वाराणसी के ऐतिहासिक विश्वनाथ मदिर परिसर में ही बनी ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद में गत दिवस बड़ा मोड़ आ गया जब उसको हिन्दू मन्दिर तोड़कर बनाये जाने संबंधी दावे की जाँच हेतु निचली अदालत ने जो कमीशन नियुक्त किया था उसने सर्वेक्षण के दौरान मस्जिद के वजूखाने मे विशाल शिवलिंग देखे जाने की बात करते हुए अदालत को सूचना दी जिसने तत्काल उस स्थल को सील करने का निर्देश दिया | कमीशन आज अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपेगा | दूसरी तरफ मस्जिद की इंतजामिया कमेटी ने निचली अदालत द्वारा कमीशन के जरिये जांच करवाए जाने को अवैध निरुपित करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई | ज्ञानवापी मस्जिद के सामने नंदी की जो मूर्ति है उसका मुंह भी वजूखाने की तरफ होने से हिन्दू पक्ष लम्बे समय से ये दावा करता आ रहा है कि मस्जिद के भीतर शिवलिंग है और औरंगजेब के शासनकाल में विश्वनाथ मंदिर पर जबरन कब्जा करते हुए उक्त मस्जिद तान दी गयी थी | अदालत में ये दावा किये हुए भी तीन दशक से ज्यादा व्यतीत हो चुका है | मुस्लिम पक्ष अपनी सफाई में कह रहा है कि 1991 में संसद द्वारा पारित कानून के बाद अब किसी धार्मिक स्थल का स्वरूप बदला नहीं जा सकेगा | असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसी आधार पर निचली अदालत की कार्रवाई को असंवैधानिक बताया और ये कहने का दुस्साहस भी किया कि ज्ञानवापी थी , है और रहेगी | यद्यपि शिवलिंग की जो आकृति मिली उसकी प्रमाणिकता पुरातत्व विशेषज्ञ ही साबित कर सकेंगे जिसे दूसरा पक्ष फुहारे का नाम दे रहा है | लेकिन शिवलिंग के अलावा मस्जिद के गुम्बद और दीवारों पर उकेरी गयी जो आकृतियाँ कमीशन के संज्ञान में आई हैं वे हिन्दू संस्कृत्ति से मेल खाती बताई जाती हैं | अदालत क्या फैसला देगी और 1991 का कानून उसमें कितने आड़े आएगा ये तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन मुस्लिम पक्ष इस बात को तो नहीं झुठला सकता कि वह समूचा इलाका विश्वनाथ मंदिर का है जहाँ इस्लामिक संस्कृति का कोई ऐतिहासिक प्रमाण ज्ञानवापी मस्जिद बनाये जाने के पूर्व नहीं मिलता | मस्जिद की तरफ मुंह किये बैठी नंदी की प्रस्तर प्रतिमा भी अपने आप में काफी कुछ कह जाती है | गत दिवस ज्योंही शिवलिंग मिलने की बात सामने आई त्योंही जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तंज कसा कि इनको हर जगह भगवान मिल जाते हैं | लेकिन क्या महबूबा और मुस्लिम धर्मगुरुओं में से किसी के पास इस सवाल का उत्तर है कि मुग़ल शासकों द्वारा हिन्दुओं के तीन बड़े आराध्यों श्री राम , श्रीकृष्ण और महादेव से जुड़े पवित्र स्थलों पर मस्जिद बनाने के पीछे कौन सी सद्भावना थी ? ज़ाहिर तौर पर ये मुगलिया सल्तनत की धर्मान्धता और हिन्दुओं को आतंकित करने के मकसद से किया गया पाप था जिसका प्रायश्चियत करने की बजाय सीनाजोरी की जा रही है | इस्लाम के जन्म के हजारों वर्ष पहले से अयोध्या , मथुरा और काशी सनातनी हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थान रहे हैं | मुगल शासकों द्वारा वहां जाकर मस्जिदें बनाने का उद्देश्य हिन्दुओं को आतंकित करना ही था | आजादी के बाद भारत ने धर्म निरपेक्षता अपना ली और सभी धर्मों को अपनी उपासना पद्धति का इस शर्त के साथ पालन करने की स्वतंत्रता दी जिससे दूसरों के धर्म का अनादर न हो | प्रश्न ये है कि हिन्दुओं ने तो मुसलमानों की जिद पूरी करते हुए उनको एक अलग मुल्क दे दिया तो क्या मुसलमान हिन्दुओं की आस्था के सबसे बड़े केन्द्रों में मुगल शासकों और उनके सिपहसालारों द्वारा तलवार की नोंक पर खड़ी की गईं मस्जिदें हटाकर सद्भावना अर्जित करने की सौजन्यता नहीं दिखा सकते ताकि गंगा – जमुनी संस्कृति को बल मिले | लेकिन मुस्लिम समुदाय के नेता और विशेष तौर पर मुल्ला – मौलवी अपना उल्लू सीधा करने के लिए जैसी ऐंठ दिखाते हैं वही दोनों समुदायों के बीच अविश्वास की सबसे बड़ी वजह है | सामान्य बातचीत में तो गुलाम नबी आजाद जैसे तमाम लोग ये बात स्वीकार करते हैं कि उनके पूर्वज हिन्दू थे परन्तु इस तरह के विवाद उठते ही उन्हें बाबर और औरंगजेब में अपना अतीत नजर आता है | महबूबा मुफ्ती ने कल जो बयान दिया उसमें ये भी कहा गया कि ज्यादातर विदेशी पर्यटक मुग़लों द्वारा बनाये गए भवनों को देखने आते हैं | शायद उनका संकेत ताजमहल , लालकिला और फतेहपुर सीकरी जैसी इमारतों को लेकर था किन्तु उनको शायद ये पता नहीं होगा कि विदेशी पर्यटकों को बाबरी ढांचे , ज्ञानवापी तथा मथुरा में कृष्ण भूमि से सटी शाही मस्जिद देखने में कोई रूचि कभी नहीं रही | सही बात ये है कि आजादी के बाद मुसलमान कांग्रेस के चंगुल में फँसे रहे और उसके बाद में लालू और मुलायम जैसे नेताओं ने उनका राजनीतिक शोषण किया | इसके पहले कि वे कुछ संभल पाते ओवैसी सरीखे चालाक उनको बरगलाने लग गये | लेकिन इस समाज का जो शिक्षित वर्ग है वह भी जब कट्टरपंथियों के बहकावे में मुगलकालीन सोच का शिकार होकर अपने को इस मुल्क का मालिक समझने लगता है तब हंसी आती है | ज्ञानवापी के साथ ही मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि की दीवार से सटाकर बनाई गई मस्जिद भी इस्लामिक आतंक का जीता जगता प्रमाण हैं | बाबरी और ज्ञानवापी को लेकर छाती पीटने वाले ओवैसी उस वक़्त को याद क्यों नहीं करते जब देश के बाहर से आये लुटेरों ने हिंसा के बल पर हिन्दुओं के अनगिनत धार्मिक स्थल तोड़ दिए और अयोध्या , मथुरा तथा काशी में जान - बूझकर ऐसे स्थलों पर मस्जिदें खडी कीं जिनसे हिन्दू आहत होने के साथ ही आतंकित भी हों | ये देखते हुए आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में मुगलकालीन बर्बरता के निशानों को मिटाना राष्ट्रहित में होगा | याद रहे भावी पीढ़ियों को भारत के प्राचीन गौरव से परिचित कराए बिना विश्व गुरु और महाशक्ति बनने का सपना साकार नहीं हो सकेगा |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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