Tuesday 26 April 2022

नेता , नौकरशाह और भूमाफिया की मिलीभगत से बनती हैं अवैध कालोनी



सर्वोच्च न्यायालय का ये कहना बहुतों को नागवार गुजरा होगा कि  अवैध कालोनियां शहरी विकास  के लिए खतरा हैं | सरकारी के साथ ही निजी जमीनों पर नियम विरुद्ध बसाई गईं कालोनियां निश्चित रूप से किसी भी शहर की शक्ल बिगाड़ देती हैं | वैसे तो न्यायालय के सामने तेलंगाना , आंध्र  और तमिलनाडु संबंधी  याचिका विचारार्थ आई थी परन्तु उसने कहा कि ये समस्या राष्ट्रव्यापी है इसलिए इस पर समग्रता से विचार होना चाहिए | उसका ऐसा सोचना सही भी है क्योंकि विभिन्न राज्यों ने अवैध कालोनियों को वैध करने संबंधी अलग – अलग नीतियाँ और नियम बना रखे हैं | चुनाव पास आते ही सरकार में बैठे लोग अवैध कलोनियों को वैध करने का फैसला कर लेते हैं | कुछ राशि बतौर जुर्माने के वसूलकर अवैध को वैधता का प्रमाणपत्र दे दिया जाता है | ये सिलसिला लम्बे समय से चला आ रहा है | ज्यों – ज्यों शहर बड़े होते जा रहे हैं त्यों – त्यों अवैध कालोनियां और झुग्गी – झोपड़ी भी बढ़तीं जा रही हैं | शहर के बाहर बसाई जाने वाली कालोनियां धीरे – धीरे उसके भीतर आ जाने के कारण औरों के लिए मुश्किलें पैदा करने वाली बन जाती हैं | भले ही सरकार वोटों के लालच में इनको कानूनी जामा पहिना दे लेकिन बेतरतीब ढंग से विकसित होने के कारण ये समस्याग्रस्त बनी रहती हैं | यही हाल झुग्गियों का भी है | सही बात तो ये है कि चाहे अवैध कालोनी हो या फिर झुग्गी – झोपड़ी वाली बस्तियां , इन्हें बसाने में जिस – जिसकी भूमिका हो उन्हें दण्डित किये बिना इस समस्या का हल संभव नहीं  होगा | सर्वोच्च न्यायालय की संदर्भित चिंता  बौद्धिक स्तर पर भले ही दो – चार दिन विमर्श में रहे लेकिन जब तक राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव सहित  नेता और नौकरशाहों का भूमाफिया से अघोषित गठबंधन चलेगा तब तक इस समस्या का हल नामुमकिन है | किसी भी शहर में बनने वाली अवैध कालोनी रातों – रात तो खड़ी नहीं  हो जाती | इसी तरह झुग्गियां भी धीरे – धीरे विकसित होती हैं | उनके अस्तित्व में आते समय उन पर जिस सरकारी विभाग को नजर रखना चाहिए वह उस अवैध कृत्य को नजरंदाज कर देता है जिसके पीछे मुख्य वजह पैसे के लेनदेन के अलावा सत्ताधीशों का दबाव होता है | यही वजह है  कि जब अवैध निर्माण तोड़ने की बात आती है तब नेतागिरी आड़े आ जाती है | चुनाव नजदीक आते ही अवैध को वैध करने का गोरखधंधा भी शुरू हो जाता है | झुग्गियों में रहने वालों को एक जगह से हटाकर  दूसरी जगह बसाये जाने के कारण भी अतिक्रमण की प्रवृत्ति को बढावा मिलता है | ये समस्या पहले महानगरों में ज्यादा  दिखाई पड़ती थी  किन्तु अब तो छोटे शहरों से होते – होते कस्बों तक में इसकी मौजूदगी देखी जा सकती है | सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे व्यापक  परिप्रेक्ष्य में देखने के बाद हो सकता है इसे लेकर कोई राष्ट्रीय नीति बन जाये | दरअसल अवैध कालोनियां और झुग्गियों के पीछे भी सोची – समझी रणनीति होती है | इनको बनाते समय ही ये विश्वास होता है कि अवैध को अंततः वैध कर दिया जावेगा और कब्जे के बदले दूसरी जगह का कब्ज़ा मिलेगा | लेकिन जब किसी भी प्रकार का अवैध निर्माण या कब्जा होता है तभी उसे रोकने के लिए प्रशासन आगे  आये और नेतागण बाधा न बनें  तभी समस्या का हल संभव है | जब तक अतिक्रमण और अवैध निर्माण होते देखने वाले सरकारी अमले की जिम्मेदारी तय नहीं की जाती तब तक ये सिलसिला अनवरत जारी रहेगा | लेकिन नौकरशाही को कठघरे में खड़ा  करने से पहले राजनेताओं को अपना दामन साफ़ करना होगा जो भूमाफिया से मिलने वाली आर्थिक मदद के बोझ तले नियम विरुद्ध  निर्माण को संरक्षण देने में तनिक भी नहीं  झिझकते |  चुनाव के पहले अवैध कालोनियों को वैध बनाने के पीछे नोट और वोट दोनों की भूमिका होती है | ऐसा ही झुग्गियों को हटाकर दूसरी जगह  बसाने के मामले में भी  है | गरीबों को आवास देने की नीति गलत नहीं है लेकिन अतिक्रमण को प्रोत्साहित करने वाली राजनीति पर विराम लगना जरूरी है | इस आधार पर सर्वोच्च न्यायलय की चिंता पूरी तरह जायज है क्योंकि अवैध कालोनी और झुग्गियां शहरी विकास की राह में रोड़ा बनती हैं | नियम विरुद्ध कालोनी बनाने वाले सस्त्ते भूखंड बेच देते हैं लेकिन सड़क , नाली , उद्यान आदि का ध्यान नहीं  रखे जाने के कारण भविष्य में रहवासियों को खून के आंसू रोने पड़ते हैं | सवाल ये भी है कि अवैध कालोनी को बिजली और स्थानीय निकाय से जल की  आपूर्ति कैसे होती है ? अनेक झुग्गी बस्तियों में पक्की सड़कें , सरकारी नल और बिजली के खम्बे जन प्रतिनिधि वोटों की लालच में लगवाते हैं | कुल मिलाकर समूचा  खेल एक  गिरोहबंदी का परिणाम है | यदि नेता , नौकरशाह और भू माफिया के बीच संगामित्ती न हो तब अवैध कालोनी या झुग्गी बनना सम्भव ही नहीं है | जनहित में इनके प्रति सहानुभूति दर्शाने के कारण लोगों की मानसिकता ये हो चुकी है कि आज जो अवैध है उसे  कल वैध हो ही जाना है | झुग्गियों के तौर पर बस्ती बस जाने के बाद चूंकि वहां सैकड़ों मतदाता रहते हैं इसलिए कोई नेता उन्हें हटाने का साहस नहीं दिखाता | उल्टे जब अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई होती है  तब नेतागण ही सामने आकर उसे रुकवाते हैं | इस बारे में ईमानदारी से पड़ताल करवाई जावे तो ये बात उजागर हुए बिना नहीं रहेगी कि उन सबके पीछे नेता , नौकरशाह और भू माफिया की मिली भगत थी | सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस समस्या का राष्ट्रीय  संदर्भ में संज्ञान लिए जाने के बाद ये प्रश्न स्वाभाविक तौर पर उठता है कि अवैध निर्माण या कब्जे को वैधता प्रदान कर गलत कार्य को प्रोत्साहित करना कहाँ तक  उचित है ? यदि अवैध कलोनियों को वैध करना ही है तो उसकी एक अंतिम तारीख तय कर दी जावे और उसके बाद बनने वाली अवैध कालोनी को किसी भी  तरह की रियायत न मिले |  इसी प्रकार झुग्गी बस्तियों में रहने वालों के पुनर्वास के लिए भी  ठोस नीति के अंतर्गत कड़े प्रावधान जब तक नहीं किये जाते तब तक ये समस्या  बनी रहेगी | मोदी सरकार स्मार्ट सिटी परियोजना के साथ ही स्वच्छता अभियान पर अरबों रूपये खर्च कर रही है , लेकिन अवैध कालोनियों और झुग्गी बस्तियों को अभय दान देने की नीति नहीं बदली जाती तब हालात और भी बदतर होना सुनिश्चित है | जो अवैध है उसे निहित स्वार्थवश  वैध बनाने की सोच ही मौजूदा समस्या के मूल में है | 

-रवीन्द्र वाजपेयी

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