Tuesday 24 May 2022

क्वाड : चीन की चिंता का कारण भारत का बढ़ता प्रभाव है



जापान की राजधानी टोक्यो में क्वाड नामक चार देशों के रणनीतिक गठबंधन की बैठक ऐसे समय हो रही है जब दुनिया कोरोना महामारी से उबरने के बाद रूस और यूक्रेन में युद्ध के कारण अनपेक्षित संकट में घिर  गई है | इसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ ही कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के अलावा  खाद्यान्न की आपूर्ति भी गड़बड़ा गई है | उल्लेखनीय बात ये है कि हिन्द – प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और सहयोग के लिए बने  क्वाड के चार देशों में से तीन अमेरिका , जापान और आस्ट्रेलिया जहाँ रूस द्वारा यूक्रेन में की जा रही सैन्य कार्रवाई के विरुद्ध मुखर हैं  जबकि भारत ने  तटस्थता की नीति अपनाई हुई है | जैसा कि माना जाता है  क्वाड का गठन हिन्द – प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तारवाद को रोकने के लिए किया गया था | चूंकि इसमें अमेरिका भी शामिल है इसलिए चीन  भन्नाता रहता है | उसे इस बात की  शिकायत है कि इसके बहाने अमेरिका उसकी घेराबंदी कर रहा है जिसमें भारत ,जापान और आस्ट्रेलिया उसके साथ हैं | लेकिन ये भी सच है कि वह जिस तरह से अपनी समुद्री सीमा बढ़ाना चाह रहा है उससे न सिर्फ दक्षिण एशियाई देश अपितु जापान और आस्ट्रेलिया तक आतंकित हैं | जापान के अनेक द्वीपों पर तो वह अपना दावा लंबे समय से करता आ रहा है | सबसे बड़ी आशंका ताइवान को हड़पने की उसकी योजना है | वन चाइना नीति को लेकर वह बीते कुछ दिनों से ज्यादा ही आक्रामक है | ये भी कहा जा रहा है कि यदि रूस ने यूक्रेन पर हमला न किया होता तो चीन वैसी ही कार्रवाई ताइवान में करने वाला था | अमेरिका ने भी जवाबी तैयारी के तहत अपने युद्धपोत और मिसाइलें ताइवान की रक्षा के लिए तैनात कर दिए थे | चीन द्वारा आये दिन उसकी वायुसीमा का उल्लंघन किया जाता है | ऐसे में  इस बैठक से चीन का बौखलाना  स्वाभाविक ही है | गत दिवस अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन को चेतावनी  देते हुए कहा कि ताइवान पर हमला करने के गंभीर परिणाम उसे भुगतने होंगे | लेकिन ऐसा कहते हुए उन्होंने वन चाइना नीति को सैद्धांतिक तौर पर स्वीकार भी किया | उनकी ये बात अमेरिका की  विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है क्योंकि यूक्रेन पर रूस के  हमले  की आशंका के बीच अमेरिका सदैव  गम्भीर परिणाम भुगतने की धमकी देता रहा | लेकिन जब रूस ने यूक्रेन पर चढ़ाई कर दी तब बाइडेन ने उसके  नाटो सदस्य न होने का बहाना बनाकर सेनाएं भेजने से इंकार कर दिया | हालाँकि वह और उसके समर्थक देश यूक्रेन को आर्थिक और सामरिक सहायता तो दे रहे हैं लेकिन रूस जैसी महाशक्ति से टकराने के लिए जिस तरह यूक्रेन को अकेला छोड़ दिया गया उससे अमेरिका की साख गिरी है | हालाँकि ताइवान में अमेरिका की फौजी उपस्थिति है  | लेकिन ये आशंका आधारहीन नहीं है कि यदि चीन ने ताइवान पर कब्जा करने का दुस्साहस किया तब अमेरिका किस हद तक बचाव में उतरेगा क्योंकि वह चीन पर जवाबी वार करता है तब स्थिति भयावह हो सकती है | हालाँकि यूक्रेन संकट में रूस  के फंस  जाने के बाद चीन शायद इस मामले में जल्दबाजी न करे लेकिन जिस तरह से उसने क्वाड को नाटो की संज्ञा देते हुए  ताइवान मामले से अमेरिका को दूर रहने की समझाइश दी वह भी काबिले गौर है | जैसी कि खबरें आ रही हैं उनके अनुसार कोरोना के बाद से चीन आंतरिक और वैश्विक दोनों दृष्टि से कमजोर हुआ है | ये भी संयोग है  कि जिस तरह  रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने  आजीवन सत्ता में रहने का प्रबंध कर लिया था उसी तरह से चीन में शी जिनपिंग ने भी  निर्बाध शासन करते रहने की व्यवस्था कर ली थी किन्तु यूक्रेन पर हमला करने के बाद जहाँ पुतिन वैश्विक खलनायक बनकर अकेले पड़ गये ठीक वैसी ही स्थिति कमोबेश जिनपिंग की भी नजर आ रही है | रूस पर तो अमेरिका और उसके समर्थक देशों ने आर्थिक प्रतिबन्ध थोप दिए  किन्तु कोरोना वायरस के लिए जिम्मेदार मानते हुए भी चीन के साथ ऐसा न करने के बावजूद भी जिस तरह से उसका आर्थिक बहिष्कार  किया जाने लगा और अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने वहाँ से अपना कारोबार समेटकर वियतनाम , इंडोनेशिया , थाईलैंड और भारत का रुख किया उसकी वजह से उसकी अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ने लगा | कोरोना की तीसरी लहर ने देश के अनेक शहरों में  लॉक डाउन की स्थिति बना रखी है जिसके कारण सरकार के विरुद्ध असंतोष बढ़ रहा है | चीन में बना टीका असरकारक न होने से टीकाकरण  भी गड़बड़ा गया है | इन सब वजहों से जिनपिंग की पकड कमजोर होती जा रही है | चीन को लग रहा है कि क्वाड में भारत का होना कूटनीतिक तौर पर उसके असर को कम करने वाला है | बीते कुछ समय से आस्ट्रेलिया और भारत के बीच जिस तरह से सामरिक निकटता बढ़ी वह उसको परेशान कर रही है | दो वर्ष पहले लद्दाख की गलवान घाटी में हुई सैन्य झड़प के बाद भारत द्वारा जिस पैमाने पर सैन्य तैयारियां की गईं उससे भी जिनपिंग परेशान हैं |  चीन के लिये हैरानी की बात ये भी है कि यूक्रेन संकट पर तटस्थ रुख पर कायम रहने के बावजूद भारत के प्रति अमेरिका का रवैया सहयोगात्मक बना हुआ है | यहाँ तक कि बाइडेन के दबाव के बाद भी भारत ने रूस से न सिर्फ कच्चे तेल का सौदा किया बल्कि गेंहू के निर्यात पर रोक लगाने में  भी संकोच नहीं किया | ये सब देखकर चीन को लगता है कि क्वाड भी नाटो जैसा ही संगठन है जिसका एकमात्र उद्देश्य उसके प्रभावक्षेत्र को सीमित रखते हुए उस पर दबाव बनाये रखना है | सबसे बड़ी बात ये है कि भारत एक स्वतंत्र शक्ति के तौर पर  न सिर्फ एशिया बल्कि समूचे विश्व में अपने पैर जमा रहा है | श्रीलंका के आर्थिक संकट के लिए भी जिस तरह से चीन को दोषी  माना जा रहा है उससे भी जिनपिंग कमजोर हुए हैं | कुल मिलाकर क्वाड की यह बैठक भले ही अमेरिका के राष्ट्रपति की उपस्थिति में हो रही है लेकिन उसमें भारत की भागीदारी सबसे ज्यादा मायने रखती है क्योंकि समूचे एशिया में हम  ही ऐसे देश हैं जो चीन  को उसी की भाषा में जवाब देने का साहस रखते हैं  | प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की इस बात के लिए प्रशंसा करनी होगी कि वे विश्व की आर्थिक और सामरिक  महाशक्तियों के साथ भारत के बराबरी के सम्बन्ध बनाने में सफल रहे | क्वाड की मौजूदा बैठक में अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा रूस की आलोचना के बाद भी श्री मोदी का तटस्थ रहना ये दर्शाता है कि भारतीय विदेश नीति अब पूरी तरह दबावरहित है |  

-रवीन्द्र वाजपेयी



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