Tuesday 5 April 2022

पड़ोस का संकट हमारी परेशानी : शरणार्थियों का घर बन रहा भारत



जैसी कि आशंका थी  , श्रीलंका में आर्थिक बदहाली का असर भारत पर भी पड़ने लगा है | तमिलनाडु के समुद्री तट पर  सपरिवार आ रहे श्रीलंकाई मछुआरे भटकते हुए यहाँ तक नहीं पहुंचे | अपितु समुद्री लहरों से जूझते हुए परिवार सहित  शरण लेने आये हैं | उन्हें घुसपैठिया मानकर पहले तो गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन तमिलनाडु की द्रमुक सरकार के दखल के बाद जमानत देकर शरणार्थी शिविर में पनाह दी गई | कुछ दशक पूर्व जब श्रीलंका पृथक तमिल राष्ट्र के लिए लिट्टे नामक उग्रवादी संगठन द्वारा किये जा रहे गृहयुद्ध से जूझ रहा था , तब भी बहुत बड़ी संख्या में वहां से तमिल शरणार्थी भारत आये थे | उनमें से अधिकतर स्थितियां समान्य होने पर वापिस भी चले गये लेकिन कुछ यहीं रह गये | बीते कुछ दिनों में जो शरणार्थी तमिलनाडु  आये उनमें से कुछ ऐसे हैं जो अतीत में भी यहाँ शरणार्थी के तौर पर रह चुके थे | भाषा और सांस्कृतिक समानता के कारण तमिलनाडु और श्रीलंका के तमिलभाषियों के बीच भावनात्मक रिश्ता है जो विवाह सम्बन्धों का रूप भी ले लेता है | श्रीलंका में पृथक तमिल राष्ट्र के लिए हुए हिंसक आन्दोलन को इसीलिये तमिलनाडु की द्रविण पार्टियों का खुला समर्थन था | बावजूद इसके दोनों देशों के बीच रिश्ते बहुत अच्छे कभी नहीं रहे | श्रीलंका में बौद्ध धर्मावलम्बी सिंहलियों का बाहुल्य है जो ये तो मानते हैं कि उनकी सांस्कृतिक जड़ें भारत में ही हैं लेकिन इक्का दुक्का को छोड़कर इस देश की सरकारों में भारत के प्रति द्वेषभाव ही देखा जाता गया | हालाँकि जब – जब भी  वहां  संकट  आया तब – तब भारत ने सबसे पहले  मदद की | लिट्टे के आतंक के दौरान भारतीय सेना श्रीलंका की अखंडता की रक्षा हेतु  भेजी गई जिसकी कीमत राजीव गांधी को अपनी हत्या  के रूप में चुकानी पड़ी | इतिहास गवाह है कि अपनी   आजादी के बाद से ये टापू  नुमा देश भारत के प्रति सदैव सशंकित बना रहा | ये जानते हुए भी कि लिट्टे को चीन से अस्त्र – शस्त्र और  आर्थिक सहायता मिलती रही , उसके खात्मे के बाद श्रीलंका के सत्ताधीश उसी चीन की गोद में जा बैठे  जिसने उसे कर्जदार बनाते हुए कंगाली की स्थिति में पहुंचा दिया |  जब वहां हालात बेकाबू होने लगे तब चीन दूर से बैठा तमाशा देख रहा है और श्रीलंका के सत्ताधीश तथा विपक्षी नेता भारत से मदद की गुहार कर रहे हैं | भारत ने  संकट में फंसे पड़ोसी को आर्थिक सहायता के साथ ही जरूरी साजो – सामान देकर अपना कर्तव्य निभाया है लेकिन इसके  बाद भी श्रीलंका हमारे प्रति प्रेम भाव रखेगा ये सोचना गलत होगा | इस बारे में  विचारणीय  बात ये है कि हमारे लगभग सभी पड़ोसी मुसीबत के समय तो हमसे बड़प्पन की उम्मीद रखते हैं परन्तु काम निकलते ही मुंह फेर लेते हैं | दरअसल भारत के लिए सबसे बड़ी समस्या बनते हैं  इन देशों से आने वाले शरणार्थी , जो  वापिस जाने का नाम ही नहीं लेते | चीन द्वारा तिब्बत पर कब्ज़ा करने के बाद आये लाखों  शरणार्थी भारत के स्थायी वासी होकर रह गये और  दलाई लामा की निर्वासित सरकार का मुख्यालय धर्मशाला में बन गया | उसके बाद पाकिस्तान से सताये गए हिन्दू और सिख भारत में शरण लेकर यहाँ के नागरिक बनते गये | अफगानिस्तान से तो ये सिलसिला आज तक जारी है | बांग्ला देश से आये करोड़ों शरणार्थी केवल असम ,त्रिपुरा  और प. बंगाल तक ही सीमित न रहकर पूरे देश में फ़ैल गये जिन्हें वोट बैंक की राजनीति ने  स्थायी नागरिक बना दिया | म्यांमार से खदेड़े गए रोहिंग्या मुसलमान अपने मूल स्थान बांग्ला देश के बजाय भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा जम्मू कश्मीर तक बस गये | भारत सरकार द्वारा इन्हें वापिस भेजने के प्रयास किये जाने पर विपक्षी दलों के अलावा