Monday 30 May 2022

जमीयत उलेमा ए हिंद : जुबान नर्म किन्तु बातें गर्म



उ.प्र. के सहारनपुर जिले में स्थित मुस्लिम धर्मावलम्बियों का केंद्र देवबंद बीते दो – तीन दिनों से खबरों में बना हुआ है  | इसका कारण वहां आयोजित जमीयत उलेमा ए हिंद का जलसा रहा जिसमें कई  हजार उलेमा जमा हुए और तमाम धार्मिक – राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा के उपरांत उसके निष्कर्ष जाहिर किये गए | जलसा ऐसे समय हुआ जब  मुस्लिम समाज अपने धार्मिक और सामजिक रीति - रिवाजों के साथ ही प्राचीन धर्मस्थलों के स्वरूप को बदले जाने की आशंका से ग्रसित है | जलसे में जमीयत के एक बड़े नेता ने इस बारे  में साफ तौर पर कहा भी कि उनका विवाद हिन्दुओं से नहीं हुकूमत से है | मुस्लिमों को ये सन्देश भी दिया गया कि वे उत्तेजित न हों अन्यथा विरोधियों का मकसद पूरा हो जाएगा | साथ ही मुल्क की बेहतरी के लिए काम करने की बातें भी की गईं | हालाँकि शरीयत , ज्ञानवापी  और हिजाब जैसे मुद्दों पर खुलकर विरोध सामने आया परंतु वक्ताओं के स्वर में परम्परागत आक्रामकता नहीं थी और गर्म बातें भी नर्म भाषा में कही गईं | इससे  संकेत मिला कि उलेमा भी भांप गए हैं कि तुष्टीकरण वाला दौर चूंकि नहीं रहा इसलिए तैश में आकर बात करने से नुकसान हो जाएगा | ऐसा नहीं है कि मीठी – मीठी बातें ही हुईं किन्तु जमीयत के बड़े नेताओं ने सरकार की आलोचना भी इस तरह की जिससे उनकी मासूमियत झलके | बावजूद इसके उलेमाओं के जरिये देश भर में फैले मुसलमानों को ये पैगाम दे दिया गया कि धार्मिक रवायतों और मस्जिदों  के बारे में समझौता नहीं किया जाएगा | जो प्रस्ताव पारित किये गये उनमें इस बात को साफ तौर पर कह दिया गया है कि समान नागरिक संहिता किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जायेगी क्योंकि ये इस्लाम के मौलिक सिद्धांतों के विरुद्ध है | इसी तरह ज्ञानवापी विवाद को लेकर हो रही जनचर्चाओं और बहस पर ऐतराज जताते हुए ये तंज कसने में भी कोई संकोच नहीं किया गया कि गड़े  मुर्दे उखाड़ने से कुछ हसिल नहीं होने वाला | और भी तमाम बातें हुईं जो संचार माध्यमों के जरिये सभी के संज्ञान में आ चुकी हैं | उस दृष्टि से  जलसे का समय बेहद महत्वपूर्ण है | तीन तलाक और हिजाब पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद से मुस्लिम समुदाय में इस बात की चिंता है कि मोदी सरकार  द्वारा समान नागरिक संहिता लागू किये जाने  की कोशिश के विरोध में  विपक्षी दल पहले जैसी मजबूती नहीं दिखायेंगे  | इस सोच के पीछे की वजह है कांग्रेस का हिन्दू मतों की ओर बढता झुकाव | बीते कुछ सालों से जिस तरह राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा हिन्दू धार्मिक स्थलों में जाकर पूजा – अर्चना करने लगे हैं उससे मुस्लिम समुदाय  असमंजस में है | भले ही सपा , राजद और तृणमूल कांग्रेस सरीखे क्षेत्रीय दल  अभी भी पूरी तरह मुसलमानों की मिजाजपुर्सी करते  हैं परन्तु वे भी खुद को हिन्दू साबित करने में