Monday 11 April 2022

क्षेत्रीय आर्थिक जोन का सुअवसर : चीन की साख घटने का लाभ उठाये भारत



ये संयोग ही है कि भारत के तीन पड़ोसी देश इन दिनों आर्थिक संकट के शिकार हैं | पाकिस्तान में तो सत्ता संघर्ष के कारण फ़िलहाल आर्थिक बदहाली की चर्चा पर विराम लगा हुआ है लेकिन श्रीलंका के दिवालिया होने के बाद नेपाल भी उसी राह पर बढ़ रहा है | श्रीलंका  में राजनीतिक संकट भी उठ खड़ा हुआ है | जनता सत्ताधारियों  को हटाने सड़कों पर उतर रही है | कर्ज के बोझ से  अर्थव्यवस्था के कंधे झुक गए हैं | केन्द्रीय बैंक के मुखिया ने सरकार से कह दिया है कि  उसके काम में दखल देना बंद कर दें | विदेशी मुद्रा का संकट दूर  करने के लिए श्रीलंका सरकार अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज लेने की कोशिश कर रही है | लेकिन इस खस्ता हालत में नया कर्ज किस आधार पर मिलेगा ये देखने वाली बात होगी | दूसरी तरफ नेपाल सरकार ने अपने केन्द्रीय बैंक के गवर्नर को बर्खास्त कर दिया क्योंकि उन्होंने निर्यात और पर्यटन में कमी के कारण विदेशी मुद्रा के भण्डार में कमी के चलते विलासिता और गैर जरूरी चीजों के आयात पर रोक लगा दी | यद्यपि  नेपाल के हालात भले ही श्री लंका जैसे बदतर नहीं हुए हों किन्तु प्रभावी कदम न उठाये गये तो स्थिति और बिगड़ते देर  नहीं लगेगी | हमारे  लिये दोनों देश चिंता का विषय हैं क्योंकि इनके संकट से शरणार्थी समस्या का खतरा है  | श्रीलंका से तो लोगों का तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में आना चल ही रहा है जिनके लिए शरणार्थी शिविर भी बनाये गये हैं | नेपाल से भी भारत आना और आसान है | वैसे भी वीजा जरूरी न होने से बहुत बड़ी  संख्या में नेपाली भारत में स्थायी तौर पर बसे हुए हैं | यदि उसके हालात भी श्रीलंका जैसे हुए तब बतौर शरणार्थी ये संख्या और बढ़ जायेगी जिसका बोझ हमारे कन्धों पर आयेगा | नेपाल के तराई इलाकों में रहने वाले मधेसी तो पूर्वी उ.प्र और बिहार से पुश्तैनी तौर पर जुड़े हुए हैं | इसलिए उनका भारत आकर डेरा जमाना संभावित है | ऐसे में जब कोरोना काल से उबर रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी यूक्रेन संकट का असर पड़ रहा है तब श्रीलंका और नेपाल में गंभीर आर्थिक संकट हमारे लिए दोहरी मुसीबत बन सकता है | शरणार्थी समस्या के अलावा भारत की ये कूटनीतिक मजबूरी है कि वह चीन को इन देशों में अपना प्रभाव पूरी तरह से कायम करने से रोके | उल्लेखनीय है चीनी कर्ज से बुरी तरह दबे श्रीलंका को  भारत ने हाल ही में जो  सहायता दी उससे वहां की सरकार और जनता दोनों में हमारे प्रति जैसा सद्भाव देखने मिल रहा है उसे आगे भी जारी रखने के लिए आवश्यक होगा कि हम  श्रीलंका में अपनी उपस्थिति को और वजनदार  बनायें | इसके लिये ये जरूरी है कि नेकी कर दरिया में डाल वाली  नीति से ऊपर उठकर विशुद्ध व्यवहारिकता को अपनाते हुए श्रीलंका को एहसास कराया जाए कि उसे हमारे प्रति रवैया बदलना होगा | ऐसा करना कठिन भी नहीं हैं क्योंकि भौगोलिक दृष्टि से  बेहद करीब  होने से दोनों देश आपसी रिश्तों में मिठासयुक्त स्थायित्व पैदा कर सकते हैं | मौजूदा सरकार के पूर्व वहां  के शासक भारत समर्थक थे जिन्हें जिताने  मोदी सरकार ने  जबर्दस्त कूटनीतिक  बिसात बिछाई थी | लेकिन वह सरकार ज्यादा नहीं चली  और राजपक्षे परिवार पूरी तरह सत्ता