मानवाधिकार की दुकान चलाने वालों ने चिल्लाना शुरू कर दिया | रोहिंग्या मुसलमान आये तो शरणार्थी बनकर लेकिन जल्द ही इनके भारत विरोधी इरादे जाहिर हो गये | नेपाल के लाखों नागरिक भारत में स्थायी रूप से रहते ही हैं | श्रीलंका में  आये इस संकट के कारण शरणार्थियों की जो नई खेप तमिलनाडु आ रही है उसे वहां की सरकार हाथों  - हाथ ले रही है | ये संख्या कहाँ तक जायेगी कहना कठिन है और ये भी तय है कि इनमें से बहुत से वापिस लौटने वाले नहीं हैं | वैसे शरणार्थी समस्या वैश्विक स्तर पर सदैव विद्यमान रही है | मानवीय आधार पर उनके दर्द को महसूस करते हुए अनेक देश उन्हें पनाह  देते हैं |  सीरिया संकट के दौरान  लाखों शरणार्थी यूरोप और  कैनेडा तक जा पहुंचे | लेकिन जिन देशों ने तरस खाकर उनके रहने – खाने का इन्तजाम किया , वे ही  अब उनके आतंक से त्रस्त हैं | फ्रांस और जर्मनी के अलावा अन्य देशों में हुई हिंसक वारदातों के  पीछे ये शरणार्थी ही थे  | भारत के पूर्वोत्तर राज्य विशेष रूप से असम , त्रिपुरा और प. बंगाल में तो बांग्लादेशी अब राजनीतिक संतुलन बनाने – बिगाड़ने लगे हैं | बिहार के कुछ इलाके भी इनके कारण ऐसे हो गये हैं जहां से गैर मुस्लिम चुनाव जीत ही नहीं सकता | रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों द्वारा अनेक स्थानों पर फैलाया गया आतंक  आन्तरिक सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है | कुल मिलाकर देखें तो भारत की भौगोलिक स्थिति के कारण पड़ोसी देशों में होने वाली किसी भी प्रकार की गड़बड़ हमारे लिए शरणार्थी समस्या लेकर आती है | नेपाल और चीन की सीमा भी सटी हुई है लेकिन मजाल है कि एक भी नेपाली भागकर चीन चला जाये | जिन देशों की चीन खुलकर मदद करता है उनके एक भी नागरिक को अपने यहाँ बसाने के अनुमति वह नहीं देता | अफगानिस्तान में तालिबानी राज आते ही वहां से निकले हिन्दू और सिखों के लिए पाकिस्तान में कोई जगह नहीं थी , लिहाजा वे भारत आ गये | पाकिस्तान में सताए जाने वाले गैर मुस्लिम भी भारत में ही ठिकाना पाते हैं | बांग्ला देश , म्यांमार आदि से अवैध रूप से घुसपैठ लगातार  होती ही रहती है | लेकिन भारत से कितने मुस्लिम हाल के वर्षों में पाकिस्तान की शरण में गये , ये बड़ा सवाल है | इसी तरह प. बंगाल , असम और त्रिपुरा में रहने वाला शायद ही कोई मुस्लिम बांग्ला देश गया हो | यही हाल तमिलनाडु का है जहां से विवाहोपरांत कुछ लड़कियां भले ही श्रीलंका चली जाती हों अन्यथा दक्षिण भारत के राज्यों से कोई श्रीलंका जाकर नहीं बसता | इस प्रकार देखें तो हमारे देश में करोड़ों नागरिक ऐसे हैं जो शरणार्थी बनकर आये किन्तु वापिस नहीं गये | मानवीयता के लिहाज से शरण देना बहुत ही नेक काम है लेकिन ये शरणार्थी कालान्तर में बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों की तरह आर्थिक बोझ के साथ आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन जाते हैं | श्रीलंका के वर्तमान संकट में भारत का सहयोगात्मक रवैया हर दृष्टि से उचित है किन्तु तमिलनाडु में आ  रही शरणार्थियों की भीड़ यहीं की होकर न रह जाये , ये सतर्कता रखनी होगी क्योंकि स्टालिन सरकार का रवैया इस बारे में बेहद गैर जिम्मेदाराना लगता है जो उनकी पैतृक परम्परा है | गौरतलब है शरणार्थियों के मामले में भारत के साथ  सदैव हवन करते हाथ जलने वाली कहावत चरितार्थ होती रही है | इस बारे में ये बात बेहद महत्वपूर्ण है कि कश्मीर से निकाले गये हिन्दू पंडितों को तीन दशक बाद भी वहां लौटकर बसने का अवसर नहीं मिला लेकिन म्यांमार से आये उन रोहिंग्या मुस्लिमों को उमर अब्दुल्ला की  सरकार ने वहां रहने की इजाजत दे दी जिनकी भारत विरोधी सोच जग जाहिर है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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