Tuesday 10 May 2022

कमजोर नेतृत्व खालिस्तानी आतंक की वापसी की वजह बन रहा



ऐसा लगता है पंजाब को जलाने की बड़ी साजिश रची जा रही है | पटियाला में खालिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाने वाली रैली पर सिख संगठन द्वारा किये हमले के बाद काली मंदिर में जिस तरह से निहंगों द्वारा आतंक फैलाया गया वह सामान्य बात नहीं थी | पंजाब के किसी हिन्दू धार्मिक स्थल में घुसकर सिखों द्वारा तलवारें लहराने का यह संभवतः पहला अवसर था | अन्यथा गुरुद्वारों में जहाँ हिन्दू श्रद्धालु बड़ी संख्या में देखे जाते हैं वहीं मंदिरों में सिखों की आवाजाही भी बहुत ही सामान्य बात है | वैष्णो देवी और अमरनाथ यात्रा में भी सिखों की अच्छी खासी संख्या होती है | नब्बे के दशक में जब खालिस्तानी आतंक पंजाब में छाया था तब भी हिन्दू – सिख भाईचारा यथावत रहा | लेकिन ऐसा लगता है किसान आन्दोलन की नमी से पनपे खालिस्तानी बीज पंजाब की धरती पर अंकुरित होने लगे हैं | निहंगों द्वारा की गई कुछ हिंसक वारदातों के बाद ये महसूस किया जाने लगा है कि देश विरोधी शक्तियां इस सीमावर्ती राज्य में पाँव फ़ैलाने के लिये प्रयासरत हैं | बीते कुछ दिनों के भीतर ही जो संदिग्ध पकड़े  गये उनके पास से विस्फोटक पदार्थ भी मिले | गत दिवस चंडीगढ़ के निकट पंजाब के मोहाली में स्थित इंटेलिजेंस विंग के मुख्यालय पर रॉकेट से हुए हमले से उन तमाम आशंकाओं की पुष्टि हो गई जिनके अनुसार पंजाब में आतंकवाद नए सिरे से सिर उठाने की फ़िराक में हैं |  हालाँकि रात का समय होने से नुकसान ज्यादा नहीं हुआ अन्यथा दिन के समय जनहानि भी हो सकती थी | बताया जा रहा है कि रॉकेट तकरीबन 80 फीट दूर से फेंका गया |  इस सन्दर्भ में सबसे अधिक चिंता का विषय ये है कि आखिरकार ऐसा क्या और कैसे हो गया कि दशकों से ठंडा पड़ा खालिस्तानी आन्दोलन अचानक गर्म हो उठा | स्मरणीय है जब कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब के किसान जिनमें ज्यादातर सिख थे,दिल्ली आये तब मददगार के तौर पर गुरुद्वारों ने भी धरनास्थल पर लंगर के जरिये सेवा कार्य शुरू किये | शुरुवात में तो वह सामान्य लगा लेकिन जल्द ही वहां  भिंडरावाले के चित्र वाली टी शर्ट और खालिस्तानी झन्डे नजर आने लगे | निहंगों ने भी किसानों के तम्बुओं के साथ अपना डेरा जमा लिया जबकि उन्हें खेती – किसानी से कुछ भी लेना देना नहीं था | सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि किसान आन्दोलन के समर्थन में कैनेडा और ब्रिटेन में भारतीय दूतावास के समक्ष वहां रहने वाले सिख संगठनों द्वारा प्रदर्शन किये गए जिनमें खालिस्तानी नारे भी लगे | वह  आन्दोलन तो जैसे – तैसे खत्म हो गया और कृषि कानून भी वापिस हो गये परन्तु  जिस कांग्रेस सरकार ने आन्दोलन को पंजाब से दिल्ली भेजकर अपना सिरदर्द घटाया था , जनता ने उसे सत्ता से बाहर कर दिया | लेकिन विकल्प के तौर पर आई आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से जिस तरह खालिस्तान समर्थक सिख संगठन खुले आम उपद्रव मचाने का दुस्साहस कर रहे हैं वह आने वाले बड़े खतरे का संकेत है | आम आदमी पार्टी के खालिस्तानी नेताओं से सम्बन्धों को लेकर अरविन्द केजरीवाल के पुराने साथी डा.कुमार विश्वास ने जो आरोप विधानसभा चुनाव के पूर्व लगाए और फिर हालिया घटनाओं पर प्रतिक्रिया के दौरान उसकी सांकेतिक पुष्टि की वह निश्चित रूप से विवादित मसला है | परन्तु इतना जरूर  कहा जा सकता है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान की  प्रशासनिक क्षमता पर अभी से सवाल उठने शुरू हो गये हैं | इस बारे में ये भी विचारणीय है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कुर्सी छोड़ने के पूर्व अनेक मर्तबा केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से अकेले में बात करते हुए सुरक्षा संबंधी कुछ जानकारियाँ दी थीं | निश्चित तौर पर उनके संज्ञान में कुछ न कुछ ऐसा आया होगा जिसे केंद्र सरकार की जानकारी में लाने की जरूरत उन्होंने महसूस की  |  उस समय पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के पाकिस्तान के निवर्तमान प्रधान मंत्री इमरान खान से याराने की भी राजनीतिक जगत में खूब चर्चा थी | ये भी सुनने में आता रहा कि कैप्टन ने सिद्धू और इमरान के बीच नजदीकी को लेकर भी कुछ जानकारी श्री शाह  को दी थी | हालांकि ऐसी बातों का खुलासा नहीं हो पाता किन्तु बीते एक दो साल के भीतर पंजाब के राजनीतिक  घटनाक्रम पर निगाह डालने से  ये बात सामने आती है कि स्पष्ट बहुमत वाली सरकार और कैप्टन जैसे अनुभवी मुख्यमंत्री  के बावजूद पकिस्तान की सीमा से सटे इस राज्य में कांग्रेस  की अंतर्कलह और पार्टी हाईकमान के ऊलजलूल निर्णयों ने वहां राष्ट्रीय पार्टियों की कब्र खोदने का गुनाह कर डाला | परिणामस्वरूप मिट्टी के नीचे दबे राष्ट्रविरोधी बीज सतह से ऊपर आने लगे हैं | गत दिवस नवजोत और भगवंत के बीच मुलाकात की खबर के बाद मोहाली में ख़ुफ़िया विंग के मुख्यालय पर राकेट से ग्रेनेड फेंके जाने की घटना हो गयी | हालांकि उस  मुलाकात से इसके तार जोड़ना उचित नहीं है लेकिन एक बात जरूर सामने आने लगी है कि पंजाब में जिस नई राजनीति का उदय हुआ उसके पास अनुभवी नेतृत्व का अभाव होने से राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे की अनदेखी करने का खतरा उत्पन्न हो गया है | आम आदमी पार्टी की सरकार ने स्वच्छ प्रशासन का जो संकेत दिया वह बेशक उत्साहवर्धक है लेकिन खालिस्तानी ताकतों पर लगाम न कसी गई तो पंजाब में आतंकवाद की लपटें तेज होने का खतरा बढ़ जाएगा | ऐसा लगता है श्री  मान के पास स्वतंत्र सोच का अभाव है और उनके मार्गदर्शक श्री केजरीवाल आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से राष्ट्रीय विकल्प बनने के लिए हाथ - पाँव मारने में व्यस्त हैं | ऐसे में देश विरोधी ताकतों को अपना जाल फ़ैलाने का अवसर मिलने की सम्भावना बढ़ रही है |   

- रवीन्द्र वाजपेयी

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