Monday 25 April 2022

विश्व युद्ध न सही लेकिन उस जैसे ही हालात बन रहे हैं



2019  के उत्तरार्ध से शुरू हुआ वैश्विक संकट खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा | पहले कोरोना ने पूरी दुनिया को हलाकान किया जिससे  सब कुछ ठहर सा गया | बिना एक भी गोली चले ही करोड़ों लोगों की मौत हो गयी | ज्ञान – विज्ञान और तकनीक सब धरे रह गये | लेकिन मनुष्य की संघर्षशीलता ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि उसमें अपने अस्तित्व को बचाए रखने की सनातन प्रवृत्ति आज भी कायम है और उसी के बलबूते मानव जाति लगभग 100 साल बाद आई उस विपदा का सामना कर सकी | लेकिन उसके समाप्त होने के बाद राहत की सांस ठीक से ली जाती  इसके पहले ही रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण किए जाने से पूरी दुनिया एक बार फिर संकट से गिर गयी | जिस तरह कोरोना ने चीन से शुरू होकर पूरी  दुनिया को अपने बाहुपाश में जकड़ लिया ठीक वैसी ही स्थिति रूस – यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न हो गई | कहने को तो ये दो पड़ोसी देशों के बीच की जंग है | भारत और पाकिस्तान  बीते 75 साल में चार बार युद्ध लड़ चुके हैं | चीन के साथ भी 1962 में बड़ी जंग हुई थी | पश्चिम एशिया में इजरायल के गठन के बाद से न जाने कितने बड़े और छोटे युद्ध हो चुके हैं | ईरान और ईराक लगभग एक दशक तक युद्धरत रहे | सीरिया संकट ने भी दुनिया को काफी प्रभावित किया | अमेरिका  भी वियतनाम और अफगानिस्तान में कई दशक तक लड़ाई में उलझा रहा | रूस भी इस देश में लम्बे समय तक काबिज रहा | इस सबके कारण वैश्विक परिस्थितियां प्रभावित भी हुईं  | साठ के दशक में तो क्यूबा को लेकर अमेरिका और सोवियत संघ के बीच परमाणु युद्ध जैसे हालात बन गये थे | लेकिन इन सबका दुनिया की  अर्थव्यवस्था  पर उतना प्रभाव नहीं पड़ा  जितना कोरोना और उसके बाद  रूस – यूक्रेन जंग का हुआ है | कोरोना के कारण बिना युद्ध के ही पूरी दुनिया को खून के आंसू रोना पड़े | मृत्यु का ऐसा तांडव लगभग एक सदी के बाद देखने मिला | चिकित्सा विज्ञान की  समस्त उपलब्धियां एक अदृश्य वायरस के सामने घुटने टेक गईं | हालाँकि उस स्थिति पर भी आख़िरकार काबू पा लिया गया परंतु उसके कारण पूरी दुनिया बरसों पीछे चली गयी | न केवल अर्थव्यवस्था अपितु मानसिकता को भी कोरोना ने प्रभावित किया |  वह दौर  जो  भयावह अनुभव दे गया उनकी स्मृति मात्र विचलित कर देती है | धीरे – धीरे उस माहौल से विश्व उबरने के स्थिति में आया ही था कि रूस ने यूक्रेन पर सैन्य कार्यवाही करते हुए दूबरे में दो आसाढ़ वाले हालात बना दिए | कहने को तो ये दो पड़ोसी मुल्कों के बीच का विवाद है जिसमें जाहिर तौर पर बतौर  महाशक्ति रूस को जीत हासिल हो जाना चाहिए थी किन्तु दो महीने होने को आ रहे हैं लेकिन उसको अब तक मिली सफलता उसकी अपार सैन्य शक्ति के लिहाज से तो नगण्य ही है | हालांकि उसने यूक्रेन को मलबे के ढेर में बदल दिया है | फिर भी  इक्का – दुक्का इलाके हथियाने के सिवाय अब तक उसके हाथ ऐसा कुछ भी नहीं लगा जिसे उपलब्धि कहा जा सके  | इसका कारण ये रहा कि दो देशों का यह युद्ध अप्रत्यक्ष तौर पर लघु विश्व युद्ध का रूप ले बैठा | यूक्रेन द्वारा अमेरिका के प्रभुत्व वाले नाटो नामक सैन्य संगठन का  सदस्य बनने के फैसले के कारण यह स्थिति निर्मित हुई | इसलिए अमेरिका मैदान में भले न कूदा हो लेकिन उसने रूस की आर्थिक मोर्चेबंदी करने के साथ ही यूक्रेन को जिस तरह से आर्थिक और सैन्य सहायता देने की पहल की और उसकी देखा - सीखी उसके गुटीय साथी देशों ने भी उसको जात – पांत से बाहर करने जैसे नीतिगत निर्णय लेकर घेराबंदी कर डाली | इसका सीधा असर दुनिया के आर्थिक व्यवहार पर पड़ा और न सिर्फ पेट्रोल – डीजल तथा गैस अपितु खाद्यान्न तथा तिलहन की समस्या भी उठ खड़ी हुई | चूंकि युद्ध का अंत होता नजर नहीं आ रहा इसलिए पूरी दुनिया चिंता के साथ ही भयग्रस्त बनी हुई है | रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी हिटलर की तरह शेर पर सवार तो गए लेकिन उससे उतरने में उनके भी पसीने छूट रहे हैं | पूरी तरह खंडहर होने के बाद भी यूक्रेन अपने अस्तित्व के लिए आखिरी साँस तक लड़ने का जो जज्बा प्रदर्शित कर रहा है उसे देखते हुए इस संकट के लम्बे खिंचने की आशंका दिन ब दिन प्रबल होती जा रही है | इसके पीछे यूक्रेन की सरकार और जनता की संकल्पशक्ति से ज्यादा अमेरिका और उसके मित्र देशों द्वारा उसे दी जा रही मदद काम कर रही है | इस जंग के लिए रूस पूरी तरह से कठघरे में है लेकिन यूक्रेन के मौजूदा शासक जेलेंस्की भी कम कसूरवार नहीं हैं जो अमेरिका के मौखिक आश्वासन पर रूस जैसी महाशक्ति से ऊंची आवाज में तू – तड़ाक करने की भूल कर बैठे | इस युद्ध का अंतिम नतीजा क्या होगा ये बताने में अच्छे – अच्छे कूटनीतिक विशेषज्ञ असमर्थ हैं | लेकिन इतना जरूर है कि इसकी वजह से चाहे - अनचाहे दुनिया विश्व युद्ध जैसी मुसीबतें झेलने मजबूर हो रही है | मसलन रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के साथ ही विश्व व्यापार का पूरा ढांचा हिल गया है | रूस से कच्चा तेल और अनाज खरीदने वालों पर मुसीबत आ गयी है | इनमें यूरोप के वे देश भी हैं जिन्होंने अमेरिका के दबाव में आकर रूस से रिश्ते तोड़ लिए | इसी तरह रूस इनसे जो कुछ  खरीदता था उसकी आपूर्ति बंद होने से खरीददार और विक्रेता दोनों की व्यवस्था गड़बड़ा गई है | जिन देशों के पास निर्यात लायक वस्तुएं हैं उनके द्वारा आपातकालीन स्थिति के मद्देनजर उसे  रोके जाने से उनके आयातक दिक्कत में आ गये हैं | उदाहरण के तौर पर मलेशिया द्वारा पाम आइल का निर्यात रोके जाने से भारत जैसे देशों में खाद्य तेल का संकट पैदा होने लगा है | सैन्य सामग्री के व्यापार पर भी इस युध्द का असर पड़े बिना नहीं  रहेगा | सबसे बड़ी बात ये होगी कि इस युद्ध में यूक्रेन की हार रूस के राष्ट्रपति पुतिन में जो उन्माद  पैदा करेगी उसका शिकार स्वीडन और फिनलैंड जैसे छोटे पड़ोसी देश हो सकते हैं , जिन्हें पुतिन ने हाल ही में धमकाया भी है | इसके विपरीत यदि रूस लम्बे समय तक युद्ध में फंसा रहा तब  हताशा में उसके हुक्मरान हिटलर की तरह बदहवासी में आत्मघाती कदम उठाकर दुनिया को आग में झोंक सकते हैं | इसके साथ ही चीन में कोरोना की चौथी लहर जिस तरह से आई है उसने एक बार फिर इसके विश्वव्यापी फैलाव की स्थितियां पैदा कर दी हैं |  हालांकि इसकी विकरालता कितनी होगी ये अभी कहना कठिन है लेकिन पिछले अनुभव यदि दोहराए गये तब वह स्थिति बहुत ही दर्दनाक होगी | कुल मिलाकर दुनिया इस समय बहुत ही असमंजस में फंसी है | रूस और यूक्रेन  में युद्ध के समानांतर चीन में कोरोना की  चौथी लहर के पूरे जोर से आ जाने के बाद पूरी दुनिया में दहशत हैं क्योंकि इस बार भी संक्रमण का विस्तार वैश्विक स्तर पर हुआ तब सबसे बड़ा खतरा इस बात को लेकर होगा कि पिछली लहरों के दौरान तो पूरा विश्व कोरोना से लड़ने एकजुट था लेकिन यूक्रेन संकट ने जिस तरह से उसे खेमों में बाँट दिया है उसके कारण उस स्थिति से निपटना आसान नहीं रहेगा | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

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