पीछे नहीं  रहते | अखिलेश यादव का अयोध्या जाना , ममता बैनर्जी का मंच पर कालीपाठ करना और लालू परिवार में  छठ पूजा का प्रदर्शन उसी का हिस्सा है | ऐसे में मुसलमानों को फ़िक्र इस बात की है कि  कोई भी राष्ट्रीय पार्टी नहीं जो उनके साथ चट्टान की तरह खड़े होने का साहस दिखाए | ज्ञानवापी विवाद पर जिस तरह गैर भाजपा दल मुस्लिम पक्ष के समर्थन में आने से बच रहे हैं उसका असर  जलसे में देखने मिला | इसीलिये मुसलमानों को उग्र होने से बचने की सलाह दी गई | उलेमाओं को भी एक बात समझ आ चुकी है कि उनका समाज जितना आक्रामक होता है  उतनी ही तेजी से हिन्दू ध्रुवीकरण हो जाता है | इसका ताजा  उदाहरण उ.प्र विधानसभा चुनाव में देखने मिला जहाँ  पश्चिमी  उ.प्र के हिन्दू बहुल इलाकों  में सपा द्वारा उतारे गए अनेक मुस्लिम उम्मीदवारों को लोकदल के समर्थन  के बावजूद जाट मतदाताओं ने नकार दिया |  उलेमाओं की परेशानी  का एक कारण  असदुद्दीन ओवैसी भी हैं जो हैदराबाद की सीमा से बाहर आकर उत्तर भारत के मुसलमानों की अगुआई करने की  कोशिश में लगे हैं | उनकी राजनीति तीखे बयानों से भरी होने से मुस्लिम  विरोधी ध्रुवीकरण का कारण बन रही है | उलेमाओं को लगने लगा है कि मौजूदा माहौल में मुस्लिम समुदाय मैदान में उतरकर केंद्र सरकार का जितना विरोध करता है उतनी ही तेज प्रतिक्रया उसके विरुद्ध होती है | सीईएए के विरुद्ध दिल्ली के शाहीन बाग़ में दिए गए धरने से भी मुस्लिमों के बारे में राष्ट्रव्यापी नकारात्मक छवि बनी | उलेमा  इस बात से भी परेशान हैं कि कुछ संगठन बिना बताये कुछ भी कर बैठते हैं जिसका खामियाजा अंततः पूरे समुदाय को भोगना पड़ता है | मसलन हिजाब का विवाद जिस तरह कर्नाटक मेें उठाया गया उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने भी उसे इस्लाम का हिस्सा मानने से इंकार  कर दिया | ये सब देखते हुए जलसे में सीधे टकराव को  टालकर  भी अपनी बात पर अड़े रहने की नीति अपनाते हुए समान नागरिक संहिता के विरोध में जिस तरह की प्रातिक्रिया आई वह काफी कुछ कहती है | ऐसा लगता है उलेमा ज्ञानवापी पर अदालत के फैसले का इन्तजार कर रहे है | कुल मिलाकर यह जलसा जिस तनावपूर्ण माहौल में शुरू हुआ था उतना तैश वहाँ नजर नहीं आया | लेकिन जमीयत के वरिष्ट नेताओं द्वारा जिस दबी जुबान से अपनी मांगों पर अडिग रहने और समान नागरिक संहिता  के मुद्दे पर अपने रुख में ज़रा भी ढील न देने के जो संकेत दिए उससे यही लगता है कि मुस्लिम  समुदाय अपनी कार्यप्रणाली  बदलने का मन बना चुका है | वह क्या और कैसी होगी ये शायद  ज्ञानवापी मामले में अदालत के फैसले के बाद स्पष्ट हो जाएगा | वैसे जलसे में आये उलेमा मानसिक दबाव  में  भी दिखे  क्योंकि मौजूदा माहौल में आम मुसलमान राजनीतिक नेताओं के साथ ही अपने उलेमाओं से भी नाराज है जो धर्म के नाम पर उसे उकसाकर दूर खड़े हो जाते हैं और बुलडोजर उसके आशियाने पर चलता है |


- रवीन्द्र वाजपेयी



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