारों को किसी वैश्विक आपातकाल के लिए सुरक्षित रखे है | हाल ही में मलेशिया ने भी दुनिया भर में खाद्य तेल की मारामारी  के बीच पाम आयल का निर्यात पहले तो बंद कर दिया जिससे उसकी घरेलू जरूरत में रूकावट न आये किन्तु बाद में उसमें कुछ ढील दी | भारत ने भी गेंहू निर्यात आंशिक तौर पर ही प्रतिबंधित किया है | लेकिन इस दौरान ये बात साबित हो गई कि दुनिया के बदलते हुए आर्थिक परिदृश्य में भारत भी अपने खाद्यान्न को एक कूटनीतिक हाथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है | इसे वस्तु विनिमय का जरिया भी बनाए जाने की सम्भावना है | रही बात अमेंरिका और जी – 7 देशों के दबाव की तो भारत उनके सामने अपनी जरूरतों को रखकर फायदेमंद सौदे करने का प्रयास करे और यदि  अनुकूल नतीजे आयें तो भविष्य में खाद्यान्न निर्यातक के तौर पर हमारा देश दुनिया भर में अपनी धाक जमा सकेगा | इस बारे में एक बात याद रखनी चाहिए कि आज की दुनिया पूरी तरह से व्यावसायिक हो गई है | जितनी भी लड़ाइयाँ और शांति प्रयास होते हैं उनके पीछे भी कहीं न कहीं व्यावसायिक  हित ही होते हैं | वर्तमान में रूस और यूक्रेन के बीच का युद्ध भी महज सीमा विवाद न होकर पूरी तरह से आर्थिक लाभ के लिए हो रहा है | भारत ने जिस तरह इस विवाद में तटस्थ रहकर अपना कूटनीतिक  कौशल दिखाया ठीक वैसे ही उसे अपने व्यावसायिक हित सुरक्षित रखते हुए नए अवसर तलाशने पर ध्यान देना चाहिए | संयोगवश गेंहू एवं अन्य खाद्यान्न  इसमें मददगार हो सकते हैं  | लेकिन सबसे पहले अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करना चाहिए | जो देश भारत द्वारा  गेंहू के निर्यात पर नियंत्रण का विरोध कर रहे हैं  वे भी  अपने राष्ट्रीय हितों की चिंता में हैं | वैश्विक मंचों  में आदर्श की बातें चाहे जितनी भी क्यों न हों लेकिन अंततः ले - देकर बात व्यावसायिक हितों पर आकर टिक जाती है | केंद्र सरकार ने गेंहूं के नए निर्यात सौदों को रोकने का एक कारण अपने पड़ोसियों की खाद्यान्न आवश्यकताओं की पूर्ति भी बताया है | एक बड़ा देश होने के नाते अपने दायित्व के प्रति सजगता से ही हमारी छवि दुनिया भर में एक जिम्मेदार देश के तौर पर बनी है | इसे बनाये रखते हुए हम खाद्यान्न निर्यात के जरिये ऐसी तमाम चीजों का आयात बदले में कर सकते हैं जिनके लिए अभी हमें  भारी – भरकम विदेशी मुद्रा देनी पड़ती है | रूस – यूक्रेन युद्ध  इस दृष्टि से हमारे लिए विदेश व्यापार के मोर्चे पर अनेक अवसर  लेकर आया है | लेकिन इनका लाभ तभी मिल सकेगा जब हमारे पास उनका लाभ उठाने की ठोस कार्ययोजना हो | 

-रवीन्द्र वाजपेयी


 

No comments:

Post a Comment