Monday 2 October 2017

जेटली: शुभस्य शीघ्रम

तीन माह पूरे होने के उपरांत इसे प्रसव पीड़ा कहना तो गलत होगा। बहरहाल नवजात बच्चे के दाँत निकलने की शुरुवात होते ही जो तकलीफें सामने आती हैं उनसे जरूर जीएसटी की तुलना की जा सकती है। एक जुलाई से अस्तित्व में आई ये कर व्यवस्था जो उम्मीदें लेकर आई थी वे कब और कितनी पूरी होंगी ये तो भविष्य ही बता पायेगा परन्तु काफी मन्नतों के बाद जन्मा ये बच्चा फिलहाल तो माँ ही नहीं पूरे घर या यूं कहें कि मोहल्ले को भी परेशान कर रहा है। यही वजह है कि बच्चे के जन्म के समय होने वाली खुशी चिंता और परेशानी में बदल गई है। व्यवसाय और उद्योग जगत जिस तरह दिक्कत में आया उसकी वजह से कारोबार और उत्पादन में कमी आई। जिसका परिणाम रोजगार घटने के तौर पर सामने आया और इन सबका मिला-जुला नतीजा आया विकास दर गिरने के रूप में। इस बारे में पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है। बहस के हर छोटे-बड़े मंच पर जीएसटी को लेकर संवाद और विवाद का दौर चल रहा है। सरकार इसे अलादीन का चिराग तो दूसरी तरफ विरोधी इसे बरबादी का सामान साबित करने पर तुले हुए हैं। पहले दो माह का कर संग्रहण यद्यपि आशाएं जगाने वाला रहा परन्तु उसका एक बड़ा हिस्सा वापसी योग्य है, ये जानते ही सारी खुशी काफूर हो गई। जो सबसे बड़ी परेशानी बताई जा रही है वह है जीएसटी में कर की चार दरें तथा विवरणी भरने में आ रही व्यवहारिक परेशानियों की। ये कहा जा रहा है कि छोटे और मध्यम श्रेणी के कारोबारी के लिये जीएसटी संबंधी कागजी खानापूरी एक बड़ा सिर दर्द बन गया है। अपने हाथ से खाता-बही लिख लेने वाला व्यापारी वर्ग अकाउटेंट तथा चार्टर्ड अकाउटेंट की सेवाएं लेने मजबूर हो चुका है जो समय और पैसा दोनों दृष्टियों से खर्चीला है। ऐसा नहीं है कि सरकार को ये सब पता नहीं है लेकिन उसमें बैठे लोग एक साथ सारी परेशानियां दूर नहीं करना चाहते क्योंकि ऐसा करने पर वे जीएसटी की सार्थकता साबित करने का अधिकार खो बैठेंगे परन्तु उन्हें ये भी समझ में आ गया है कि यदि लोगों की परेशानियां दूर नहीं की गईं तब विरोध की आवाज और बुलंद होती चली जावेगी। यही वजह है कि जीएसटी लागू होने के बाद से सरकार की तरफ से अनेक सहूलियतों और रियायतों की घोषणा आये दिन होती रहती हंै। राजनीतिक दबाव और व्यापार उद्योग जगत की तरफ से आ रहे सुझाव के मद्देनजर  जीएसटी से जुड़ी विसंगतियों को दूर करने की कोशिशें चल रही हैं। विवरणियां भरने की तिथि भी लगातार बढ़ाई जाती रही क्योंकि सरकार प्रदत्त ऑन लाईन सुविधा का दम कभी भी फूल जाया करता है लेकिन गत दिवस वित्त मंत्री अरूण जेटली द्वारा एक समारोह में जीएसटी की दरों में कमी का जो संकेत दिया वह काफी महत्वपूर्ण है। इसी के साथ अभी जो चार पायदानें हैं इन्हें भी घटाने का इरादा व्यक्त किया गया है। वित्त मंत्री ने साफ कहा कि यदि कर संग्रहण आशानुरूप रहा तथा राजस्व की स्थिति संतुलित बनी रही तब जीएसटी की चार श्रेणियों के अलावा कर की दरें घटाने जैसे बड़े सुधार की गुंजाईश रहेगी। वैसे ये आश्वासन श्री जेटली शुरुवात में ही दे चुके थे। जीएसटी की चार दरों के कारण भी व्यापारी को हिसाब रखने में काफी परेशानी आ रही है। दूसरी तरफ एक देश एक कर नामक नारा भी अर्थहीन होकर रह गया है। ये बात सही है कि भारत सरीखे देश में 12 प्रतिशत टैक्स भी कम नहीं होता। ऐसे में यदि 14 या 18 की एक दर सभी चीजों के लिये तय कर दी जावे तो भी निम्न आय वर्ग को ये नागवार गुजरेगा। बावजूद इसके जन अपेक्षा यही ै कि एक तो जीएसटी की चार श्रेणियां कम की जाएं। एक ही दर रखना तो संभव नहीं होगा किंतु 28 प्रतिशत की दर भी काफी ज्यादा प्रतीत होती है। वित्तमंत्री ने राजस्व की स्थिति को देखते हुए निकट भविष्य में टैक्स की श्रेणियां और दरें दोनों घटाने का जो दिलासा दिया उसे जितनी जल्द हो सके अमल में लाना चाहिये। यद्यपि श्री जेटली अकेले कुछ नहीं कर पायेंगे क्योंकि अंतिम निर्णय तो सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों को लेकर बनी जीएसटी काउंसिल ही करेगी किन्तु जब 18 राज्यों में भाजपा या उसके गठबंधन की सरकारें हैं तब केन्द्र सरकार जो चाहेगी वह करवाना कठिन नहीं होगा परन्तु इस मामले में वित्तमंत्री को सैद्धांतिक और व्यवहारिक दोनों पहलुओं के बीच सामंजस्य और संतुलन बनाना होगा। व्यापार जगत को जीएसटी की दरों से कुछ खास परेशानी नहीं होती यदि हिसाब-किताब तथा विवरणियां भरने की व्यवस्था इतनी जटिल नहीं रहती। रही बात जनता की तो उसकी बस एक ही अपेक्षा है कि जीएसटी लागू होने के बाद चीजें एवं सेवाएं सस्ती हो जाएं। अरूण जेटली ने गत दिवस मन को प्रिय लगने वाले जो वचन कहे उन्हें वे कितनी जल्दी अमल में लाते हैं इसकी प्रतीक्षा रहेगी।

-रवींन्द्र वाजपेयी

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