Saturday 16 April 2022

खाद्यान्न निर्यात खोल सकता है तरक्की के नए द्वार



आपदा में भी अवसर तलाशने वाले ही उस पर विजय हासिल कर पाते हैं | ये बात कोरोना काल के बाद के विश्व व्यापार में भारत की बढ़ती मौजूदगी से साबित हो रही है | हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाईडेन के साथ बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कहा था कि  भारत दुनिया को खाद्यान्न उपलब्ध करवाने में सक्षम है | विशेष रूप से गेंहू के निर्यात पर उन्होंने जोर भी दिया | इस प्रस्ताव के पीछे निश्चित रूप से यूक्रेन संकट ही है | उल्लेखनीय है यूक्रेन और रूस गेंहू के सबसे बड़े निर्यातक हैं किन्तु युद्ध के कारण वे मुश्किल में पड़ गये | रूस पर जहां  अमेरिका सहित तमाम  देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये वहीं यूक्रेन में सब दूर तबाही का आलम है | ऐसे में गेंहू की आपूर्ति खतरे में पड़ने से भारत की तरफ सबकी निगाहें घूमने लगीं | अब तक उसके पड़ोसी देश ही मुख्य रूप से गेंहू के खरीददार थे लेकिन ताजा जानकारी के अनुसार मिस्र ने 10 लाख टन गेंहू भारत से खरीदने का सौदा किया है | चालू वित्त वर्ष में उसे 20 लाख टन की आपूर्ति और किये जाने के प्रयास जारी हैं |  यूक्रेन संकट के शुरू होते ही देश में गेंहू की कीमतों में जो उछाल आया उसकी वजह वैश्विक मांग ही है  | गत वर्ष हुए किसान आन्दोलन के दौरान इस बात का बड़ा प्रचार हुआ था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर होने वाली सरकारी खरीद का आंकड़ा उत्पादन की तुलना में बहुत ही कम होने से किसान को नुकसान उठाना पड़ता है | उस समय भी ये बात सामने आई थी कि खाद्यान्न उत्पादन तो साल दर साल बढ़ता जा रहा है लेकिन उस अनुपात में खपत न होने से किसान और सरकार दोनों के सामने समस्या पैदा होती है | अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में चूंकि हर  चीज के मानक तय रहते हैं इसलिए भी निर्यात करने में तरह – तरह की रुकावटें आती रही हैं | लेकिन कोरोना के बाद निर्यात को लेकर बनाई जा रही नीतियों में वैश्विक मानदंडों पर भी भारतीय खाद्यान्नों के खरे साबित होने पर ध्यान दिया जाने लगा | इसीलिये चीन की  अपेक्षा बीते कुछ समय से भारत से चावल निर्यात में काफी वृद्धि हुई | इसी तरह अफगानिस्तान से सामान्य रिश्ते न होने के बावजूद उसने हमारे गेंहू को पाकिस्तान पर तरजीह दी |  गौरतलब है कि दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गेंहू उत्पादक होने के बाद भी बतौर निर्यातक हमारी हिस्सेदारी महज 1 प्रतिशत ही है जो कृषि प्रधान देश होने के नाते शोचनीय है | वाणिज्य मंत्रालय इसीलिये संभावित बाधाओं को दूर करने में जुट गया है और उस आधार पर  ये उम्मीद  बढ़ रही है कि  इस मौसम में भारत से एक करोड़ टन गेंहू विदेश जाएगा | यद्यपि इस कार्य में निजी क्षेत्र की कम्पनियाँ ही मुख्य भूमिका में रहेंगी जिन्होंने गेंहू उत्पादन में अग्रणी राज्यों पंजाब , हरियाणा और म.