Wednesday 20 April 2022

गुलामी रोकने की शुरुआत मंत्रियों के बंगलों से हो



म.प्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों नए अवतार में दिखाई दे रहे हैं | मंत्रियों को सलामी देने वाली अंग्रेजी राज की प्रथा को खत्म करने के बाद उन्होंने पुलिस अधिकारियों के घर पर बेगारी कर रहे पुलिस कर्मियों को हटाकर थानों में तैनात किये जाने का फैसला गत दिवस किया | प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग तीन हजार पुलिस वाले आला अधिकारियों के बंगलों पर चौकीदारी या घरेलू काम के लिए लगाये गये हैं | शासकीय नियमों के अनुसार अधिकारियों को अर्दली की सुविधा मिली हुई है | लेकिन अनधिकृत तौर पर उनके बंगलों में नौकर और चौकीदार के तौर पर चपरासियों और सिपाहियों की तैनाती खुले आम देखी जा सकती है | मुख्यमंत्री ने ये भी स्वीकार किया कि थानों में पुलिस बल की कमी है ऐसे में अधिकारियों के घरों पर काम कर रहे पुलिस वालों को हटाना जरूरी है | लेकिन पुलिस अधिकारी ही नहीं वरन अन्य शासकीय विभागों के अधिकारियों ने भी नियम विरुद्ध अपने घरों में कर्मचारी लगा रखे हैं | दैनिक वेतन भोगी चतुर्थ वर्ग के कर्मचारी के लिए तो ऐसी बेगारी करना मजबूरी हो जाती है | ये कहना भी गलत न होगा कि  सरकारी अफसरी के सबसे बड़े आकर्षण में घूस के बाद चपरासी जैसी सुविधा भी है | दरअसल हमारे देश में शासकीय सेवा के अधिकतर नियम आज भी ब्रिटिश सत्ता के ज़माने के हैं | ये कहना भी गलत न होगा कि सरकारी अधिकारी के दिमाग में अंग्रेजी दौर की अकड़ विद्यमान है | इसका असर प्रशासन में भी नजर आता है | लोकतान्त्रिक प्रणाली के बावजूद लोक सेवक कहलाने वाला अधिकारी वर्ग आज भी श्रेष्ठता के भाव से भरा हुआ है | ऐसे में शिवराज सिंह  का उक्त फैसला वाकई स्वागतयोग्य है | लेकिन बेहतर होता इसकी शुरुवात वे मंत्रियों के बंगलों से करते जिनको खुश करने के लिए उनके मातहत अधिकारी कर्मचारियों को उनके बंगलों में सेवा हेतु भेज देते हैं | शायद ही कोई मंत्री होगा जिसके शासकीय निवास पर सरकारी कर्मचारी न तैनात हों | हालांकि एक हद तक ये जरूरी भी है लेकिन सेवा शर्तों के बाहर जाकर सरकारी कर्मचारियों से बेगारी करवाना किसी भी  दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता | हाल  ही में आम आदमी पार्टी की  सरकार ने पंजाब में भी पुलिस को वीआईपी सुरक्षा से हटाकर थानों में पदस्थ करने का निर्णय किया ताकि आम  जनता की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके | म.प्र के मुख्यमंत्री स्वयं तो सादगी पसंद और जमीन से जुड़े नेता हैं लेकिन उनकी सरकार के  अधिकतर मंत्रियों के रहन सहन में राजसी ठाट – बाट नजर आता है |  उनके बंगलों पर बेगारी करने वाले कर्मचारियों की फ़ौज किसी से छिपी नहीं है | जिस तरह अधिकारियों के घरों पर तैनात पुलिस वालों की वजह से थानों में पुलिस बल की कमी अनुभव की जाती है उसी तरह मंत्रियों और अन्य विभागीय  अधिकारियों के बंगलों की स्थिति भी है | इसके अलावा सरकारी वाहनों का दुरूपयोग भी सरकारी खजाने पर बड़ा बोझ है | हर बंगले पर एक से ज्यादा वाहन मय ड्रायवर के खड़े नजर आते हैं | यदि मंत्री के पास एक से ज्यादा विभाग हैं तब वह उन