Monday 16 May 2022

मोदी की नेपाल यात्रा : सही समय पर सही कदम



प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं को सैर – सपाटा और धन की बर्बादी बताने वाले अब उतने मुखर नहीं रहे क्योंकि विरोधियों को भी  ये एहसास होने लगा है कि इन यात्राओं से वैश्विक मंचों पर भारत के पक्ष में माहौल  निर्मित हुआ है | कूटनीतिक मोर्चे पर न सिर्फ पाकिस्तान अपितु चीन की तुलना में  भी श्री  मोदी ज्यादा असरकारक साबित हुए हैं | हाल ही में उनकी डेनमार्क , जर्मनी और फ्रांस की यात्रा बहुत ही सफल रही | रूस - यूक्रेन युद्ध के बीच  यूरोपीय देशों में जाकर भारत के कूटनीतिक , आर्थिक और सामरिक हितों के लिए प्रधानमंत्री के प्रयासों की सर्वत्र सराहना हुई | उसी क्रम में आज वे नेपाल की यात्रा पर पहुंचे  | हालांकि उनका ये दौरा कुछ घन्टों का ही है  किन्तु बुद्ध पूर्णिमा के दिन नेपाल स्थित उनकी जन्मस्थली लुंबिनी जाने का श्री मोदी का निर्णय हमेशा की तरह उनकी  विदेश यात्रा को सार्थकता प्रदान करने में  सहायक होगा | वहां के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा उनकी अगवानी हेतु एक दिन पहले ही लुंबिनी आ चुके थे | गौतम बुद्ध की जन्मस्थली में बुद्ध पूर्णिमा पर उनके जाने से न सिर्फ भारत और नेपाल अपितु दुनिया भर के बौद्ध देशों में जो सकारात्मक सन्देश जाएगा वह मोजूदा अंतर्राष्ट्रीय हालातों में बेहद जरूरी एवं लाभदायक माना जा रहा है | इस बारे में ये उल्लेखनीय है कि श्री देउबा  के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के सम्बन्ध काफी सुधरे हैं | अन्यथा पिछले प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली तो पूरी तरह चीन की गोद में बैठकर  भारत के साथ सीमा विवाद के नाम पर  युद्ध तक के लिए आमादा हो गये थे | हालाँकि मोदी सरकार ने भी उस शरारत पर बेहद कड़ा रुख अपनाते हुए नेपाल की आपूर्ति रोकने जैसा कदम उठाते हुए कूटनीतिक दृढ़ता का परिचय दिया | संयोगवश ओली सरकार का अति चीन प्रेम उन्हें ले डूबा और श्री देउबा प्रधानमंत्री बनाये गए जिन्होंने  दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए  भारत यात्रा भी की जिसमें काशी विश्वनाथ मंदिर का दर्शन भी शामिल था | अब बुद्ध पूर्णिमा के दिन श्री मोदी के लुंबिनी पहुंचने से जो सन्देश निकलने वाला है वह भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा समूचे दक्षिण पूर्व एशिया में जाए  बिना नहीं रहेगा | लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर श्रीलंका पर होगा जो इन दिनों अभूतपूर्व संकट में घिरा है और उसका कारण भी चीन को ही माना जा रहा है | यहाँ ये जान लेना भी जरूरी है कि नेपाल भी कमोबेश श्रीलंका जैसी ही स्थिति में है | उसने भी चीन से अनाप – शनाप कर्ज ले रखा है और देर – सवेर वह आर्थिक  दिवालियेपन की ओर बढ़ रहा है | गैर जरूरी चीजों का आयात रोककर उसने   संकट की स्वीकारोक्ति भी कर दी | ऐसे में नेपाल की विकास परियोजनाओं में काफी आर्थिक सहायता करने वाले भारत के लिए दोहरी चिंता का कारण उत्पन्न हो गया है | पहला तो ये कि आर्थिक आपात्काल की स्थिति में नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता पैदा होना अवश्यम्भावी है जिसका परिणाम दोबारा माओवादियों का सत्ता में लौटना हो सकता है जो हमारे हितों के विरुद्ध होगा क्योंकि उस स्थिति में चीन का वर्चस्व इस पहाड़ी देश पर और बढ़ जाएगा जिसकी गिद्ध दृष्टि नेपाल पर उसी दिन से लगी  हुई है जबसे उसने तिब्बत पर बलात कब्जा किया था | और दूसरा ये कि यदि नेपाल में भी श्रीलंका जैसे हालात उत्पन्न हुए तब वहां से बड़ी संख्या में लोग भारत आयेंगे जिसकी वजह से शरणार्थी संकट पैदा होगा | दरअसल  भारत के आजाद होने के बाद जो लोग सत्ता में आते रहे उनमें से  अधिकतर ने नेपाल के हिन्दू राजघराने की बजाय उसके विरोधियों का साथ दिया जो भीतर ही भीतर चीन की तरफदारी करते रहे | इसी का दुष्परिणाम राजशाही के पतन के बाद माओवादी सत्ता के तौर पर देखने मिला जिसने भारत के साथ रिश्ते बिगाड़ने में रूचि ली | लेकिन जैसे संकेत मिले हैं उनके अनुसार नेपाल में भी एक वर्ग ऐसा है जो चीन की कुटिल चाल को समझकर उसके विरुद्ध सडकों पर उतर आया है | देउबा सरकार आने के बाद नेपाल ने भारत के प्रति दोस्ताना रवैया दिखाया है | इसका एक कारण श्रीलंका का हश्र भी है | वहां के लोगों को ये बात अच्छी तरह समझ में आ गई है कि चीन जो सहायता देता है उसका उद्देश्य अंततः नेपाल को कर्ज के बोझ तले दबाकर हड़पना है | भारत के लिए हालाँकि इन दोनों देशों को कर्ज से उबारना तो टेढ़ी खीर है लेकिन इस स्थिति का लाभ लेकर वे चीन के शिकंजे में न चले जाएँ इसलिए हमें सतर्क रहना पडेगा | उस दृष्टि से श्रीलंका को धन और जरूरी सामान की आपूर्ति कर भारत ने वहां के लोगों में  अपने लिए समर्थन और सम्मान अर्जित करते हुए जबरदस्त कूटनीतिक दांव चला है | नेपाल में यद्यपि अभी श्रीलंका जैसी स्थिति नहीं बनी लेकिन यदि तुरंत उपाय न किये गए तो जल्द ही आर्थिक अराजकता देखने मिल सकती है | और तब चीन वहां सीधा हस्तक्षेप करने की स्थिति में होगा क्योंकि  दोनों की सीमाएं मिली हुई हैं | इसलिए श्री मोदी की संक्षिप्त नेपाल यात्रा से भी बड़े परिणाम निकलने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता | हालाँकि चीन इसके बाद कुछ न कुछ करे बिना नहीं रहेगा लेकिन मौजूदा वैश्विक माहौल में वह पहले जैसी आक्रामकता दिखाने की  स्थिति में नहीं है | कूटनीति के मोर्चे पर श्री  मोदी की सक्रियता और आत्मविश्वास ने भारत को एक बड़ी  अंतर्राष्ट्रीय ताकत के रूप में स्थापित कर दिया है | नेपाल यात्रा उस दिशा में एक कारगर कदम है | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment