Wednesday 6 April 2022

भाजपा : जिसकी शक्ति बढ़ती है उसी के शत्रु भी बढ़ते हैं



 आजादी के बाद की  भारतीय राजनीति  के इतिहास पर यूं तो  सैकड़ों अध्याय लिखे जा सकते हैं किन्तु बीते 75 वर्ष के कालखंड पर दृष्टिपात करने पर  ये कहना गलत न होगा कि 1947 से 1977 तक का दौर  कांग्रेस के नाम लिखा जाएगा | 1975 में इंदिरा जी द्वारा लगाये गये आपातकाल के गर्भ से जन्मी जनता पार्टी नामक प्रयोग भले ही अल्पजीवी रहा लेकिन उसके कारण 1977 में  पहली बार केन्द्रीय सत्ता में परिवर्तन संभव हो सका | महज 27 महीने चली वह सरकार मुख्य रूप से कांग्रेस के इंदिरा विरोधी नेताओं के अलावा समाजवादियों और जनसंघ के विलय से बनी थी किन्तु रूस के इशारे पर मधु लिमये जैसे  नेताओं ने जनसंघ और रास्वसंघ के रिश्तों को आधार बनाकर दोहरी सदस्यता रूपी विवाद पैदा कर जनता पार्टी के बिखराव की स्थिति पैदा कर दी | जिसके बाद 6 अप्रैल 1980 को जनसंघ के नए अवतार के तौर पर भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ जिसके चेहरे बने अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी  | यद्यपि जनता पार्टी भी बनी रही लेकिन टूटन जारी रहने से वह कमजोर होती गई | 1984 में इंदिरा जी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी ऐतिहासिक बहुमत के साथ सत्ता में आये तो लगा कि कांग्रेस के एकाधिकार वाला दौर फिर लौट आया है परन्तु  महज पांच साल बाद मतदाताओं ने राजीव को नकार दिया | उससे ये लगा कि भले ही 1977 में बनी जनता सरकार ज्यादा नहीं चली किन्तु मतदाताओं के मन में ये विश्वास बैठ गया कि केन्द्रीय सत्ता में बदलाव संभव है | 1989 में आई विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार जनता दल नामक एक नये नवेले राजनीतिक कुनबे की अगुआई में बनी जिसमें  राजीव से नाराज होकर बाहर आये कुछ कांग्रेसियों के अलावा बिखरे हुए पुराने समाजवादियों का जमावड़ा था | भाजपा और वामपंथियों के बाहरी समर्थन पर टिकी  वह सरकार महज 11 महीनों में चलती बनी और इस बार भी कारण भाजपा नामक जनसंघ का नया संस्करण ही था   जिसने लालकृष्ण आडवाणी की  राम रथ यात्रा को बिहार में रोके जाने के बहाने उस सरकार से समर्थन वापिस ले लिया | लेकिन 1989 में भाजपा ने हिन्दुत्व को अपनाकर जिस तरह से अपने जनाधार में वृद्धि की वह भारतीय राजनीति में बड़े बदलाव का आधार बना |  उसके बाद की एक चौथाई सदी में  नए – नए प्रयोगों के साथ गठबंधन की राजनीति को राष्ट्रीय स्वीकृति मिलती गई | कांग्रेस और भाजपा दोनों ने इस दौरान बेमेल गठबंधन के जरिये देश की सत्ता हासिल की लेकिन कांग्रेस जहां लगातार कमजोर होती गई , वहीं भाजपा ने उसके विकल्प के तौर पर अपने पैर तेजी से फैलाते हुए व्यवहारिक राजनीति को अपनाया |  हिंदुत्व के अलावा मंडल नामक सोशल इन्जीनियरिंग के फार्मूले को सफलतापूर्वक आजमाते हुए उसने उन अवधारणाओं को तोड़ दिया कि वह शहरों तक सिमटी हुई उच्च जातियों की पार्टी है | इसमें दो मत नहीं हैं कि भाजपा के उत्थान में अटल और आडवाणी की जोड़ी का योगदान भुलाया नहीं जा सकता | रास्वसंघ की विचारधारा से प्रेरित जनसंघ का जब भाजपा के रूप में पुनर्जन्म हुआ तब तक वह अपनी सीमित उपलब्धियों से संतुष्ट रहने वाली पार्टी की बजाय सत्ता हासिल करने की महत्वाकांक्षा से भर उठी थी | और इसीलिये उसने अपने वैचारिक पक्ष को लेकर आक्रामक रुख दिखाया | दीनदयाल उपाध्याय को अपना आदर्श मानने के बावजूद भाजपा ने सत्ता के राजमार्ग पर चलने के लिए उन सभी तौर – तरीकों का निःसंकोच इस्तेमाल किया जो भारतीय राजनीति के लिए चिर – परिचित हो चले थे | हिंदुत्व  और राष्ट्रवाद जैसे नारों के जरिये भारतीय जनमानस में उसने ये विश्वास पैदा कर दिया कि वह व्यक्ति और परिवार आधारित राजनीतिक दलों से अलग ऐसी पार्टी है जो  साफ़ – सुथरी सरकार के साथ ही देश को विकास के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ाते हुए उसकी सुरक्षा का भी समुचित प्रबन्ध करेगी |  1989 के  बाद के कालखंड में भारतीय मतदाताओं ने अनेक राजनीतिक प्रयोग देखे जिनमें डा.मनमोहन सिंह की दस साल चली सरकार भी थी | लेकिन इस दौरान जनता को ये लगने लगा कि केंद्र में ऐसा मजबूत नेता चाहिए जो दबाव और निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर काम कर सके और तब सामने आये नरेंद्र मोदी जो गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए विकास पुरुष के साथ ही हिंदुत्व के प्रखर प्रवक्ता के रूप में भी राष्ट्रीय क्षितिज पर छा गये |  2014 के चुनाव में भाजपा ने उनको प्रधानंमत्री पद का प्रत्याशी बनाया तो उस निर्णय को जनता का आशातीत समर्थन मिला और उसे अपने दम पर लोकसभा में स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ | यही नहीं तो पांच साल तक सरकार चलाने के बाद 2019 में वह  पहले से ज्यादा बहुमत के साथ लौटी |  श्री मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही पार्टी में अटल – आडवाणी की जोड़ी की तर्ज पर मोदी और अमित शाह उभरे जिन्होंने जल्द ही सत्ता और संगठन दोनों पर अपनी पकड़ बना ली | इसे लेकर उँगलियाँ भी उठने लगीं लेकिन जल्द ही ये साबित हो गया कि वे भाजपा को सही मायनों में राष्ट्रीय पार्टी बनाने में कामयाब रहे हैं | जिस कुशलता से इन्होंने उ.प्र में पार्टी को अजेय बना दिया उसी तरह  पूर्वोत्तर में उसका अकल्पनीय विस्तार किया | प. बंगाल में आज भाजपा  मुख्य विपक्षी दल है | देश के बड़े भूभाग पर उसका शासन है | लेकिन ये फैलाव केवल सत्ता हासिल करने तक ही सीमित नहीं रहा , अपितु मोदी – शाह की जुगलबंदी ने भाजपा के मौलिक सिद्धांतों को अमली रूप देने का जो कारनामा कर दिखाया उसकी वजह से ही वह आज एक बड़ी ताकत बनकर उभरी है | जम्मू – कश्मीर से धारा 370 हटाने के साथ ही अयोध्या में राम मंदिर को लेकर चल रहे विवाद के  शान्तिपूर्वक हल हो जाने के अलावा तीन तलाक जैसे मामलों का निपटारा करने से  केंद्र सरकार के प्रति ये विश्वास  दृढ़ हुआ है कि वह ठोस काम करने में सक्षम है | इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि भाजपा ने देश की राजनीति को पूरी तरह बदलकर रख दिया है | सत्ता के प्रति उसकी भूख यद्यपि उसके प्रशंसकों को कचोटती है लेकिन मोदी – शाह के दौर की भाजपा ये जान  चुकी  है कि सत्ता वह साधन है जिसके जरिये वैचारिक पक्ष को बेहतर तरीके से पेश किया जा सकता है | दूसरी बात उसको ये भी समझ में आ गयी है कि सीमित दायरे में रहकर राष्ट्रीय पार्टी नहीं बना जा सकता | वामपंथियों और समाजवादियों के हश्र से सीख लेकर उसने खुद को कांग्रेस के विकल्प के तौर पर पेश करते हुए जब श्री मोदी के माध्यम से कांग्रेस मुक्त भारत का नारा बुलंद किया तो उसका जनता पर जबर्दस्त मनोवैज्ञानिक असर हुआ | निजी तौर पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद के आरोपों से मुक्त रहने के कारण प्रधानमंत्री के प्रति जो विश्वास बना हुआ है उसकी वजह से भी भाजपा को मजबूती मिली है | उ.प्र में योगी  आदित्यनाथ  सरकार की वापिसी ने  मोदी – योगी नामक जिस नये समीकरण को जन्म दिया वह भविष्य का संकेत हैं | जिसमें स्वच्छ छवि वाला मजबूत नेता , प्रभावी प्रशासन , नीतिगत स्पष्टता और वैचारिक प्रतिबद्धता राजनीति के आधार होंगे | भाजपा आज अपना स्थापना दिवस मना रही है | उसके कांग्रेसीकरण होने की चर्चा आम है | दूसरी पार्टियों से आये नेताओं के लिए दरवाजे खुले रखने की नीति के चलते उसके अपने कैडर में नाराजगी भी  है | अनेक राज्यों में सरकारें होने के बावजूद पार्टी में प्रादेशिक नेताओं की वजनदारी कम हुई है जिसकी वजह से उसकी प्रधानमंत्री पर निर्भरता बढ़ती जा रही है | चुनाव जीतने वाली मशीन बनने जैसे कटाक्ष भी उस पर होते हैं | ये भी कहा जाता है कि अब वह पार्टी विथ डिफ़रेंस नहीं रही | लेकिन इस सबके बावजूद देश में जितने भी राजनीतिक दल हैं उनकी तुलना में वैचारिक स्पष्टता के साथ ही राष्ट्रवाद  का भाव  उसकी सफलता का मूल कारण है | हालांकि रास्वसंघ के समर्थन और मार्गदर्शन के बिना ये सम्भव नहीं था | राजनीतिक तौर पर बेहद मजबूत हो जाने के बाद भी भाजपा के विरोधी कम नहीं हैं जिसका प्रमाण 2024 के महा - मुकाबले के लिए विपक्षी गठबंधन बनाए जाने की कवायद है | लेकिन इस बारे में ये कथन उल्लेखनीय है कि जिसकी शक्ति बढ़ती है उसी के शत्रु भी बढ़ते हैं |  

- रवीन्द्र वाजपेयी


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