गत रात्रि आज तक चैनल पर गुजरात और हिमाचल के विधानसभा चुनाव संबंधी सर्वेक्षण प्रसारित हुआ। दोनों राज्यों में भाजपा की विजय बताने वाले उक्त सर्वेक्षण के एक माह पूर्व एबीपी चैनल ने गुजरात का जो सर्वे प्रसारित किया था उसकी तुलना में नये सर्वेक्षण में भाजपा को 25-30 सीटें कम दिखाई गई परन्तु वह 2007 और 2012 की अपनी स्थिति करीब-करीब बनाए रखेगी। दूसरी तरफ आज तक के सर्वे में हिमाचल में भाजपा को बड़ी जीत की तरफ बताया है। गुजरात में कांग्रेस के आक्रामक प्रचार और जीएसटी को लेकर व्याप्त नाराजगी से भी ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा है पाटीदार, ओबीसी तथा दलित समुदाय के नेता बनकर उभरे तीन नवयुवक क्रमश: हार्दिक पटैल, अल्पेश ठाकोर तथा जिग्नेश मेवानी भाजपा को हराने के लिये जिस तरह आमादा हैं उसकी वजह से राहुल गांधी को ये लगने लगा है कि वे 2014 से अभी तक की सभी पराजयों का एकमुश्त बदला नरेन्द्र मोदी को उन्हीं के घर में हराकर ले लेंंगे। अल्पेश तो दो दिन पूर्व कांग्रेस में शरीक भी हो चुके हैं। सर्वेक्षण के अनुसार तो इन तीनों को मिलाने के बाद भी कांग्रेस की नैया पार नहीं होने वाली। इसकी एक वजह श्री मोदी का प्रधानमंत्री होना है। गुजरात के मतदाताओं के मन में कहीं न कहीं तो ये बात बैठी ही होगी कि भाजपा को परास्त करने पर प्रधानमंत्री कमजोर होंगे जिससे गुजरात का नुकसान हो सकता है। वहीं पर्वतीय राज्य हिमाचल में सत्ता परिवर्तन की परंपरा कायम रहने की संभावना ही नजर आ रही है। यदि सर्वेक्षण के आँकड़ों को पूरी तरह स्वीकार करें तब तो वहां वीरभद्र सिंह की सरकार के विरुद्ध जबर्दस्त असंतोष सतह पर तैरता नजर आ रहा है। हॉलांकि बीते समय में तमाम सर्वेक्षण गलत साबित हो चुके हैं। कई तो वास्तविक नतीजों से बहुत ज्यादा अलग रहने की वजह से उपहास का पात्र भी बने किन्तु उ.प्र., उत्तराखंड आदि में सर्वेक्षणों ने जनता के मन को काफी हद तक सही तरीके से पढ़ा। जिस एजेन्सी द्वारा गत रात्रि का सर्वे किया उसका पिछला रिकॉर्ड भी काफी अच्छा बताया जाता है। बावजूद इसके सर्वे को नतीजा मान लेना जल्दबाजी होगी। राजनीति जिस तेजी से करवट बदलती है उसको देखकर पक्के तौर पर कुछ कह पाना उचित नहीं होता किन्तु उक्त सर्वेक्षण में 2 से 3 फीसदी की गलती स्वीकार कर लें तब भी कांग्रेस के लिये चिंता का कारण तो बनता ही है। हिमाचल में कांग्रेस का हारना उतना चौंकाने वाला नहीं होगा किन्तु यदि इस बार भी गुजरात को राहुल नहीं जीत सके तब 2019 को लेकर संजोई जा रही उनकी उम्मीदों पर अभी से तुषारापात हो जाएगा।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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