Wednesday 4 May 2022

दंगे : समान नागरिक संहिता के विरोध में अग्रिम दबाव बनाने की कोशिश



राजस्थान के करौली में हुए दंगे की तपिश कम भी नहीं हुई थी कि गत दिवस जोधपुर में सांप्रदायिक फसाद हो गया | अक्षय तृतीया और परशुराम जयन्ती के साथ ईद का संयोग होने से पूरे देश में प्रशासन काफी सतर्क था | उ.प्र में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने तो किसी भी प्रकार के धार्मिक जुलूस की अनुमति नहीं दी | म.प्र के खरगौन में भी हाल ही में हुए दंगे की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया | अक्षय तृतीया पर हिन्दू समाज में बड़ी संख्या में विवाह एवं अन्य मांगलिक कार्यों के साथ ही  परशुराम जयंती के कारण अनेक स्थानों पर जुलूस निकालने की परम्परा भी है | दूसरी तरफ ईद पर मुस्लिम समुदाय के लोग भी नमाज हेतु ईदगाह जाते हैं | ऐसे में अपेक्षित तो यही था कि दोनों धर्मावलम्बी शान्ति और सद्भाव  के साथ अपने – अपने त्यौहार मनाते किन्तु जोधपुर में जो कुछ हुआ उससे स्पष्ट हो गया कि दंगों की ये श्रृंखला किसी योजना का हिस्सा है | उसके चित्र संचार माध्यमों पर प्रसारित होने के बाद दोषियों की पहिचान आसानी से की जा सकती है | दंगाइयों ने पुलिस वालों पर जिस तरह से घातक हमले किये उनसे उनकी प्रवृत्ति समझ में आ गयी | जो कारण बताया गया है वह इतना बड़ा नहीं था कि दंगे का रूप ले ले | ये कहना भी गलत न होगा कि हमारे देश में धारा 144 पूरी तरह से मजाक बनकर रह गई है | सामान्य परिस्थितियों तक में पुलिस बल का भय लगातार घटता जा रहा है | वरना निषेधाज्ञा लागू होने के बाद भी लोग हुजूम बनाकर सड़कों पर उत्पात मचाने की जुर्रत नहीं करते | जहाँ – जहाँ भी हाल ही में दंगे हुए उनका किसी त्यौहार के दिन ही होना इस बात का संकेत है कि जान बूझकर ऐसा किया गया जिससे समाज में तनाव बढ़े और शांति व्यवस्था के लिये खतरा पैदा हो | सतही तौर पर तो हर कोई ये कहते हुए दिखता है कि दोनों सम्प्रदायों के लोगों को मिल - जुलकर रहना चाहिए | गंगा – जमुनी संस्कृति की भी खूब  दुहाई दी जाती है , लेकिन वास्तविकता के धरातल पर देखें तो तस्वीर कुछ और ही है | जोधपुर में दंगे का जो कारण बताया गया ,  ठीक वैसा ही करौली , खरगौन और दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में देखने मिला था |  इसका मतलब यही है कि दंगा करवाने वालों के बीच जीवंत संपर्क और सामजंस्य  है | पुलिस और सुरक्षा बल किसी भी वारदात को अंजाम देने वालों की पृष्ठभूमि , संपर्क और तौर – तरीकों का अध्ययन करते हैं | उस आधार पर ये कहना गलत न होगा कि बीते एक माह के दौरान जितने भी सांप्रदायिक उपद्रव हुए उन सबके लिए बनाया गया बहाना लगभग एक समान ही है | पत्थर फेंकने की शैली एक जैसी होने से  भी लगता है जैसे उसके लिए बाकायदा प्रशिक्षण दिया गया हो | कुल मिलाकर बात राजनीतिक संरक्षण की आ जाती है | जिस राज्य की सरकार तुष्टीकरण से ऊपर उठकर दंगाइयों में भेद नहीं करती वहां स्थितियां नियन्त्रण में रहती हैं परन्तु  जहाँ राजनीति हावी रहती है वहां असली अपराधी बच जाते हैं | म.प्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ट नेता जब ये कहते हैं कि गरीब मुस्लिम युवकों से भाजपा पत्थर फिकवाती है तो आश्चर्य के साथ दुःख होता है | करौली , खरगौन और जहांगीरपुरी में किसके जुलूस पर हमला हुआ और किसने किया ये किसी से छिपा नहीं है | लेकिन देश का एक वर्ग सत्य से नजरें चुराने की आदत से बाज नहीं आ रहा जिससे उपद्रवी तत्वों का हौसला बुलंद हो रहा है | करौली के बाद राजस्थान  के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृहनगर में गत दिवस हुआ सांप्रदायिक दंगा केवल प्रशासनिक विफलता नहीं बल्कि उसके लिए प्रदेश सरकार में बैठे नेतागण भी जिम्मेदार हैं जो करौली दंगे के दोषियों को  दंडित करवाने की बजाय राजनीतिक नफे – नुकसान का आकलन करते रहे  | जिस तरह खरगौन और जहांगीरपुरी में दंगा करवाने वालों पर प्रहार किया गया , वैसा ही करौली में किया जाता तब जोधपुर को जलाने का दुस्साहस न हुआ होता |  वैसे ये कहना गलत नहीं होगा कि उपद्रवी मानसिकता के लोग भी सभी धर्मों में होते हैं | लेकिन शासन में जमे नेताओं द्वारा दोषियों को बख्शने की हिदायत दिये जाने से इस मानसिकता को बढ़ावा मिलता है |  करौली दंगे के दोषियों को बचाने की गहलोत सरकार की गलती का खामियाजा जोधपुर ने भोगा | बीते कुछ समय से देश में एक सोची – समझी साजिश के अंतर्गत मुस्लिम समाज को मौजूदा व्यवस्था के विरुद्ध भड़काने का काम राजनीतिक नेताओं के अलावा मजहबी लोग कर रहे हैं | मुसलमानों के मन में बेवजह डर भी पैदा किया जा रहा है | सामाजिक सुधारों को धर्म विरोधी बताकर साम्प्रदायिक उन्माद की जमीन तैयार की जा रही है | भ्रम फ़ैलाने वाले ये कहने तक से बाज नहीं आ रहे कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाया जाना मुस्लिम विरोधी फैसला था | तीन तलाक पर रोक का हालाँकि मुस्लिम महिलाओं ने स्वागत किया लेकिन उसे लेकर भी तरह – तरह के बातें कही जाती रहीं | कुछ दिनों से समान नागरिक संहिता  लागू किये जाने की चर्चा चल रही  है |  ऐसा लगता है दंगों की ये श्रृंखला उसके विरोध में अग्रिम दबाव बनाने के लिये रची गई है | ऐसे में ये कहना गलत नहीं है कि देश को आंतरिक तौर पर कमजोर करने की कोशिश इनके जरिये की जा रही है | राजनीतिक जमात  से यही अपेक्षा है कि अगर वह दंगों को रोकने में मददगार नहीं हो सकती तो कम से कम उन्हें भड़काने का पाप तो न करे क्योंकि इनकी आग ये नहीं  देखती कि जलने वाले का धर्म क्या है ? 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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