Monday 18 April 2022

प्रशांत के आने से और भी अशान्त हो सकती है कांग्रेस



कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में परिवर्तन की मांग को लेकर कुछ असंतुष्ट नेता सामने आये थे | जी 23 नामक एक समूह भी बना जिसकी अनेक बैठकें हो चुकी हैं | हाल ही में इसके नेता गुलाम नबी आजाद की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से हुई मुलाकात के बाद ये कयास लगे थे कि उनको राज्यसभा भेजकर असंतुष्टों की मुहिम ठंडी कर दी जायेगी | इसके बाद श्री आजाद को लेकर जी 23 में मतभेद उभरने की बात भी सुनने मिली | दरअसल इस समूह के अधिकतर सदस्य राज्यसभा के जरिये ही राजनीति करते आये हैं | उनको लग रहा है कि राज्यसभा से बाहर रहने पर उनकी वजनदारी खत्म हो जायेगी | लेकिन  राज्यों में  तेजी से सिमटने के कारण कांग्रेस के पास राज्यसभा में भेजने लायक विधायकों का संख्याबल भी नहीं है | यद्यपि केन्द्रीय नेतृत्व  को लेकर चली  आ रही अनिश्चितता से पार्टी के साधारण कार्यकर्ता भी चिंतित हैं | 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी द्वारा अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दिए जाने के बाद से उनकी माताजी कार्यकारी  अध्यक्ष बनी हुई हैं | यद्यपि महत्वपूर्ण फैसलों में अभी भी राहुल का दखल रहता है | लेकिन  ये कहना गलत न होगा कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को लेकर कायम  असमंजस का असर  उसके आभामंडल में निरंतर कमी आने के तौर पर दिखाई दे रहा है | प. बंगाल के बाद उ.प्र के विधानसभा चुनाव में जो दुर्गति हुई उससे उसके अस्तित्व पर ही सवाल उठ खड़े हुए हैं | ममता बैनर्जी ने तो उसे तृणमूल में विलीन करने जैसी बात तक कह डाली | इस सबके बावजूद शीर्ष स्तर पर संगठनात्मक ढांचे के विधिवत गठन की बजाय अभी भी गांधी परिवार येन केन प्रकारेण पार्टी को अपने शिकंजे में रखना चाह रहा है | इसका ताजा प्रमाण है चुनाव प्रबन्धन विशेषज्ञ प्रशांत किशोर के कांग्रेस में आने की खबरें | गत सप्ताह उन्होंने गांधी परिवार के समक्ष 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीतिक कार्ययोजना प्रस्तुत करते हुए सुझाव दिया कि पार्टी   तकरीबन 370 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरे जहाँ वह मुकाबला करने में सक्षम है और बाकी सीटें क्षेत्रीय दलों के लिए छोड़कर अपनी शक्ति के अपव्यय से बचे | उन्होंने और भी कुछ  सुझाव पार्टी नेतृत्व को दिए | हालाँकि उनके कांग्रेस में आने की अटकलें लम्बे समय से लगाई जा रहे हैं | 2017 के विधानसभा चुनाव में पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और उ.प्र में राहुल गांधी ने उनकी पेशेवर सेवाएँ ली थीं | पंजाब में तो कांग्रेस जीती लेकिन उ.प्र में उसका सफाया हो गया | उसके बाद प्रशांत अलग – अलग राज्यों में विभिन्न पार्टियों के लिए चुनावी रणनीति बनाते रहे | गत वर्ष हुए प. बंगाल चुनाव के चुनाव में ममता बैनर्जी की धमाकेदार जीत में बतौर रणनीतिकार उनकी शोहरत बुलंदी पर जा पहुँची | उसके पहले वे बिहार में नीतीश कुमार के साथ जनता दल ( यू ) में रह चुके थे | ममता को राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी का विकल्प बनाने के लिए आगे लाने के पीछे उन्हीं का दिमाग था | उसी सिलसिले में वे शरद पवार सहित अन्य विपक्षी  नेतओं से भी मिले | तृणमूल को गोवा विधानसभा चुनाव में उतारने में भी वही सोच रही |   लेकिन इसी बीच