Friday 15 April 2022

दिग्विजय इस आरोप के प्रमाण दें वरना कांग्रेस को नुकसान होगा



म.प्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की राजनीतिक प्रासंगिकता उनके विवादास्पद बयानों तक ही सीमित रह गई है | अपने राजनीतिक गुरु स्व. अर्जुन सिंह की कृपा से प्रदेश की सत्ता के शिखर तक पहुँचने के बाद यद्यपि उन्होंने अपने राजनीतिक कौशल से दस साल तक बतौर मुख्यमंत्री बने रहने का कारनामा तो कर दिखाया लेकिन जब गुरु ने कांग्रेस से बगावत  कर तिवारी कांग्रेस बनाई तब दिग्विजय ने उनसे सुरक्षित दूरी बनाए रखी जिसके कारण अर्जुन सिंह सतना से लोकसभा चुनाव तक हार  गये | उनके राजनीतिक शिकारों में सबसे प्रमुख रहे स्व. माधवराव सिंधिया जिन्हें उन्होंने प्रदेश की राजनीति में हावी नहीं होने दिया | बावजूद इसके कि स्व. सिंधिया के गांधी परिवार से करीबी रिश्ते थे | इसी तरह कमलनाथ , जिन्हें वे अपना बड़ा भाई कहते थे ,  उनको भी उन्होंने झटका दिया | हवाला कांड में नाम आने के बाद स्व. पीवी नरसिम्हाराव ने श्री नाथ को लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा से टिकिट न देकर उनकी पत्नी को लड़ाया , जो जीत भी गईं | दो साल बाद श्री नाथ ने उनसे त्यागपत्र दिलवाकर उपचुनाव लड़ा जिसमें वे भाजपा प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री स्व. सुन्दरलाल पटवा से हार गए | राजनीति के जानकार बताते हैं कि कमलनाथ के जीवन की उस इकलौती पराजय के पीछे दिग्विजयी रणनीति थी ताकि छिंदवाड़ा नरेश खुद को  अपराजेय समझना बंद करें | इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त किये हुए श्री सिंह से ये अपेक्षा थी कि म.प्र के माथे पर लगा बीमारू राज्य नामक दाग हटायेंगे किन्तु उनकी रूचि केवल राजनीतिक घात – प्रतिघात तक ही सीमित रही जिसकी वजह से प्रदेश पिछड़ेपन और बदहाली का शिकार होकर रह गया | 2003 में भाजपा ने जब बिजली , पानी और सड़क को चुनावी मुद्दा बनाया तो मतदाताओं पर उसका जबरदस्त असर हुआ और कांग्रेस ऐसी हारी कि  अगले 15 साल तक सत्ता से उसे दूर रहना पड़ा | 2018 में स्व. माधवराव के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया को चेहरा बनाने के कारण म.प्र में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी लेकिन दिग्विजय ने एक बार फिर सिंधिया परिवार से खुन्नस निकालते हुए कमलनाथ की ताजपोशी करवा दी | उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य गुना की अपनी पुश्तैनी सीट से हार गये तो उसके पीछे भी राजनीतिक विश्लेषक दिग्विजय सिंह की भूमिका मानते हैं | हालांकि वे खुद भी कमलनाथ के बनाये जाल में फंसकर भोपाल में बुरी तरह हारे | लेकिन असली राजनीति तब शुरू हुई जब 2020 में होने वाले राज्यसभा  के चुनाव में श्री सिंधिया ने अपना दावा पेश किया तो एक बार फिर दिग्विजय बाधा बन गये | यद्यपि कांग्रेस दोनों सीटें जीतने की स्थिति में थी किन्तु श्री सिंधिया को डर था कि दिग्विजय भितरघात न करवा दें | और यहीं से उनके मन में कांग्रेस से अलग होने की बात आई जिसे भाजपा ने लपक लिया और नौबत  कमलनाथ की सरकार के पतन के साथ शिवराज सिंह चौहान की वापिसी तक आ पहुँची और ज्योतिरादित्य भाजपा से राज्यसभा में होते हुए मोदी मंत्रीमंडल में शामिल हो गये | इस प्रकार एक बार फिर दिग्विजय के कारण म.प्र में कांग्रेस के हाथ से सत्ता चली गयी | लेकिन उन्हें उसका कोई रंज नहीं है | इसीलिये वे आये दिन इस तरह के बयान दिया करते हैं जिनसे कांग्रेस शोचनीय स्थिति में आ जाती है | खरगौन के दंगे के बाद उनका एक ट्वीट विवादग्रस्त हो गया जिसमें उन्होंने बिहार की एक मस्जिद को खरगौन का बताने की गलती कर डाली | जिस पर उनके विरुद्ध अपराधिक प्रकरण भी दर्ज हो गया है | यद्यपि बाद में उन्होंने उस चित्र को अलग कर दिया | लेकिन उसके बाद भी वे रुके नहीं और नया बयान देते हुए भाजपा को दंगों के लिए जिम्मेदार बतलाकर एक तरफ तो ये स्वीकार किया कि देश में अनेक स्थानों में हुए हालिया दंगों में एक पैटर्न ( समानता ) नजर आता है किन्तु उसके साथ ये भी जोड़ दिया कि कुछ मुस्लिम संगठन हैं जो पूरी तरह भाजपा के साथ मिलकर सियासी खेल खेलते हैं | दरअसल इस बयान के जरिये वे एक तरह से दंगों के लिए जिम्मेदार माने जा रहे मुसलमानों को भाजपा के साथ जुड़ा बताकर भ्रम की स्थिति पैदा करना चाह रहे हैं | दरअसल राजस्थान के करौली में नवरात्रि के शुभारम्भ पर हिन्दू नववर्ष के उपलक्ष्य में निकली शोभा यात्रा पर हुए पथराव और उसके बाद भड़के दंगे के लिये वहां की कांग्रेस सरकार पर लग रहे आरोपों के बचाव में श्री सिंह ने दंगाई मुस्लिम संगठनों की भाजपा के साथ संगामित्ती का नया शिगूफा छोड़ दिया | वैसे असदुद्दीन ओवैसी को लेकर भी ये कहा जाता है कि वे मुस्लिम मतों में बंटवारा करवाकर भाजपा की मदद करते हैं | उ.प्र में बसपा पर भी ये आरोप लग रहे हैं कि वह भाजपा की बी टीम बनकर चुनाव लड़ी | लेकिन मुस्लिम संगठनों द्वारा भाजपा के साथ मिलकर सांप्रदायिक उपद्रव करवाने का यह  आरोप अपनी तरह का पहला है जो दिग्विजय जैसे नेता के दिमाग की उपज ही हो सकता है | सवाल ये है कि 10 साल तक प्रदेश की सत्ता के मुखिया रहे श्री सिंह के पास अपनी इस बात का कोई प्रमाण यदि है तब उसकी जानकारी वे सार्वजनिक क्यों नहीं कर रहे ? चूंकि  अपने संदर्भित बयान में उन्होंने किसी मुस्लिम संगठन का नाम नहीं लिया इसलिए ये संदेह होना गलत नहीं है कि वे एक बार फिर निराधार बात कहकर  असली दोषियों की तरफ से ध्यान हटाना चाह रहे हैं | जहां तक बात प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन पर आरोप लगाने की है तो राजनीतिक दृष्टि से ये  स्वाभाविक है परंतु किसी मुस्लिम संगठन के साथ मिलकर भाजपा द्वारा सांप्रदायिक उपद्रव करवाने जैसे  आरोप को हवा में उड़ा देना उचित नहीं होगा | ये देखते हुए श्री सिंह को अपनी बात के प्रमाण भी जाँच एजेंसियों को देना चाहिए | यदि वे ऐसा नहीं करते तब ये अवधारणा और मजबूत हो जायेगी कि उनमें दायित्वबोध और गंभीरता पूरी तरह लुप्त हो चुकी है | दंगों के जांचकर्ताओं को भी उनसे पूछताछ करनी चाहिए क्योंकि प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री होने के अलावा वे संसद के उच्च सदन के भी सदस्य हैं और उस नाते अनेक संसदीय समितियों के सदस्य भी | खरगौन के दंगे को लेकर उनके जितने भी बयान आये , वे विपक्ष से अपेक्षित ही होते हैं लेकिन दिग्विजय द्वारा  मुस्लिम संगठनों का भाजपा के साथ जुड़ाव होने जैसी जो बात कही गई वह बेहद गम्भीर है और उसका खुलासा उनको करना ही होगा | कांग्रेस को भी अपने इस वरिष्ट नेता से उनके बयान का आधार पता करना चाहिए क्योंकि दिग्विजय सिंह द्वारा अतीत में कही गई इसी तरह की बातें पार्टी के लिए मुसीबत बनती रही हैं | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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