Monday 23 May 2022

उत्तराखंड में तीर्थयात्रियों की भीड़ और कचरे के ढेर खतरनाक संकेत

मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस : संपादकीय
- रवीन्द्र वाजपेयी 

उत्तराखंड में तीर्थयात्रियों की भीड़ और कचरे के ढेर खतरनाक संकेत

गर्मियां शुरू होते ही पहाड़ों की सैर हेतु निकलने वाले सैलानियों के कारण  शिमला , मसूरी , कश्मीर , नैनीताल , दार्जिलिंग , ऊँटी , गंगटोक , लेह  आदि में  भारी भीड़ उमड़ती है | पहले तो ये शौक सम्पन्न  वर्ग तक ही सीमित था लेकिन बीते कुछ दशकों से मध्यमवर्ग में भी सैर - सपाटे की प्रवृत्ति तेजी से विकसित हुई है | इस वजह से हिल स्टेशन अब पहले  जैसे शांत नहीं रहे | होटलों आदि की संख्या  में वृद्धि ने भी पर्यटन को बढ़ावा दिया | आवागमन के साधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने से पहाड़ों में आना - जाना आसान हुआ है | लेकिन इसका विपरीत असर भी देखने में आ रहा है |  शिमला जैसे खूबसूरत हिल स्टेशन में पीने के पानी की किल्लत है | श्रीनगर और नैनीताल की झीलें दुर्गन्ध फँकने लगी हैं | मसूरी में दिन के समय पंखे चलाने पड़ते हैं | लेकिन इन सबसे अलग देश का सबसे पुराना पर्यटन है तीर्थ यात्रियों द्वारा की जानी वाले धार्मिक स्थलों की यात्राएं और उनमें भी उत्तराखंड की पर्वतमालाओं में स्थित बद्रीनाथ , केदारनाथ , यमुनोत्री और गंगोत्री नामक स्थलों की यात्रा | पर्वतीय क्षेत्र होने से सर्दियों में यहाँ आवागमन अवरुद्ध रहता है | अक्षय तृतीया के अवसर पर इन धामों की विधिवत यात्रा प्रारंभ  होती है | अतीत में तो यात्री ऋषिकेश से पैदल जाते थे | 1962 में हुए  चीन के  हमले के बाद सीमा सड़क संगठन द्वारा सड़कों के विकास के फलस्वरूप बद्रीनाथ और गंगोत्री तक वाहन जाने लगे किन्तु केदारनाथ और यमुनोत्री के लिए अभी भी कुछ किमी पैदल , खच्चर अथवा पालकी इत्यादि से जाना पड़ता है | लेकिन उन रास्तों में भी  काफी सुधार हो जाने से तीर्थयात्री साल दर साल बढ़ते गये | बीते दो साल से कोरोना के कारण यात्रा में व्यवधान हुआ लेकिन इस वर्ष ज्योंही यात्रा की अनुमति दी गई त्योंही पहले दिन से ही इन चार धामों में यात्रियीं का  सैलाब आ गया | पहाड़ी क्षेत्रों में  फोर लेन सड़कें बन जाने से भी यात्रियों की संख्या में आशातीत वृद्धि देखी जा रही है | अब तो सर्दियों के मौसम में भी इस क्षेत्र में आने - जाने वालों की  संख्या  आश्चर्यजनक तौर पर बढ़ी है | इसका लाभ वहाँ की  अर्थव्यवस्था को तो जबर्दस्त होने लगा है परन्तु पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से देखने पर पहाड़ों पर बेतहाशा भीड़ का होना खतरे से खाली नहीं है | केदारनाथ त्रासदी के पूर्व से भी उत्तराखंड में भूकंप और भूस्खलन की घटनाएँ लगातार होने से चिंता के बादल घने होते जा रहे हैं | ग्लेशियर सिकुड़ने से गंगा और यमुना के अस्तित्व तक पर संकट मंडराने लगा है | टिहरी बांध बनने के पूर्व जो चिंताएं व्यक्त की जा रही थीं वे कुछ हद तक सही साबित होने से इस समूचे क्षेत्र के प्राकृतिक संतुलन में गड़बड़ी के संकेत आपदाओं के रूप में मिलने लगे हैं | लेकिन दुख इस बात का है कि सब कुछ जानने और समझने के बावजूद लोग इन तीर्थों की पवित्रता के प्रति लापरवाह हो चले हैं | ताजा उदाहरण उत्तराखंड में चार धाम यात्रा शुरू होते ही तीर्थ यात्रियों की भीड़ उमड़ने से उत्पन्न समस्याओं से मिला है | पट खुलने वाले दिन ही दर्शन हेतु उम्मीद से ज्यादा तीर्थयात्रियों के आ जाने से अव्यवस्था व्याप्त हो गई | रास्ते में जाम लगने से यातायात को लेकर किये गये तमाम इंतजाम अपर्याप्त साबित हो गये | दो वर्ष बाद यात्रा खुलने से तीर्थयात्रियों का उत्साह निश्चित रूप से प्रशंसनीय कहा जायेगा | चार धाम के पण्डे , दुकानदार , खच्चर मालिक , पालकी मजदूर आदि इससे खुश नजर आने लगे | दो वर्ष की मंदी के बाद उनके चेहरों पर खुशी नजर आ रही है  | उत्तराखंड  में सड़कों का विकास जिस तेजी  से किया गया उसकी वजह से वहां आना – जाना सुलभ हो जाने से भी यात्रियों का सैलाब आ गया है | भीड़ के कारण जो अफरातफरी मची उसकी वजह से आधा दर्जन यात्रियों की हृदयाघात से  मौत हो गयी | आज जो समाचार आया  उसके  अनुसार उक्त तीर्थस्थलों में कचरे के ढेर लग जाने से सफाई की समस्या पैदा हो गई है | खाली प्लास्टिक बोतलें , पाउच और ऐसी ही अन्य सामग्री चारों तरफ बिखरी पड़ी है  पहाड़ों पर चूंकि खुला स्थान कम होता है इसलिए यही कचरा वहां बहने वाली नदियों और झरनों में जाकर मिल जाता है | बेमौसम बरसात भी  इस समस्या को और गम्भीर बना देती है | अनेक यात्रियों ने अपने मोबाईल से कचरे के चित्र खींचकर सोशल मीडिया पर प्रसारित किये हैं जिन्हें देखकर हर उस व्यक्ति को पीड़ा हो रही है जिसकी पर्यावरण संरक्षण में ज़रा  सी भी  रूचि है | ये देखते हुए जरूरी हो जाता है कि उत्तराखंड में  चार धाम यात्रा के लिए यात्रियों की संख्या सीमित किये जाने की  व्यवस्था हो | भले ही सड़कें कितनी भी उच्चस्तरीय हों  और ठहरने की सुविधाजनक व्यवस्था भी बन  जाए लेकिन पहाड़ की अपनी सहनशक्ति होती है | प्रकृति अपने  सौदर्य का दर्शन करने की अनुमति तो सभी को देती है लेकिन उससे छेड़छाड़ एक हद के बाद बर्दाश्त नहीं कर पाती और इस वास्तविकता से उत्तराखंड जाने वाले तीर्थयात्री अनेक मर्तबा रूबरू हो चुके हैं | बावजूद उसके आस्था जिस तरह उफान ले रही है वह प्रकृति के प्रति अपराध की श्रेणी में रखी जाने लायक है | इस वर्ष यात्रा का मौसम शुरू होते ही जिस तरह से भीड़ और कचरे के ढेर नजर आ रहे हैं उसकी वजह से ये आशंका करना बेमानी नहीं होगा कि आने वाले दिनों में कुछ न कुछ अशुभ घट सकता है | बुद्धिमत्ता इसी में है कि केंद्र और उत्तराखंड सरकार दोनों मिलकर चार धाम आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या नियंत्रित करने के पुख्ता इंतजाम करें | देश भर में फैले धर्माचार्यों से भी अपेक्षा है कि वे अपने अनुयायियों को आस्था की आड़ में प्रकृति के साथ अत्याचार करने से रोकने आगे आयें | उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है | यह ऋषियों की तपोभूमि है | गंगा और यमुना जैसी नदियाँ इससे निकलती हैं | आयुर्वैदिक औषधियों में काम आने वाली  बेशकीमती जड़ी – बूटियाँ यहाँ के पहाड़ों में पैदा होती हैं | लेकिन बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप की वजह से उत्तराखंड का नैसर्गिक स्वरूप नष्ट होने के कगार पर है | बद्रीनाथ के पहले एक रास्ता हेमकुंड साहेब को जाता है जो  सिखों का तीर्थ होने से बड़ी संख्या में सिख श्रृद्धालु भी उत्तराखंड आते हैं | इस वजह से यहाँ का तापमान भी बढ़ता जा रहा है जिसे सहन न  करने के कारण ग्लेशियर पिघलने लगे हैं | हर साल कोई न कोई घटना ऐसी हो जाती है  जो प्राकृतिक आपदा की शक्ल में हमें चेतावनी देती है | लेकिन इसे नासमझी कहें या हेकड़ी  कि हम उनकी अनदेखी करते जा रहे हैं |  इसके पहले कि कोई बड़ी अनहोनी हो जाये सरकार को समुचित इंतजाम करते हुए चार धाम यात्रा को  यात्रियों के साथ ही प्रकृति के लिहाज  से भी सुरक्षित बनाने का प्रबंध करना चाहिए |

- रवीन्द्र वाजपेयी 


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