Saturday 21 May 2022

औरंगजेब निर्मित मस्जिद नहीं अब्दुल कलाम की मिसाइल पर गर्व करें मुस्लिम



वाराणसी के  ज्ञानवापी  प्रकरण की सुनवाई जिला न्यायाधीश को सौंपने के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इस हेतु 8 सप्ताह की अवधि तय करते हुए उस जांच रिपोर्ट की गोपनीयता भंग होने पर नाराजगी व्यक्त की जिसमें मस्जिद परिसर के वुजुखाने में शिवलिंग पाए जाने के अलावा दीवारों पर अनेक ऐसी  आकृतियाँ देखी गईं जो हिन्दू मंदिर होने का प्रमाण हैं | मुस्लिम पक्ष ने इन निष्कर्षों को ही नहीं नकारा अपितु जांच की वैधानिकता को  भी चुनौती दे डाली  | लेकिन सर्वोच्च न्यायालय  ने उसको नजरअंदाज करते हुए प्रकरण को निचली अदालत के बजाय जिला न्यायाधीश के समक्ष भेजकर कहा कि वुजुखाने को सील रखते हुए  नमाज के लिए स्थानीय प्रशासन जरूरी व्य्वास्थाएं करे | इस प्रकार  सर्वोच्च न्यायालय ने फ़िलहाल इस दलील को सिरे से ख़ारिज कर दिया कि 1991 के पूजा स्थल कानून के अंतर्गत ज्ञानवापी में सर्वेक्षण नहीं करवाया जा सकता  | वैसे स्थानीय निचली अदालत ने जो  कमीशन मस्जिद में सर्वेक्षण हेतु गठित किया था यदि उसके साथ पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के दल भी भेजे जाते जो अवलोकन और विश्लेषण अधिक बारीकी से हुआ होता |  इस तरह के विवादों में पुरातत्व विशेषज्ञों की राय ही प्रामाणिक  मानी जा सकती है जिनके निष्कर्ष  ठोस तथ्यों पर आधारित्त होते हैं | अभी तक  ज्ञानवापी के भीतर जितना भी सर्वेक्षण हुआ वह सतही होने के बावजूद यदि हिन्दू मंदिर के प्रमाण दे रहा है तब पुरातत्व विशेषज्ञ  खोजबीन करेंगे तो  हिन्दू पक्ष के दावों की पुष्टि होने की सम्भावना और बढ़ जायेगी  | वाराणसी के इतिहास से भली – भांति वाकिफ अनेक वरिष्ट जनों ने शहर की रजिया मस्जिद में भी ऐसे  ही सर्वेक्षण  की मांग की है क्योंकि उसे  भी  मंदिर तोड़कर बनाए जाने के प्रमाण अनेक शोधकर्ताओं ने दिए हैं । औरंगजेब निर्मित मस्जिद नहीं  अब्दुल कलाम की मिसाइल पर गर्व करें मुस्लिम