सबके वाहनों का उपयोग करता है | अधिकारी तो अंग्रेजी राज वाली मानसिकता से बाहर आने को तैयार ही नहीं हैं | ऐसे में श्री चौहान का फैसला कितना कारगर हो पायेगा ये बड़ा सवाल है | भोपाल में तो सत्ता की मौजूदगी हर जगह दिख जाती है लेकिन जिला स्तर पर भी नेताओं और अफसरों का गठजोड़ सामंतशाही का नजारा पेश करने में पीछे नहीं रहता | कलेक्टर तो खैर बड़ी बात है किन्तु पटवारी तक इस तरह पेश आता है मानों वह मालिक हो और आम जनता उसकी गुलाम | मुख्यमंत्री ने पहले सलामी और अब गुलामी बंद करने का जो साहस दिखाया वह निश्चित रूप से स्वागतयोग्य है लेकिन उनका ये निर्णय पूरी तरह लागू हो ये भी उन्हें देखना होगा क्योंकि सचिवालय में लिए गये अच्छे फैसले भी निचले स्तर तक आते – आते अपना असर खोने लगते हैं | सरकारी अधिकारी चाहे वह पुलिस का हो या अन्य किसी विभाग का , इतनी आसानी से मुफ्त में उपलब्ध  सुख और सुविधाओं को छोड़ देगा , ये विश्वास कर पाना कठिन है | बेहतर हो मंत्रियों के बंगलों से इसकी शुरुवात की जावे ताकि अधिकारियों पर भी दबाव बने , वरना कागजों में तो अधिकारियों के बंगलों पर चल रही बेगारी खत्म दिखाई देगी लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत रहेगी | रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर राज्य भारी कर्ज में डूबे हैं | मुफ्त की सुविधाएँ बांटकर खजाने को जिस बेरहमी के साथ खाली किया गया उसकी वजह से उनकी अर्थव्यस्था खतरे के निशान को छूने लगी है | ऐसे में सरकारी खर्च कम करने की जरूरत है और उसके लिए मंत्रियों के बंगलों की साज - सज्जा पर होने वाले खर्च को रोकने के साथ ही उनमें तैनात कर्मचारियों में कमी भी जरूरी है | सही  बात ये है कि जनता के धन पर राजसी वैभव भोगने में नेता और नौकरशाह दोनों एकजुट हैं | नेताओं के लिए नियम विरुद्ध सुख – सुविधाओं का इंतजाम कर उसकी आड़ में नौकरशाह अपनी शानो – शौकत का भी जुगाड़ कर लेते हैं | ऐसे में श्री चौहान ने सलामी और गुलामी के विरुद्ध जो कदम उठाये हैं वे तभी कारगर हो सकेंगे जब सत्ता में बैठे नेताओं की ठसक में कमी लाई जाए | मंत्रियों और अधिकारियों को सुरक्षा और सुविधा उनके पद की जिम्मेदारियों के लिहाज से मिलनी ही चाहिए लेकिन ये ध्यान रखा जाना भी जरूरी है कि इनका दुरूपयोग न हो और इनकी वजह से अनावश्यक खर्च भी न बढ़े | शिवराज सिंह निश्चित रूप से आगामी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मोर्चेबंदी में जुटे हुए हैं और उसके लिए वे आये दिन ऐसे निर्णय ले रहे हैं जिनसे उनकी सरकार की छवि जनमानस में उज्ज्वल हो | जनहित की योजनाओं के लिए तो उनकी सरकार काफी लोकप्रिय है लेकिन प्रशासनिक अराजकता वह धब्बा है जो मिटाए नहीं मिट रहा | ऐसे में मुख्यमंत्री ने पुलिस अधिकारियों के बंगलों में चल रही गुलामी या बेगारी को खत्म करने का जो फरमान निकाला वह सही कदम तो है लेकिन उससे किसी चमत्कार की उम्मीद करना जल्दबाजी होगी | जब तक शासन और प्रशासन दोनों में बैठे महानुभाव सादगी और सरलता को नहीं अपनाते तब तक वह सुधार संभव नहीं जो वे चाहते हैं | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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