पर कुंडली जमाकर बैठ गया | यद्यपि लिट्टे का खात्मा  कर देश को गृहयुद्ध से बाहर निकालने में महिन्द्रा राजपक्षे ने बहुत ही साहस का परिचय दिया था परन्तु इस कार्यकाल में उनकी सरकार पूरी तरह चीन के शिकंजे में फंस गई | जो विदेशी कर्ज लिया गया उसे ईमानदारी से विकास हेतु व्यय किया जाता तो ये नौबत न आती | यही वजह है कि जनता राजपक्षे परिवार के विरुद्ध उठ खडी हुई है | भारत को इस स्थिति का लाभ उठाकर वहां अपनी समर्थक सत्ता वापिस लाने के लिए कूटनीतिक गोटियां  बिछानी चाहिए ताकि  चीन इस संकट की आड़ में श्रीलंका को अपना उपनिवेश बनाने की योजना में सफल न हो सके | ऐसी ही रचना नेपाल को लेकर भी जरूरी है क्योंकि चीन के दबाव में वहां की मौजूदा सरकार ने सीमा विवाद पर भारत के साथ सैन्य टकराव जैसा दुस्साहस किया था | वह भी तब जब लद्दाख के गलवान सेक्टर में भारत और चीन के बीच युद्ध की स्थिति बनी हुई  थी | इन सब बातों को ध्यान में रखकर  भारत के लिए जरूरी  है कि नेपाल , श्रीलंका , बांग्ला देश , म्यांमार , मालदीव , मॉरीशस के साथ एक व्यापारिक जोन बनाये | इसके चलते ये सभी देश बड़ी ताकतों के शिकंजे से आज़ाद हो सकेंगे | भारत को इन्हें ये एहसास दिलाना होगा कि वह इनके लिए उसी तरह आर्थिक संरक्षक बन सकता है जिसका एहसास चीन कराता है | ये देश यदि भारत के साथ एक क्षेत्रीय  अर्थव्यवस्था कायम करते हैं तब उसके लाभ देखकर पाकिस्तान भी देर - सवेर उसमें शामिल होना चाहेगा | इस काम में चीन जरूर अड़ंगे लगाएगा लेकिन जैसा  संकट श्रीलंका , नेपाल और पाकिस्तान झेल रहे हैं उसे देखते हुए उनको ये लगने लगा है कि भारत के साथ जुड़ना उनके लिये हर दृष्टि से लाभदायक रहेगा | बीते कुछ सालों  से ये दावा अक्सर सुनाई देता है कि भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था होने के साथ ही सैन्य शक्ति भी बन गया है | चीन के साथ  टकराव का जवाब उसने जिस कड़ाई के साथ दिया उसके कारण  भारत का मान बढ़ा है | यूक्रेन संकट के दौरान अमेरिका और यहाँ तक कि चीन की नीति  जिस तरह गैर भरोसेमंद रही उससे उनकी विश्वसनीयता में कमी आई जबकि भारत ने अपना रुख पहले दिन से बहुत ही  संतुलित रखते हुए किसी  दबाव में आने से परहेज किया | इससे कूटनीतिक क्षेत्र में हमारी साख और धाक दोनों बढ़ीं जिसकी पाकिस्तान के निवर्तमान प्रधानमन्त्री इमरान खान तक ने खुलकर तारीफ़ की | भारतीय विदेश नीति में हाल के वर्षों में जो परिपक्वता और आत्मविश्वास देखने मिला उसके बाद ये सोचना गलत न होगा कि हम क्षेत्रीय शक्ति के तौर पर खुद को स्थापित करते हुए अपने पड़ोसी देशों में चीन का विकल्प बनें | कोरोना संकट के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो बड़े बदलाव हो रहे हैं उनके कारण भारत की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो सकती है | लेकिन हमें अपने इर्द - गिर्द अपना आभामंडल और चमकदार बनाना होगा | कोरोना के कारण विश्वसनीयता खोने से चीन को आर्थिक दृष्टि से काफी नुकसान हुआ है | कोरोना की नई लहर आने से वहाँ अंदरूनी हालात और खराब हो रहे हैं | शंघाई जैसे व्यावसायिक महानगर में लॉक डाउन है और खाने के पैकेट लूटे जाने की स्थिति है | भारत के लिए यह स्वर्णिम अवसर है जिसका लाभ उसे लेना चाहिए |

- रवीन्द्र वाजपेयी

 

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