राम नवमी के अवसर पर निकाली जाने वाली शोभायात्रा कोई नई बात नहीं है | लेकिन इस वर्ष देश के विभिन्न हिस्सों से उन पर पथराव और उसके बाद सांप्रदायिक दंगे होने की जो खबरें आईं वे चिंता में डालने वाली हैं | आतंकवाद के चरमोत्कर्ष के दिनों में कश्मीर घाटी में हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता मरहूम सैयद अली शाह गिलानी ने वहां के बेरोजगार नौजवानों को पैसों का लालच देकर सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने के लिए उकसाया | बाद में ये काफी आम हो गया और एक समय तो ऐसा आ गया जब लड़कियां तक पत्थरबाज बन गईं | राजधानी दिल्ली में दो वर्ष पूर्व हुए सांप्रदायिक दंगों में भी दंगाइयों के घरों की छतों से पथराव की घटनाएँ हुईं | तलाशी लिए जाने पर पत्थरों के साथ ही हथियार भी बरामद हुए | नवरात्रि के पहले दिन हिन्दू नववर्ष के उपलक्ष्य में राजस्थान के करौली में निकाली गई परम्परागत शोभा यात्रा पर एक क्षेत्र विशेष में छतों से पथराव होने के बाद बाकायदा लाठियों और तलवारों से हमला किया गया और उसके बाद वही सब हुआ जो सांप्रदायिक दंगों के दौरान देखने मिलता है | उस उपद्रव की आग अभी भी ठंडी नहीं हुई है | दूसरी ओर देश के कुछ शहरों से जो चित्र देखने आये उनमें हिन्दुओं के धार्मिक जुलूसों पर मुस्लिम समुदाय के लोग पुष्पवर्षा करते भी दिखे | इस पर कहा गया कि बदलती हुई राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए यह समाज भी कट्टरता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने आगे आने लगा है | हालाँकि उ.प्र के हालिया चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं के थोक के भाव भाजपा के विरोध में लामबंद होने की बात भी किसी से छिपी नहीं है | मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर में जिस मठ के महंत हैं उसके परिसर में एक मुस्लिम युवक द्वारा हथियार लेकर उत्पात मचाने के बाद ये माना जाने लगा कि ये चुनावी हार से उपजी हताशा का प्रगटीकरण था | बाद में पता चला कि वह युवक जाकिर नाइक का अनुयायी है जो मुस्लिम समाज के बीच भड़काऊ भाषण देने के लिए कुख्यात थे और गिरफ्तारी से बचने के लिए मलेशिया में शरण लिए बैठे हैं | करौली के दंगे में एक बात साफ़ हो गई कि हिन्दुओं के जुलूस पर किया गया हमला पूर्व नियोजित था | फिर भी उसे स्थानीय घटना मान लिया गया | लेकिन म.प्र में खरगौन के साथ गुजरात , बिहार और अन्य कुछ राज्यों में अनेक स्थानों पर राम नवमी की शोभा यात्रा पर जिस तरह पथराव किये जाने के साथ ही धारदार हथियारों से हमले किये गये वे इस संदेह की पुष्टि करते हैं कि इन वारदातों के पीछे कोई न कोई संगठित सोच काम कर रही है | वरना इन सबका स्वरूप एक समान न होता | जुलूस मार्ग पर स्थित घरों की छतों पर पत्थर जमा करने वालों का मकसद अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है | उ.प्र में सीएए विरोधी दंगाइयों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचाई गयी क्षति की वसूली उनसे की गयी थी | उसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपराधी तत्वों के निर्माणों पर बुलडोजर चलाने का निर्णय किया जो विधानसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बन गया | देखासीखी अन्य राज्यों ने भी उस तरीके को अपनाया जिनमें म.प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अग्रणी हैं | म.प्र में इन दिनों अपराधी सरगानाओं के अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलाये जाने का अभियान चल रहा है | खरगौन में राम नवमी जुलूस पर पथराव के बाद जो सांप्रदायिक दंगा हुआ उसके आरोपियों की पहिचान करते हुए उनके घरों और दुकानों को ज़मींदोज किया जा रहा है | ऐसी कार्रवाई का उद्देश्य दंगा करने वालों को सबक सिखाना होता है | इसका असर भी हुआ जिसके प्रमाण देश के अनेक हिस्सों में हिन्दुओं के जुलूसों का मुस्लिम समुदाय द्वारा स्वागत किये जाने से मिले हैं | ये भी सुनने में आने लगा है कि उ.प्र के चुनाव के बाद वहां के मुस्लिम समाज में इस बात को लेकर मंथन चल पडा है कि कुछ राजनीतिक दलों के बहकावे पर भाजपा का अँधा विरोध करने से उन्हें हासिल तो कुछ हुआ नहीं , उल्टे हिन्दू समाज का ध्रुवीकरण हो गया | राष्ट्रीय स्तर पर भी इस तरह की सोच एक तबका रखने लगा है लेकिन धार्मिक दबाव के आगे उसकी आवाज दबी रह जाती है | ऐसे में जरूरत इस बात की है कि बुलडोजर दंगाइयों के घरोंदों पर ही नहीं अपितु उन इरादों पर चलाये जाएँ जो आज भी मुस्लिम लीग की उस विचारधारा से प्रेरित और प्रभावित हैं जिसने धर्म के नाम पर देश का बंटवारा करवाया था | दुर्भाग्य से आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनका शरीर भले भारत में हो लेकिन मन पाकिस्तान में ही रहता है जिसके कारण विभाजन के बाद की उनकी दूसरी और तीसरी पीढ़ी तक मुख्यधारा से दूर है | धर्म निरपेक्षता के नाम पर चली वोट बैंक की राजनीति ने जिस तुष्टीकरण का सहारा लिया वह कालान्तर में नासूर बनता गया | आधुनिक शिक्षा की जगह धार्मिक कट्टरता का पाठ पढ़ाए जाने की वजह से बजाय आगे बढ़ने के मुस्लिम समाज आज भी सदियों पुरानी बेड़ियों में जकड़ा हुआ है | बीते कुछ सालों में देश का परिदृश्य काफी बदला है जिससे खीझकर कुछ लोगों द्वारा आक्रामक अंदाज में अपनी ताकत दिखाने का सुनियोजित प्रयास किया रहा है | कुछ चुनिन्दा शिक्षण संस्थानों में समय – समय पर होने वाले उपद्रव इसकी बानगी हैं | धार्मिक रीति – रिवाजों के नाम पर दंगा करने की कोशिशें भी किसी से छिपी नहीं हैं | संविधान के नाम पर देश चलाने की बात करने वाले मौका मिलते ही धार्मिक ग्रन्थ लेकर बैठ जाते हैं | दुःख तो इस बात का है कि विभिन्न राजनीतिक पार्टियाँ इस खतरनाक खेल को प्रोत्साहन देती हैं | इससे लगता है जैसे आतंकवाद किसी रणनीति के अंतर्गत नये रूप में सीमावर्ती राज्यों से निकलकर देश के अंदरूनी हिस्सों में फ़ैल रहा है | दिल्ली के शाहीन बाग में चले धरने को जिस तरह से राजनीतिक समर्थन मिला उससे अलगाववादी शक्तियों का हौसला बुलंद हो गया | कोरोना न आया होता तो बड़ी बात नहीं देश भर में आतंकवादी हिंसा का दौर दिखाई देता | राम नवमी की शोभायात्राओं पर हुए ताजा हमले स्थानीय विवाद मानकर उपेक्षित नहीं किये जाने चाहिए | कश्मीर घाटी में अपनी जड़ें कमजोर होने के बाद देश विरोधी ताकतें अपने कार्यक्षेत्र का जो विस्तार कर रही हैं ये उपद्रव उसी के प्रमाण हैं | इसीलिये केवल इनके मकान और दूकानें तोड़ने से बात नहीं बनने वाला, सांप का फन कुचलना भी जरूरी है |
- रवीन्द्र वाजपेयी
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