प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने गत दिवस अर्थव्यवस्था की चिंताजनक स्थिति पर मंथन किया तथा हालात को सुधारने हेतु कई कदमों पर विचार किया। इसमें कोई दो मत नहीं है कि नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी की वजह से उद्योग-धंधों की चाल काफी धीमी हो गई है। बाजार में नगदी की कमी के कारण लेन-देन प्रभावित हो गया। उत्पादन घटा तो रोजगार भी कम होता गया। केवल सरकारी नौकरीपेशा वर्ग को छोड़ दें तो शेष पूरा समाज एक अदृश्य भय में जी रहा है। सबसे बड़ी बात ये है कि कारोबार के भविष्य को लेकर किसी के पास कोई अनुमान नहीं है। अच्छे दिन के वायदे के बाद सत्ता में आने वाली मोदी सरकार ऊपर से चाहे कितने दावे करे किन्तु उसकी छवि केवल टैक्स वसूलने वाले की बन गई है। राजस्व में वृद्धि के दावे यदि सरकार की सफलता का मापदंड हंै तो कह सकते हैं वित्तमंत्री अरूण जेटली को 100 में से 101 अंक दिये जाने चाहिए परन्तु विकास एवं रक्षा सौदों पर भारी-भरकम खर्च के बाद भी आर्थिक मोर्चे पर केन्द्र सरकार विपक्ष तो दूर अपने प्रतिबद्ध समर्थकों तक को संतुष्ट और आश्वस्त नहीं कर पा रही है। हालांकि इसके बाद भी प्रधानमंत्री के प्रति भरोसा काफी हद तक बना हुआ है। ये भी कहना गलत नहीं होगा कि लगातार विभिन्न राज्यों के चुनाव होने की वजह से सरकार अपने कड़े निर्णयों के औचित्य को लोगों के गले नहीं उतार पा रही। सलाहकार परिषद इस स्थिति को सुधारने में कितनी कारगर होती है ये अंदाज लगाना कठिन है लेकिन इतना जरूर है कि मोदी सरकार को अब ऐसे फैसले करने ही होंगे जिनसे जनता एवं उद्योग-व्यापार को तत्काल राहत मिल सके।
-रवींन्द्र वाजपेयी
No comments:
Post a Comment