Friday 20 May 2022

जाखड़ और भाजपा दोनों को एक दूसरे की जरूरत थी



पंजाब कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पार्टी छोड़ने के बाद गत दिवस भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर अनिश्चितता को विराम दे दिया | उनके पिता स्व. बलराम जाखड़ कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में रहे जिन्होंने लोकसभा अध्यक्ष और केंद्रीय कृषि मंत्री के अलावा म.प्र के राज्यपाल पद को भी सुशोभित किया था | इसी कारण जब सुनील ने कांग्रेस छोड़ी तब पार्टी से 50 साल के रिश्ते का जिक्र करना नहीं भूले | उनकी नाराजगी तो उसी समय शुरू हो गयी थी जब उनकी जगह नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस का चेहरा बनाने की कोशिश की गई  | लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बन पाने के कारण वे जो बचकानी हरकतें करते रहे उनका दुष्परिणाम कांग्रेस के  सत्ता गंवाने के तौर पर सामने आ गया | दरअसल श्री जाखड़ को उम्मीद रही होगी कि कांग्रेस वरिष्टता के मद्देनजर उन्हें सत्ता और संगठन में कुछ  ज्यादा महत्व देगी | कैप्टन अमरिंदर सिंह के हटने के बाद कांग्रेस विधायक दल का बहुमत भी उन्हीं के साथ था किन्तु श्रीमती अंबिका सोनी ने ये कहते हुए उनका रास्ता रोक दिया कि पंजाब में पगड़ी धारी मुख्यमंत्री ही ठीक रहेगा | बाद में टिकिट वितरण के समय भी उनकी बातों को अनसुना किया जाता रहा | इसे लेकर श्री जाखड़ ने बयानों के जरिये अपनी नाराजगी भी जताई किन्तु पार्टी हाईकमान ने अपेक्षित भाव नहीं दिया | यदि कांग्रेस वहाँ दोबारा सरकार बना ले जाती  तब शायद वे ऐसा  कदम न उठाते | लेकिन चुनाव नतीजों के बाद उनको ये लगने लगा कि इस राज्य में पार्टी की वापसी बहुत कठिन है | आम आदमी पार्टी में जाने का निर्णय भी वे ले सकते थे किन्तु उसमें भी उनको अपने लिए संभावनाएं नहीं दिखीं | रही बात  अकाली दल की तो वहाँ बादल परिवार के अलावा अन्य किसी के लिए ख़ास गुंजाईश नहीं होने से अंततः श्री जाखड़ ने भाजपा का दामन थामा जो इन दिनों दूसरी पार्टियों विशेष रूप से कांग्रेस से आये हुए लोगों के लिए लाल कालीन बिछाने में तनिक भी संकोच नहीं करती | और सबसे बड़ी बात ये है कि अकाली दल से रिश्ता टूट जाने के बाद से भाजपा को पंजाब में ऐसे किसी व्यक्तित्व की तलाश थी जिसकी पकड़ हिन्दुओं के अलावा सिखों में भी हो | लम्बे समय तक अकाली दल के साथ रहने से भाजपा पंजाब में न तो  अपना संगठन खड़ा कर सकी  और और न ही स्वतंत्र जनाधार | हालाँकि इस राज्य में हिन्दुओं की संख्या तकरीबन 39 प्रतिशत है लेकिन राजनीति पर सिखों का ही  प्रभुत्व रहा | अकाली दल के साथ रहने से भाजपा उसी के आसरे रही परन्तु  कृषि कानूनों को लेकर दोनों के बीच शुरू हुआ टकराव बाद में  अलगाव के तौर पर सामने आया | हाल ही में हुए चुनाव में अकाली दल को जो नुकसान हुआ उसमें भाजपा सामर्थक हिन्दुओं का उससे दूर चला जाना भी एक कारण रहा | यद्यपि कैप्टन अमरिंदर से समझौते   के बावजूद  भाजपा खाली हाथ रही लेकिन बादल परिवार सहित कैप्टन और नवजोत सिद्धू की हार के बाद पंजाब में  भविष्य नजर आने के बावजूद उसके पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो हिन्दुओं के साथ सिखों में भी सम्पर्क रखता हो |  इसीलिये जब श्री  जाखड़ ने कांग्रेस छोड़ी तो भाजपा ने उनको लपकने में न संकोच किया और  न ही देरी |  देखने वाली बात ये होगी कि भाजपा उन्हें कितना महत्व देती है क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी इस राज्य में बड़ी ताकत बनकर उतरेगी | विधानसभा चुनाव में उसे जो सफलता मिली उस कारण उसका हौसला काफी बुलंद है | कांग्रेस पूरी तरह अनाथ पड़ी  है वहीं बादल परिवार का सफाया होने से अकाली दल अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है | भाजपा इस शून्य को भरने की फ़िराक में है और इसी के चलते उसने श्री जाखड़ को सहर्ष शामिल कर लिया | उनके चेहरे के बल पर भाजपा राज्य के लगभग 40 फीसदी हिन्दुओं के अलावा उन सिखों को भी लुभाने का प्रयास करेगी जो अकाली दल और कांग्रेस के सफाए के बाद नया ठिकाना तलाश रहे हैं | चूंकि पंजाब के भीतर आम आदमी पार्टी में नये विशेष रूप से अनुभवी नेताओं  के लिए ज्यादा जगह  नहीं है इसलिए श्री जाखड़  के लिए भाजपा ही बेहतर विकल्प थी जो खुद भी किसी ऐसे नेता की जरूरत महसूस कर रही थी जिसे पंजाब की जमीनी सच्चाइयां पता हों | कैप्टन अमरिंदर सिंह चूंकि वयोवृद्ध हो चुके हैं इसलिए वे भाजपा के लिए उपयोगी नहीं रहे जबकि श्री जाखड़ की उम्र उन्हें सक्रिय रहने का अवसर देती है | कुल मिलाकर देखें तो दोनों को एक दूसरे की जरूरत थी | अगले  लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा जिस तरह से तैयारियां करने में जुटी है उस दृष्टि से श्री जाखड़ को  अपने साथ लाकर उसने पंजाब में स्वयं को आम आदमी पार्टी के मुकाबले खडा करने की रणनीति बनाई है | उसको लग रहा है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे श्री जाखड़ की मदद से वह राज्य के उन क्षेत्रों तक पकड़ और पहुँच बना लेगी जहाँ उसका जनाधार कमजोर है | पंजाब में कांग्रेस के भीतर जिस तरह की निराशा है उसे देखते हुए श्री जाखड़ की देखादेखी कुछ और कांग्रेसी भी जल्द भाजपाई बन जाएँ तो आश्चर्य नहीं होगा | बीते कुछ सालों  में  भाजपा ने बाहर  से आये नेताओं को जमक्रर महिमामंडित किया | हेमंता बिस्वा सरमा , ज्योतिरादित्य सिंधिया और मानक साहा कांग्रेस से भाजपा में आकर जिस तरह सत्ता का सुख भोग रहे हैं उसने भी श्री जाखड़ को इस पार्टी में आने प्रोत्साहित किया | जहाँ तक कांग्रेस का सवाल है तो उसका हाईकमान बीते कुछ वर्षों से  से बेहद लापरवाह हो चला है जिसकी वजह से पार्टी छोड़ने वालों की संख्या बढ़ती ही  जा रही है  | गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल के पार्टी से बाहर आने  के पीछे भी शीर्ष नेताओं की  उपेक्षवृत्ति ही वजह बन गयी |

-रवीन्द्र वाजपेयी

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