प्र में खरीदी शुरू भी कर दी है | ये स्थिति निश्चित तौर पर उम्मीदें जगाने वाली है | विशेष रूप से इसलिए क्योंकि किसी अन्य   वस्तु की अपेक्षा भारत में कृषि के बारे  में उपलब्ध  ज्ञान और अनुभव अकल्पनीय प्रगति में सहायक है | खेती के क्षेत्र में आधुनिक तकनीक के आगमन के बावजूद हमारी  परम्परागत जैविक खेती गुणवत्ता के मापदंड पर वैश्विक अपेक्षाएं पूरी करने में सक्षम है | प्रधानमंत्री द्वारा गेंहू के निर्यात की बात  कहने पर किसान आन्दोलन के समर्थक के तौर पर केंद्र सरकार से रुष्ट चल रहे मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने तंज कसा कि क्या गेंहू प्रधानमंत्री का है ? अन्य कुछ किसान नेता भी गेंहू के निर्यात की संभावनाएं बढ़ती देख खीझ निकालते देखे गये | इसका कारण ये है कि निर्यात के लिए खाद्यान्न की खरीदी निजी कम्पनियाँ ही करेंगीं जिनके विरोध में किसान आन्दोलन के दौरान बहुत कुछ कहा गया | श्री मलिक ने भी अम्बानी और अडानी को श्री मोदी का मित्र बताकर अपनी भड़ास निकाली | लेकिन इस सबसे अलग हटकर देखें तो वैश्विक बाजारों में भारत के कृषि उत्पादों का जाना दूसरी हरित क्रांति का शुभारम्भ हो सकता है | किसानों की तमाम समस्याओं का हल भी निर्यात में वृद्धि से संभव होगा | सबसे बड़ी बात ये है कि कृषि उत्पादन में प्रति वर्ष रिकॉर्ड बढ़ोतरी होने से सरकारी खरीद और भंडारण बड़ी समस्या बनती जा रही है | किसान आन्दोलन के दौरान कुछ उद्योगपतियों द्वारा हरियाणा एवं पंजाब में बनाई गईं अत्याधुनिक गोदामों में तोड़फोड़ भी की गई | इसका कारण किसान नेताओं द्वारा किया गया ये प्रचार था कि सरकार कृषि उपज मंडियों को खत्म कर किसानों को व्यापारियों और उद्योगपतियों के शिकंजे में फंसाने जा रही है | लेकिन धीरे – धीरे उस प्रचार की हवा निकल गई | अब जबकि देश भर में सरकारी खरीद के साथ ही निजी कम्पनियाँ बड़े पैमाने पर गेंहूं की  खरीद करने में जुटी हुई हैं तब किसानों के लिए कोरोना काल के बाद का समय खुशखबरी लेकर आया है | यूक्रेन संकट जिस तरह से उलझता जा रहा है उसकी वजह से ये सोचना  गलत नहीं होगा कि ये स्थिति आगामी कुछ सालों तक जारी रहेगी | यूक्रेन में जिस पैमाने पर बर्बादी हुई उसे देखते हुए दोबारा खड़े होने में उसे लम्बा समय लगेगा , वहीं रूस और अमेरिकी गुट के देशों की शत्रुता जो रूप ले चुकी है उसे देखते हुए आर्थिक प्रतिबंध शीतयुद्ध की शक्ल अख्तियार करने की तरफ बढ़ रहे हैं | भारत के कृषकों के लिए ये स्वर्णिम अवसर है वैश्विक बाजारों में छा जाने का | यदि हम इन परिस्थितियों का लाभ ले सकें तो किसानों की मेहनत से उत्पन्न होने वाला अनाज वाकई सोना कहलाने लायक हो जाएगा | ये कहना गलत नहीं है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का जो दबदबा बढ़ा है उसके पीछे खाद्यान्न आत्मनिर्भरता का बड़ा योगदान है | सैन्य  सामग्री के लिए हम जरूर विदेशों पर निर्भर हैं लेकिन अपनी जरूरत से कहीं अधिक  अनाज भारत में पैदा  होने से अब हमें किसी भी संकट के समय उसकी किल्लत से नहीं  जूझना पड़ता | यूक्रेन संकट ने संभावनाओं के नए दरवाजे खोल दिये हैं | ऐसे में खाद्यान्न निर्यात को लेकर दिखाई दे रहे अवसर यदि  मूर्तरूप लेते हैं तो यह किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के साथ ही राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए किसी सौगात से कम नहीं होगा | 

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment