Thursday 26 May 2022

आठ साल : सबसे बड़ी बात देश का आत्मविश्वास बढ़ा है



 प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी के साथ जुड़े दो संयोग ऐसे हैं जिनके कारण अनेक राजनेताओं को उनसे ईर्ष्या होती होगी | भाजपा संगठन का काम करने वाले  इस प्रचारक को अचानक गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जब बिठाया गया तब तक वे कभी विधानसभा गये ही नहीं थे | चुनावी राजनीति से तो संगठन का काम करते हुए उनका पाला पड़ता रहा किन्तु राज्य की सत्ता सँभालने के लिए वे  अनुभवहीन थे | लेकिन 12 वर्ष तक गुजरात की सत्ता में रहते हुए उन्होंने जो कीर्तिमान स्थापित किये उनकी  वजह से ही वे राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने में सफल होते गए | फिर आया दूसरा संयोग  जब वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने जो इसके पूर्व  संसद  के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे |  आज से ठीक आठ साल पहले उन्होंने  सत्ता संभाली थी | तब  किसी ने ये नहीं सोचा था कि यह व्यक्ति  सफलता के नये  शिखर खड़े कर देगा  | उनके पूर्ववर्ती डा. मनमोहन सिंह  ईमानदार , सुयोग्य और अनुभवी नेता थे लेकिन उनके पास निर्णय लेने की आजादी नहीं थी | जिस वजह से घपलों – घोटालों की मानो बाढ़ सी आ गई | ऐसे में श्री मोदी के सामने पहली प्राथमिकता  निर्णय क्षमता साबित करने के साथ ही सरकार की छवि को बेदाग बनाना था | और उस दृष्टि से 15 अगस्त 2014 को लाल किले  से पहले संबोधन में ही उन्होंने ये संकेत  दे दिया कि वे  बड़े फैसले करने के साथ ही उन्हें लागू करवाने में विश्वास करते हैं |  आठ साल का ये सफर आसान नहीं  रहा | 2014 की प्रचंड विजय के बाद ही भाजपा को दिल्ली और बिहार में जिस तरह पराजय झेलनी पड़ी उससे कहा जाने लगा कि वह जीत बुलबुला थी | लेकिन गुजरात दंगों को लेकर वैश्विक स्तर पर खलनायक की छवि से जूझ चुका ये शख्स अपनी पकड़ कायम रखने में सफल साबित हो गया जब 2017 में उ.प्र  विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इकतरफा जीत हासिल की और वह भी नोटबंदी लागू होने के बाद जिसने पूरे देश की अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया था | राजनीतिक दृष्टि से श्री मोदी का कार्यकाल सफलताओं और असफलताओं के बीच झूलता रहा  है | पूर्वोत्तर में असम , मणिपुर और त्रिपुरा में वे भाजपा की सरकार बनवाने में कामयाब रहे लेकिन बंगाल में  ममता बैनर्जी का वर्चस्व तोड़ने में विफल रहे | इसी तरह उड़ीसा में नवीन पटनायक के जादू की काट भी नहीं तलाश सके  | तमिलनाडु , केरल , आंध्र में भाजपा को लोग जानने तो लगे लेकिन अभी भी मंजिल उसके लिए दूर बनी हुई है | महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में अकाली दल से अलगाव प्रधानमंत्री की राजनीतिक विफलता कही जाती है | वहीं बिहार में नीतीश कुमार से  गठबंधन के बावजूद उन पर  नकेल कसने  में वे  कामयाब नहीं हैं |  लेकिन केवल  राजनीतिक सफलता  उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का मूल्यांकन करने का आधार नहीं  बन सकती | दरअसल बीते आठ साल में उनकी सरकार ने जो साहसिक फैसले किये उन्होंने देश को ऐसी दिशा में मोड़ दिया है जहां से उसमें विश्वशक्ति बनने की ललक पैदा हुई है | इस अवधि  में भारत ने आन्तरिक और वैश्विक दोनों ही क्षेत्रों में इस विश्वास को मजबूत किया है कि हम प्रतिस्पर्धा में जीतने के हौसले के साथ उतरे हैं | आर्थिक  विकास के साथ ही देश की सामरिक शक्ति में वृद्धि के कारण चीन जैसी महाशक्ति के साथ आँख मिलाकर बात करने का आत्मबल हम अर्जित कर सके | वहीं धारा 370  का विलोपन पूरी दुनिया को ये सन्देश देने में सफल रहा कि हम वैश्विक जनमत को अपनी मर्जी से मोड़ने में सक्षम हैं | यही वजह है कि अमेरिका , ब्रिटेन , फ़्रांस , जर्मनी , रूस , ऑस्ट्रेलिया  भारत से  सम्बन्ध रखने लालायित हैं |  सऊदी अरब और सं . अरब अमीरात के साथ हमारे रिश्ते मधुरता के चरम पर हैं | विश्व के सभी महत्वपूर्ण  आर्थिक और कूटनीतिक मंचों पर भारत की सम्मानजनक मौजूदगी काफी कुछ कह रही है | वस्तुतः  श्री मोदी  वैश्विक नेता के तौर पर स्थापित  हुए हैं  | विदेश यात्राओं के दौरान वे भारतीय समुदाय के बीच वे जिस तरह का माहौल बनाते हैं उससे देश की प्रतिष्ठा बढ़ी है | कोरोना काल के दौरान जब पूरी दुनिया हलाकान हो उठी थी तब भारत ने जिस तरह महामारी का सामना किया उसका लोहा पूरी दुनिया ने माना | ऐसा नहीं है कि गलतियां उस दौरान नहीं हुईं किन्तु उनको सुधारने की तत्परता ने स्थिति को नियन्त्रण से बाहर नहीं होने से दिया | 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान्न और 135 करोड़ की विशाल आबादी का टीकाकरण पूरे विश्व में चर्चित और प्रशंसित है | हालांकि इसके बाद बढ़ी महंगाई प्रधानमंत्री  की सफलताओं पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। लेकिन उनके प्रति जनता के  मन में जो विश्वास है उसी के चलते 'मोदी है तो मुमकिन है ' केवल चुनावी नारा न रहकर जनता के मन में बैठ गई भावना है | बीते आठ  वर्ष केवल इसलिए काबिले गौर नहीं हैं क्योंकि श्री मोदी ऐसे पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं जो इतने लम्बे समय से पद पर हैं अपितु इसलिए कि उन्होंने सत्ता चलाने की संस्कृति में बड़े बदलाव किये हैं | कार्यकुशल लोगों को मंत्रीमंडल में स्थान देना इसका प्रमाण है | खुद कठोर परिश्रम कर वे मंत्रीमंडलीय साथियों के साथ ही नौकरशाहों को भी मुस्तैद रहने प्रेरित करते हैं | निर्णय लेने के बाद उसे लागू  करने की प्रतिबद्धता के बावजूद समय की नजाकत देखते हुए कदम पीछे खींचने में संकोच न करने की उनकी नीति विशेष उल्लेखनीय रही है | कृषि कानून इसका ताजा उदाहरण हैं | पूरी दुनिया आज इस बात को मान बैठी है कि भारत एक महाशक्ति के तौर पर तेजी से उभर रहा है तो इसका काफी श्रेय प्रधानमंत्री को जाता है | वरना जिस अमेरिका ने एक ज़माने में उन्हें वीजा देने से इंकार कर दिया था उसके राष्ट्रपति अब  अनुरोध की मुद्रा में दिखाई देते हैं | यूक्रेन संकट के दौरान राष्ट्रीय हितों के लिहाज से तटस्थता की नीति अपनाकर श्री मोदी ने जिस साहस का परिचय दिया वह मामूली बात नहीं है | लेकिन ये मान लेना सच्चाई से आँखें चुराना होगा कि  रामराज आ ही गया है | आज भी देश में गरीबी , बेरोजगारी , बेघरबारी है | शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र की कमियां  विकसित होने के दावे पर सवाल खड़े करने का आधार है | ये धारणा भी बहुत तेजी से फैली है कि मोदी सरकार सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने पर आमादा है और देश चंद पूंजीपतियों के शिकंजे में फंसता जा रहा है | लेकिन ये भी सही है कि जनधन खातों में सीधे राशि जमा करने के साथ ही मुफ्त खाद्यान्न , प्रधानमन्त्री आवास योजना , उज्ज्वला और  ग्रमीण सड़कों के साथ ही राजमार्गों का विकास जैसे कार्यों ने आशाओं का संचार भी किया है | वहीं शौचालय और राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान जैसे कार्यक्रमों ने जीवन शैली में सुधार की प्रवृत्ति विकसित की है | विदेश चले गए हजारों नौजवान बीते कुछ सालों में यदि स्वदेश लौटे हैं तो उसमें इस विश्वास की बड़ी भूमिका है कि मेरा देश बदल रहा है | आठ साल किसी देश के जीवन में बहुत नहीं माने जाते लेकिन किसी राजनेता को कसौटी पर कसने के लिए जरूर पर्याप्त हैं | और उस आधार पर श्री मोदी उन  मानदंडों पर सक्षम और सफल साबित हुए हैं जो किसी चुने हुए सत्ताधारी नेता से अपेक्षित हैं | हालाँकि अभी मंजिल काफ़ी दूर है लेकिन परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ये दावा कर रहे हैं कि 2024 तक देश की सड़कें अमेरिका की टक्कर की हो जायेंगी तो वह उस आत्मविश्वास का प्रमाण है जो इन सालों में अर्जित किया गया है | ऐसा नहीं है कि 2014  के पहले देश चल नहीं रहा था लेकिन सभी मोर्चों पर एक साथ तेज गति से काम करने की हिम्मत पहले नजर नहीं आई | और इसीलिए श्री मोदी सबसे अलग कहे जा सकते हैं | वैचारिक स्तर पर भी अपनी पार्टी की नीतियों पर  जिस दृढ़ता के साथ उन्होंने अमल किया उससे  प्रमाणित हो गया कि प्रधानमंत्री पद उनके लिए साध्य न होकर साधन है |  उनके दूसरे कार्यकाल में अभी दो साल शेष हैं | लेकिन उसके पूर्व अनेक  चुनौतियों से उनको जूझना होगा |  बावजूद इसके प्रधानमंत्री अपनी धुन में चलते रहते हैं और इसीलिये  आप चाहें प्रशंसा करें या आलोचना किन्तु उनकी उपेक्षा नहीं कर सकते |

- रवीन्द्र वाजपेयी

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