वाराणसी के  ज्ञानवापी  प्रकरण की सुनवाई जिला न्यायाधीश को सौंपने के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इस हेतु 8 सप्ताह की अवधि तय करते हुए उस जांच रिपोर्ट की गोपनीयता भंग होने पर नाराजगी व्यक्त की जिसमें मस्जिद परिसर के वुजुखाने में शिवलिंग पाए जाने के अलावा दीवारों पर अनेक ऐसी  आकृतियाँ देखी गईं जो हिन्दू मंदिर होने का प्रमाण हैं | मुस्लिम पक्ष ने इन निष्कर्षों को ही नहीं नकारा अपितु जांच की वैधानिकता को  भी चुनौती दे डाली  | लेकिन सर्वोच्च न्यायालय  ने उसको नजरअंदाज करते हुए प्रकरण को निचली अदालत के बजाय जिला न्यायाधीश के समक्ष भेजकर कहा कि वुजुखाने को सील रखते हुए  नमाज के लिए स्थानीय प्रशासन जरूरी व्य्वास्थाएं करे | इस प्रकार  सर्वोच्च न्यायालय ने फ़िलहाल इस दलील को सिरे से ख़ारिज कर दिया कि 1991 के पूजा स्थल कानून के अंतर्गत ज्ञानवापी में सर्वेक्षण नहीं करवाया जा सकता  | वैसे स्थानीय निचली अदालत ने जो  कमीशन मस्जिद में सर्वेक्षण हेतु गठित किया था यदि उसके साथ पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के दल भी भेजे जाते जो अवलोकन और विश्लेषण अधिक बारीकी से हुआ होता |  इस तरह के विवादों में पुरातत्व विशेषज्ञों की राय ही प्रामाणिक  मानी जा सकती है जिनके निष्कर्ष  ठोस तथ्यों पर आधारित्त होते हैं | अभी तक  ज्ञानवापी के भीतर जितना भी सर्वेक्षण हुआ वह सतही होने के बावजूद यदि हिन्दू मंदिर के प्रमाण दे रहा है तब पुरातत्व विशेषज्ञ  खोजबीन करेंगे तो  हिन्दू पक्ष के दावों की पुष्टि होने की सम्भावना और बढ़ जायेगी  | वाराणसी के इतिहास से भली – भांति वाकिफ अनेक वरिष्ट जनों ने शहर की रजिया मस्जिद में भी ऐसे  ही सर्वेक्षण  की मांग की है क्योंकि उसे  भी  मंदिर तोड़कर बनाए जाने के प्रमाण अनेक शोधकर्ताओं ने दिए हैं । अब तक मुस्लिम पक्ष को इस बात का भरोसा था कि 1991 के कानून की आड़ लेकर वह ज्ञानवापी में छिपे हिन्दू संस्कृति के प्रतीकों पर पर्दा पड़ा रहने देगा किन्त्तु सर्वोच्च न्यायालय ने जाँच पर रोक न लगाकर एक रास्ता खोल दिया है | इस बारे में मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ ही ओवैसी जैसे राजनीतिक नेताओं को ये समझ लेना चाहिए कि इतिहास की उन सच्चाइयों से पर्दा उठाना समय की  मांग है जिन्हें अब तक छिपाकर रखा गया | ज्ञानवापी और उसके बाद उठ रहे ऐसे ही विवादों पर न्यायालय के फैसले को मानने की प्रतिबद्धता तो मुस्लिम  पक्ष भी लगातार दोहरा रहा है  लेकिन आगे बढ़कर उसे औरंगजेब सहित  उन तमाम मुग़ल बादशाहों तथा उनकी सरपरस्ती में पनपे छोटे – छोटे मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दू धर्मस्थलों के तोड़ने और उनके स्थान पर मस्जिदें बनाने जैसे कार्यों की निंदा करने का साहस भी प्रदर्शित करना चाहिए | आजकल अनेक मुस्लिम ये तर्क देते हैं कि भारत में मोहम्मद गौरी सहित अन्य  मुस्लिम  आक्रान्ताओं का आगमन तत्कालीन हिन्दू शासकों के आमन्त्रण पर हुआ जिन्होंने  अपने स्वार्थवश उनको भारत में घुसने का मौका दिया |  लेकिन  ऐसे लोगों  को ये नहीं  भूलना चाहिए कि उन हिंदू शासकों को भारतीय समाज ने गद्दार की श्रेणी में रखा | जयचंद का नाम लेते  ही घृणा  का भाव मन में आने लगता है | लेकिन मुस्लिम  समाज में क्या औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर किये गए अत्याचारों के प्रति किसी भी प्रकार की नाराजगी या अफ़सोस है ? ज्ञानवापी या उस जैसे अनेक धर्म स्थल ऐसे स्थल हैं जिनको  मुग़लकाल में   मस्जिद में तब्दील कर दिया गया | ज्ञानवापी में मंदिर के प्रमाण मिलने की खबर के बाद सोशल मीडिया पर अनेक प्राचीन जैन मंदिरों के बारे में जानकारी आ रही है जिनका विध्वंस कर मस्जिद बनाई गईं  | बेहतर हो मुस्लिम समाज ऐसे तमाम विवादित स्थलों की विस्तृत जाँच पुरातत्व विशेषज्ञों से करवाने की पेशकश करे | और  ये प्रमाणित होने पर कि उनका निर्माण हिन्दू , जैन या किसी अन्य गैर मुस्लिम धर्म स्थल को तोड़कर  किया  गया था तब उन स्थलों को मूल धर्मावलम्बियों को सहर्ष सौंपकर उनकी प्रशंसा अर्जित  करना चाहिए |  यदि ओवैसी जैसे नेता राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए भड़काऊ बयान देने से बाज नहीं आयेंगे तो मुस्लिम समाज के उस तबके का ही नुकसान होगा जो  विवादों से दूर रहकर  अपनी रोजी  – रोटी की चिंता में लगा रहता है | इसका उदाहरण वाराणसी के माहौल से मिलता है जहां किसी भी प्रकार के तनाव का संकेत नहीं है | वैसे  आम मुसलमान समझता जा रहा है कि वोटों के ठेकेदार उसकी आड़ में अपनी रोटियां सेंकते रहते हैं |   अनेक मुल्ला - मौलवी भी ये कहते  हुए सुने जा रहे हैं कि जिन मस्जिदों में मंदिर होने के प्रमाण मिल रहे हैं उनको हिन्दू समाज को सौंप देना चाहिए | ज्ञानवापी प्रकरण में जो प्राम्भिक सबूत मिले हैं यदि उनसे  मंदिर होने की बात सच साबित हो जाती है  तब मुस्लिम समुदाय को जीत  - हार की सोच से ऊपर उठकर समझदारी का परिचय देना चाहिए | आज के दौर में मुस्लिम  समाज का आदर्श औरंगजेब के अत्याचारों की बजाय प्रोफेसर अब्दुल कलाम जैसे होना चाहिए जो केवल इसलिए नहीं कि अल्पसंख्यक थे अपितु अपनी सकारात्मक राष्ट्रीय सोच की वजह से गैर राजनीतिक होते हुए भी देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर प्रतिष्ठित हुए और वह भी उस पार्टी के प्रधानमंत्री रहते हुए जिसको मुस्लिम विरोधी प्रचारित किया जाता रहा है | उस लिहाज से ज्ञानवापी देश में मुस्लिम समाज के लिए सोच बदलने का एक स्वर्णिम अवसर है जिसका लाभ उसे उठाना चाहिए | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment