Thursday 21 April 2022

यूक्रेन संकट भारतीय किसानों के लिए वरदान बना



आज की दुनिया एक दूसरे से कितनी निकटता से जुड़ गई है इसका ताजा उदाहरण है यूक्रेन संकट | दो देशों के बीच यद्ध का ये पहला मौका नहीं है | अमेरिका भी वियतनाम और  अफगानिस्तान में एक दशक से भी ज्यादा लड़ता रहा । ईरान और ईराक के बीच बरसों जंग चली  | हाल के वर्षों में  सीरिया भी युद्ध की विभीषिका में लम्बे समय तक फंसा रहा | लेकिन यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने जिस तेजी से विश्व के शक्ति और आर्थिक संतुलन को बदला वह चौंकाने वाला है | इसका प्रत्यक्ष प्रमाण भारत में देखने मिल रहा है जिसकी अर्थव्यवस्था को इस संकट ने नए अवसर दे दिए हैं | बीते साल भारत में किसान आन्दोलन सबसे बड़ी खबर हुआ करती थी | पूरे देश में किसानों की  मांगों के  पक्ष – विपक्ष में लम्बी बहस चलती रही  | टीवी चैनलों के लिए वह आंदोलन टीआरपी बटोरने का जरिया बन गया | राकेश टिकैत खबरों में छाये  रहने वाले प्रमुख व्यक्तित्वों में शुमार हो गये | दबाव इतना ज्यादा बना कि आखिरकार प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को उन कृषि कानूनों को वापिस लेना पड़ गया जो उनके लिये नाक का सवाल बन गये थे | उस निर्णय को किसान आन्दोलन की जीत माना गया | लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी ) का मसला अभी तक उलझा हुआ है और किसान संगठन धमकी दे चुके हैं कि वायदे के अनुसार केंद्र सरकार ने जल्द इस बारे में नीतिगत निर्णय नहीं लिया तो  दोबारा आन्दोलन किया जावेगा | वर्तमान में रबी फसल की सरकारी खरीद देश भर में चल रही है | अब तक होता ये था कि किसान शिकायत करते थे कि अनाज खरीदने की सरकारी प्रक्रिया में विलम्ब होता है | लेकिन इस साल उल्टा हो रहा है | गेंहू की पैदावार वाले बड़े राज्य पंजाब , हरियाणा और म.प्र में सरकारी खरीद अपने लक्ष्य से तकरीबन 40 फ़ीसदी पीछे चल रही है | जो किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज बेचने के लिए लालायित रहता था , उसकी पैदावार खरीदने के लिए निजी व्यापारी और कम्पनियां खेतों पर ही आकर सरकारी खरीद  से ज्यादा दाम दे रही हैं | किसान के लिए तो ये मानो मुंह मांगी मुराद है | उसने सपने में नहीं सोचा था कि उसे मंडी में जाए बिना घर बैठे इतना ज्यादा दाम  मिल जाएगा | किसान आन्दोलन के दौरान सरकार पर सबसे बड़ा आरोप ये लगाया जाता था कि वह किसानों को व्यापारियों के चंगुल में फंसना चाह रही थी | अडानी समूह द्वारा पंजाब और हरियाणा में बनाये जा रहे अत्याधुनिक गोदामों का भी किसान संगठन विरोध कर रहे थे | कृषि कानूनों के अंतर्गत कृषि उपज मंडी की अनिवार्यता खत्म करते हुए किसान को खुले बाजार में बेचने की जो छूट दी गई थी उसे लेकर ये प्रचारित किया गया कि मंडियां बंद करने के इरादे से वैसा किया जा रहा है | आन्दोलन खत्म होने के बाद देश में कुछ राज्यों के जो चुनाव हुए उनमें किसान आन्दोलन को मुद्दा बनाने की कोशिश भी हुई लेकिन भाजपा को मिली सफलता ने साबित कर दिया कि दिल्ली में एक साल तक चले धरने  को विपक्षी राजनीतिक नेताओं का समर्थन भले मिलता रहा लेकिन जनता ने उसके प्रति रूचि नहीं दिखाई | संयोगवश यूक्रेन संकट के कारण वैश्विक हालात जिस तेजी से बदले उसने भारत के किसानों की किस्मत का दरवाजा भी खोल दिया | उसकी उपज खेत में ही न्यूनतम समर्थन मूल्य से कहीं अधिक पर खरीदने वाले आ रहे हैं | इसका परिणाम सरकारी खरीद पर पड़ रहा है | सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ – साथ किसी भी आपात स्थिति के लिए किये जाने वाले भण्डारण के लिए ही प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर किसानों से खरीदी की जाती है | किसान संगठन इस बात का दबाव बनाते आये हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी स्वरूप देकर उससे कम पर खरीदने वाले को दण्डित किये जाने का प्रावधान हो | लेकिन ऐसा हो पाता उसके पहले ही बाजार की जिन ताकतों के विरुद्ध किसान नेता आवाज उठाया करते थे वे ही किसानों की झोली भरने आ रही हैं और किसान भी उम्मीद से ज्यादा दाम मिलने पर खुशी – खुशी उन्हें अपनी उपज बेच रहे हैं | हालांकि यह स्थिति स्थायी रहेगी ये कहना जल्दबाजी होगी  क्योंकि यह यूक्रेन संकट का प्रतिफल  है | लेकिन इतना जरूर  कि कम से कम एक वर्ष तो इसका असर रहेगा और तब तक यदि भारत के गेंहू की गुणवत्ता वैश्विक स्तर पर मान्य हो गई तब ये उम्मीद की जा सकेगी कि हमारे कृषि उत्पादों के लिए दुनिया के बाजार स्थायी तौर पर खुल गए हैं | और  ऐसा हो सका तब किसानों के लिए खुशहाली के दरवाजे खुलने में देर नहीं लगेगी | बीते वित्तीय वर्ष में भारत से  चावल का रिकॉर्ड निर्यात होने के बाद हमारे गेंहू की वैश्विक मांग वाकई उत्साह बढ़ाने वाली है | सरकारी खरीद के लालच में ज्यादा उत्पादन करने की वजह से ही किसान परेशानी में पड़ता रहा है | सरकार भी एक सीमा तक ही खरीद पाती है क्योंकि उसकी भण्डारण क्षमता सीमित है | हर साल लाखों टन अनाज इसी कारण सड़ जाता है जिसे औने – पौने दाम पर शराब बनाने वाले खरीदते हैं | सरकारी खरीद में होने वाला भ्रष्टाचार भी नासूर बन गया है | ऐसे में किसान को खुले बाजार में अच्छा मूल्य मिलने लगे तो बहुत सारी समस्याएँ खत्म हो जायेंगी | वैसे भी जिस काम में सरकारी दखल होता है वहां भ्रष्टाचार भी खरपतवार की तरह उग आता है | अनाज की सरकारी खरीद और सार्वजानिक वितरण प्रणाली में होने वाला भ्रष्टाचार किसी से छिपा नहीं है | हालाँकि मौजूदा हालात में राकेश टिकैत और उन जैसे अन्य किसान नेता मन ही मन कुढ़ रहे होंगे क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य का उनका मुद्दा फिलहाल तो ठंडा पड़ता दिखाई दे रहा है | जिन व्यापारियों और निजी कंपनियों को साल भर जमकर गलियां दी गईं वे ही आज खेतों से सीधे अनाज खरीदकर उम्मीद से ज्यादा दाम दे रहे हैं | देखना ये है कि 'आन्दोलन होगा' की धमकी देने वाले किसान नेता इस स्थिति में क्या कदम उठाते हैं ?

-रवीन्द्र वाजपेयी

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