Saturday 26 March 2022

पचमढ़ी जाने की क्या जरूरत थी : ये तो भोपाल में भी हो सकता था



 म.प्र के मुख्यमंत्री अपने मंत्रीमंडल के साथ बस में बैठकर कल रात प्रदेश के हिल स्टेशन पचमढ़ी जा पहुंचे | आज और कल दो दिन तक चलने वाले इस चिंतन शिविर में 2023 में होने वाले  विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति बनाई जावेगी | इसके लिए सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को प्रभावी तरीके से लागू करने पर विचार करते हुए ये सुनिश्चित किया जावेगा कि उनका लाभ पूरी तरह आम जनता तक पहुंच सके | उ.प्र के हालिया परिणाम से प्रेरणा लेते हुए मुख्यमंत्री ने मंत्रीमंडल को चुनावी चुनौतियों  का सामना करने हेतु तैयार करने का जो कदम उठाया वह उन्हें एक कुशल सेनापति का प्रमाणपत्र देने के लिए पर्याप्त है | भाजपा चूंकि संगठन आधारित पार्टी है इसलिए उससे ऐसी अपेक्षा की भी जाती है | मुख्यमंत्री चूंकि संगठन के निचले स्तर से उठकर ही इस मुकाम तक पहुंचे हैं इसलिए वे हवा में उड़ने के बजाय ज़मीनी सच्चाई से वाकिफ हैं | अति आत्मविश्वास किस हद तक नुकसानदेह होता है इसका कटु अनुभव वे 2018  में कर चुके थे | इसीलिये इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते | बीते कुछ दिनों से अपने स्वभाव के विपरीत श्री चौहान जिस तरह से प्रशासनिक आक्रामकता दिखा रहे हैं उससे लगता है उन्होंने योगी आदित्यनाथ के तौर - तरीके अपना लिये हैं  | दूसरे की सफलता से सीखना वैसे भी समझदारी होती है | चूंकि इस मंत्रीमंडल में दर्जन भर वे मंत्री भी हैं जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा में आये ,  इसलिए शायद श्री चौहान को लगा होगा कि उन्हें पार्टी की चुनावी कार्यशैली में पारंगत किया जाये क्योंकि  कांग्रेस में चुनाव प्रत्याशी लड़ते हैं जबकि भाजपा में पार्टी  | लेकिन इस बारे में ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि पूरे मंत्रीमंडल को उठाकर भोपाल से पचमढ़ी ले जाने का औचित्य क्या है ? राजधानी में स्थित सचिवालय में बैठकर भी तो  मंत्रीगण सरकार की नीतियों और जनहित के कार्यक्रमों का सही तरीके से क्रियान्वयन करने की  कार्ययोजना बना सकते थे | आखिर मंत्रीमंडल की नियमित बैठकें भी तो उसी जगह होती हैं | और फिर वहां समस्त सरकारी दस्तावेज और अमला भी उपलब्ध है जो जरूरी जानकारी और अन्य सेवायें प्रदान करवा सकता था | ऐसे में भोपाल छोड़कर हिल स्टेशन जाना समझ से परे है | हालांकि  आजकल राजनीतिक दलों की राष्ट्रीय बैठकें भी सितारा होटलों के अलावा महंगे रिसार्ट में होने लगी हैं | लेकिन भोपाल में तो भाजपा के पास सर्वसुविधायुक्त कार्यालय भी है  जिसमें बड़े – बड़े आयोजन होते रहते हैं | यदि मुख्यमंत्री सचिवालय से दूर रहकर चिंतन करना चाहते थे तो पार्टी दफ्तर उसके लिए उपयुक्त स्थान होता  | चूंकि मंत्रियों के दो दिवसीय शिविर का मूल उद्देश्य चुनावी तैयारी है इसलिए पार्टी मुख्यालय में इस तरह का आयोजन पूरी तरह स्वाभाविक और आडम्बर रहित होता |  बस में जाने के पीछे शायद सरकारी धन बचाने का उद्देश्य रहा हो किन्तु जहां पूरी सरकार बैठी हो वहां प्रशासनिक और सुरक्षा व्यवस्था पर तो खर्च होगा ही , जिसका ब्यौरा सामने आने से रहा | चूंकि बैठक मंत्रीमंडल की है लिहाजा वह पूरी तरह से सरकारी कार्यक्रम   ही है | बेहतर होता  सरकारी पर्यटन से बचते हुए भोपाल में बैठकर ही चिंतन – मनन  किया जाता  | और फिर  शिविर में कोई आध्यात्मिक चिंतन तो होना नहीं है जिसके लिए शहर के वायु और ध्वनि  प्रदूषण से दूर एकांत की जरूरत हो | मंत्रीमंडल के सदस्यों की कार्यशाला जैसी व्यवस्था भोपाल में आसानी से कम खर्च में हो जाती | ऐसे में जब प्रदेश पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है और अपना खर्च चलाने के लिए प्रदेश सरकार पेट्रोल – डीज़ल पर भारी – भरकम करारोपण करते हुए जनता का तेल निकाल रही हो तब इस तरह के जलसे सामंती दौर की याद दिलवाते हैं |  म.प्र आर्थिक दृष्टि से अच्छी स्थिति में होता तब इस तरह की  बैठक कहीं भी होती तो किसी को उंगली उठाने का मौका नहीं मिलता | लेकिन रोजमर्रे के काम चलाने के लिए जो सरकार लगातार कर्ज ले रही हो उसका मंत्रीमंडल अपने कामकाज में कसावट लाने के लिए राजधानी छोड़कर किसी हिल स्टेशन में जाए , ये बात आसानी से गले उतरने वाली नहीं है | पार्टी विथ डिफ़रेंस का दावा ऐसे आयोजनों से संदेह के घेरे में आ जाता है | भाजपा के वैचारिक अभिभावक रास्वसंघ की भी चिंतन बैठकें होती हैं | लेकिन उनका स्वरूप बेहद साधारण होता है | पता नहीं सत्ता में बैठने के बाद भाजपा नेता संघ से मिले संस्कारों को क्यों भूल जाते हैं ? म.प्र में कुछ समय पहले ही भाजपा द्वारा  संभागीय संगठन मंत्री नामक व्यवस्था महज इसलिए समाप्त कर दी गई क्योंकि उससे जुड़े अधिकांश व्यक्ति संघ के संस्कारों से दूर होने लगे थे | शिवराज सिंह स्वयं संघ रूपी पाठशाला से आये हैं | बेहतर होता वे अपनी  सरकार को भी उसी सादगी में ढालते  | सवाल और भी हैं लेकिन फिलहाल तो भाजपा और उसकी सरकार को केवल ये जवाब देना चाहिए कि जो चिंतन पचमढ़ी  की शीतल वादियों में बैठकर किया जा रहा है , क्या वह भोपाल के सचिवालय या भाजपा के प्रदेश कार्यालय में सम्भव नहीं था ? आखिर वहां भी तो एयर कंडीशनर लगे हैं |

- रवीन्द्र वाजपेयी


 

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