Wednesday 13 April 2022

सबका विश्वास जीतने राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री का एक संबोधन महंगाई पर भी अपेक्षित है



बीते कुछ महीनों में जीएसटी वसूली के आंकड़े उत्साहित करने वाले रहे हैं | 31 मार्च को समांप्त हुए वित्तीय वर्ष में प्रत्यक्ष कर से हुई आय भी उम्मीद से बेहतर हुई | इन सबसे ये विश्वास प्रबल हुआ कि अर्थव्यवस्था कोरोना के चंगुल से बाहर आ चुकी है | बीते कारोबारी साल में विकास दर भी वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए बहुत ही उत्साहवर्धक रही | कोरोना के दौरान सरकार का पूरा ध्यान महामारी से जूझने में लगा रहा जिससे विकास कार्य अवरुद्ध होने लगे थे किन्तु जैसे ही स्थितियां सामान्य हुईं , लंबित प्रकल्पों में गति आने लगी | सरकारी खर्च बढ़ने का अनुकूल असर बाजार पर भी पड़ा | मांग बढ़ने से जहाँ उत्पादन इकाइयों को भी राहत मिली वहीं  उपभोक्ता वर्ग  लगभग दो साल की सुस्ती के बाद उत्साह से भरा हुआ नजर आने लगा | कार और दोपहिया वाहनों की बिक्री में आया उछाल इसका प्रमाण है | जैसी खबरें आ रही हैं उनके मुताबिक जमीन  – जायजाद के व्यवसाय में बीते  कुछ समय से चली आ रही सुस्ती तकरीबन दूर हो चुकी है जिसके परिणामस्वरूप बिल्डरों ने भी जोर शोर से अपना रुका पड़ा कारोबार शुरू कर दिया है | सबसे सुखद बात ये है कि कोरोना काल में बेरोजगारी का जो संकट आया था वह तेजी से दूर होने लगा है | निर्माण क्षेत्र के साथ ही उत्पादन इकाइयों के गतिशील होने से श्रमिक वर्ग को जहां राहत मिली वहीं सरकारी और निजी क्षेत्र में भी नई नौकरियाँ लगातार निकलने से शिक्षित युवाओं के मन में व्याप्त निराशा कुछ तो कम हुई है | कोरोना के दौरान टीकाकरण जिस सफलता के साथ किया गया उससे आम जनता में सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है | 80 करोड़ लोगों को निःशुल्क अनाज देने की योजना जिस सफलता के साथ संचालित हो रही है उसकी चर्चा पूरी दुनिया में है | इसके जरिये  दुनिया में ये सन्देश गया कि भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर होने के साथ ही आत्मविश्वास से भी भरपूर है | इसका ताजा प्रमाण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा  अमेरिका के   राष्ट्रपति जो. बाईडेन को  आभासी माध्यम पर हुई बातचीत के दौरान दिया गया यह प्रस्ताव है कि विश्व व्यापार संगठन अनुमति दे तो भारत दुनिया को खाद्यान्न की आपूर्ति करने तैयार है | उल्लेखनीय है यूक्रेन संकट के कारण विश्व भर में खाद्यान्न की किल्लत हो गई है | भारत का निर्यात हाल के महीनों में तेजी से बढ़ने से  शेयर बाजार भी यूक्रेन संकट से लगे झटके से उबरता दिख रहा है | हमारे  आईटी सेक्टर का जादू तो पूरी दुनिया के सिर पर चढ़कर बोल ही रहा है लेकिन अब दवाइयों के निर्यात में भी भारत काफी तेजी से आगे आया है | कोरोना का टीका जिस रिकॉर्ड समय में हमारे यहाँ तैयार हुआ उसने भारत की प्रतिष्ठा में काफी वृद्धि की | ये भी गौरतलब है कि दवाइयां बनाने के लिए जरूरी कच्चे माल का उत्पादन देश में ही करने की दिशा में जो प्रयास हो रहे हैं उनका अच्छा परिणाम देखने आया है | जेनेरिक दवाइयों की दुकानें तेजी से खुलने से भी आम उपभोक्ता को बहुत राहत है | कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था पर लगा कोरोना रूपी ग्रहण छंट चुका है और उसी  वजह से आगामी सालों में आर्थिक प्रगति के अनुमान  सुखद भविष्य का संकेत दे रहे हैं | लेकिन तमाम  खुशनुमा एहसासों के बावजूद महंगाई जिस तरह से बढ़ रही है उसने आम जनता को हलाकान कर रखा है | पांच राज्यों के हालिया चुनावों में भी ये  मुद्दा काफी गरमाया किन्तु प्रधानमंत्री के प्रति जनता के मन में जो विश्वास बना हुआ है उसकी वजह से भाजपा ने मैदान मार लिया | लेकिन  दीपावली से पेट्रोल – डीजल की जो कीमतें स्थिर रखी गईं थीं , होली आते ही उनमें जिस तरह का उछाल लगातार आ रहा है उसकी वजह से परिवहन खर्च बढ़ने का असर सभी चीजों के दामों पर हो रहा है | रही – सही कसर पूरी कर दी रूस और यूक्रेन   के बीच चल रही लड़ाई ने | महंगाई के जो ताजा आंकड़े आये हैं उनकी मार सबसे ज्यादा निम्न और गैर सरकारी नौकरी वाले मध्यम वर्ग पर पड़ रही है | इस तबके का घरेलू बजट जिस तरह गड़बड़ाया वह चिंता का विषय है क्योंकि बीते दो साल में जो बचत थी वह भी खत्म हो चुकी है | कोरोना काल में शिक्षण संस्थाएं बंद रहने से अभिभावकों पर फ़ीस का भार तो था लेकिन बच्चों को विद्यालय या महाविद्यालय भेजने में होने वाले खर्च की जो बचत थी वह भी अब नहीं रही | संक्षेप में कहें तो कोरोना के बाद महंगाई दोहरी मुसीबत के तौर पर आ खड़ी हुई | यूक्रेन संकट की वजह से खाद्य तेलों के अलावा आयात होने वाली अन्य चीजों के दाम तो बढ़े ही किन्तु देश के भीतर  भरपूर मात्रा में  उत्पन्न होने वाली रोजमर्रे की चीजें जिस तेजी से महंगी होती जा रही हैं उससे अर्थव्यवस्था संबंधी उत्साहजनक दावों को लेकर विरोधभास की स्थिति पैदा हो रही है | हालांकि  महंगाई का कोई एक विशेष कारण तय कर पाना संभव नहीं है क्योंकि अर्थव्यवस्था किसी एक चीज से ही प्रभावित नहीं होती | ये संतोष का विषय है कि कोरोना जैसी विषम परिस्थिति के बावजूद देश की जनता का प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता पर विश्वास कायम है | लेकिन भारत के पड़ोस में श्रीलंका , नेपाल और पाकिस्तान का आर्थिक ढांचा जिस तरह से चरमरा गया है उसे लेकर हमारे यहाँ भी आशंकाओं के बादल मंडराने लगे हैं | सरकार के सचिव तक श्री मोदी को समझाइश दे चुके हैं कि बिना ठोस आर्थिक प्रबंधन के किये जाने वाले चुनावी वायदों से हमारे देश में भी उक्त पड़ोसियों जैसी स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं | प्रधानमंत्री की कार्यशैली दूरगामी सोच पर आधारित होने से ये विश्वास करना गलत नहीं है वे आर्थिक क्षेत्र को लेकर गम्भीर होंगे | लेकिन जिस तरह उन्होंने कोरोना के हमले से बचाव हेतु लॉक डाउन लगाते समय और बाद में अनेक बार राष्ट्र के नाम सन्देश के जरिये देशवासियों को  ये भरोसा दिलाया कि संकट की उस घड़ी में सरकार उनके साथ खडी है , वैसी ही जरूरत आज महंगाई के विषय को लेकर है | मूल्य वृद्धि  के वाजिब कारण और मजबूरियों पर यदि वे  जनता के सामने अपनी बात रखेंगे तो उससे आशंका और कुशंका के साथ ही भ्रम की स्थिति का निराकरण तो होगा ही लेकिन उससे भी बढ़कर जनता की ये शिकायत भी दूर हो सकेगी कि सरकार वोट लेने के बाद उसे उसके हाल पर छोड़ देती है | यदि श्री मोदी अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति और भावी संभावनाओं से देश को अवगत करायें तो वातावरण में व्याप्त भय दूर किया जा सकेगा | उनसे ये अपेक्षा भी है कि  मूल्य वृद्धि से त्रस्त समाज के उस वर्ग को राहत देने की दिशा में भी कुछ करें जो सरकार द्वारा चलाई जा रही जनकल्याण योजनाओं से वंचित रहने से लाभार्थी की श्रेणी में शामिल नहीं है | यदि वे ऐसा करें तब सबका साथ , सबका विकास और सबका विश्वास का नारा अपनी सार्थकता साबित कर सकेगा | 

- रवीन्द्र वाजपेयी


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