उनके ममता से रिश्ते खराब होने के खबरें भीं आने लगीं | इन सबसे लगता है प्रशांत की ज्यादा देर तक किसी से जमती नहीं है | इसकी  वजह संभवतः उनका गैर राजनीतिक होना है , वरना 2014 में श्री मोदी के चुनाव अभियान की रणनीति बनाने के बाद उनके भाजपा से मतभेद न हुए होते | यद्यपि कांग्रेस में उनके प्रवेश की अब तक पुष्टि नहीं हुई लेकिन इसकी चर्चा मात्र से काफी हलचल मच गई है | कहा जाने लगा है कि श्री किशोर ने गांधी परिवार से अपनी ये  शर्त मनवा ली है कि वे राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में आमूल बदलाव करेंगे | कांग्रेस पर नजर रखने वाले विश्लेषकों  के अनुसार प्रशांत को लाने का उद्देश्य पार्टी पर गांधी परिवार के आधिपत्य को बनाये रखना है  | ये बात बिलकुल सही है कि कांग्रेस के प्रथम परिवार का दरबारी बनने वाली प्रवृत्ति खत्म होती जा रही है | नई पीढ़ी के नेता  समझ गये हैं कि परिवार का करिश्मा खत्म हो चुका है | श्रीमती गांधी अस्वस्थता की वजह से न ज्यादा समय दे पाती हैं और न ही  परिश्रम करना उनके लिए संभव रहा | उत्तराधिकारी के तौर पर उनहोंने बेटे राहुल को पार्टी की कमान सौंपी परंतु वे बुरी तरह विफल रहे | उनके बाद प्रियंका वाड्रा ने परिवार के प्रतिनिधि के रूप में उ.प्र की बागडोर संभाली लेकिन वे भी असफल साबित हुईं | ऐसा लगता है श्रीमती गांधी अपनी संतानों की क्षमता को भांप गई  हैं और दूसरी तरफ परिवार के वफादार नेता या तो बढ़ती आयु या फिर असंतुष्ट होकर किनारा करते जा रहे हैं | राहुल के आगे आने पर युवा नेताओं की जो टोली नजर आने लगी थी वह भी बिखर चुकी है | प्रियंका अपने भाई की तुलना में तेज – तर्रार तो हैं लेकिन  राजनीति की ज़मीनी सच्चाइयों से अनभिज्ञ होने की वजह से वे भी नाकामयाब साबित हुईं | इसका सबसे बड़ा खामियाजा ये हो रहा है कि कांग्रेस से जाने वालों की तो कतार लगी हुई है परन्तु उसमें आने वाले नजर नहीं आ रहे | राहुल के करीबी कुछ युवा नेता भाजपा में जा चुके हैं और बाकी के भी सुरक्षित भविष्य के लिए विकल्प तलाश रहे हैं | ऐसे में प्रशांत यदि पार्टी में आते हैं और गांधी परिवार उनको बड़े बदलाव की छूट देता है तब जी 23 की तरह असंतुष्टों के नए समूह सामने आ सकते हैं | सही बात ये है कि कांग्रेस इस समय वैचारिक दृष्टि से शून्य हो चुकी है | गांधी परिवार पर सब कुछ छोड़ देने की गलती से हुआ नुक्सान  इतना बड़ा हो चुका है कि उसकी भरपाई कृत्रिम तरीके से नहीं  की जा सकती | सबसे बड़ी बात ये है कि श्री किशोर की अपनी कोई विचारधारा तो है नहीं | भाजपा , जनता दल  ( यू ) , तृणमूल , द्रमुक आदि के लिए वे चुनावी प्रबंधन कर चुके हैं | नीतिश कुमार ने तो उनको अपनी पार्टी में पद भी दिया | लेकिन वहां भी वे टिके नहीं और ममता के साथ जुड़ गए | कहते हैं प. बंगाल के स्थानीय निकाय चुनावों हेतु प्रत्याशी चयन में उनके साथ टकराव के बाद प्रशांत नई नाव में सवार होना चाहते हैं और कांग्रेस ही अब ऐसी पार्टी है जिसमें  उनको जगह दिख रही है | हालाँकि बतौर चुनाव रणनीतिकार तो वे ठीक हैं लेकिन पार्टी संगठन में उठापटक करने पर उनका विरोध होना स्वाभाविक है | ऐसे में बड़ी बात नहीं प्रशांत के आने से कांग्रेस और अशान्त हो जाए क्योंकि जब गांधी परिवार के एकाधिकार को चुनौती मिल रही हो तब नए – नए पेशेवर को कितना बर्दाश्त किया जावेगा ये सोचने वाली बात है |  

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment